पिता जी

01-09-2024

पिता जी

धीरज ‘प्रीतो’ (अंक: 260, सितम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

मेरे पिता तपती हुई भट्टी थे
समोसा, जलेबी तलते हुए
सूर्य की तरह चमकते थे
उन्हें गर्मी नहीं लगती थी
और ठंडी तो बिल्कुल नहींं
परन्तु बरसात उनके माथे पर
हमेशा सुशोभित रही
जब हो रहा था उनका दाह संस्कार
मुझे लगा सूरज बुझ रहा है
किन्तु, मैं ग़लत था
पिता जाते जाते
मेरी आँखों में एक सूर्य छोड़ गए। 

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