तुम्हें देखते ही

01-06-2025

तुम्हें देखते ही

धीरज पाल (अंक: 278, जून प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

ओ मेरी प्यारी दीपा 
तुम्हें देखते ही ख़्याल आता है
सिंदूर, मंगलसूत्र और चूड़ियाँ
याद आती हैं 
नई नवेली दुल्हनें
जिन्हें देखा है अब तक की शादियों में
चाँद की तरह चमकते हुए
 
प्यारी दीपा, तुम्हें देखते ही 
सजीव हो जाती हैं मंदिर की मूर्तियाँ
लब गुनगुनाते हैं देवी की आरती
तुम्हें देखते ही याद आती है
होंठों की मिठास
बदन का खारापन और 
अंगुलियों के चटकारे
 
ओह दीपा, तुम्हें देख कर ही
फूलों की दिव्यता और ताजमहल की 
पवित्रता पर गुमान हुआ मुझे
मेरी दीपा, तुम्हें देखते ही स्मरण होता है
प्रेम गीत, कविताएँ और महाकाव्य की नायिकाएँ 
और तुम्हारी गोद में दिखता है मुझे मेरा अंश। 

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