मेरी बहन
धीरज ‘प्रीतो’
एक
दीदी, तुम मुझसे पहले पैदा हुई थी
मैं जब धरती पर आया
मेरी दो माँएँ थीं
एक हम दोनों की माँ और एक तुम
जब मैं छोटा था
तुम मेरा ख़्याल ख़ुद से भी ज़्यादा रखती थी
मेरे नाक पोंछती, मेरे कपड़े धोती
मुझे नहलाती भी
अब मैं बड़ा हो गया हूँ
मैंने पहली बार दीदी को ग़ुस्से में देखा
जब मेरे हिस्से का खाना एक बिल्ली खा गई
तुम उस दिन ख़ूब रोई और रोते हुए
आटा गूँथने लगी और रोटियाँ बेलने लगी
तो यह सच
भाई जब भूखा हो
बहने रोटियाँ बेलते थकती नहीं
तो यह भी सच है
तुम माँ हो और
मैं तुम्हारा भाई और बेटा दोनों।
दो
घर सजा हुआ है
गीत संगीत हो रहा है
गरम कचौरियाँ निकल रहीं हैं
सभी लोग बहुत ख़ुश हैं
इनकी ख़ुशी का कोई अंदाज़ा नहीं
परन्तु दीदी, तुम क्यों दुखी हो
सिर्फ़ दुखी नहीं, सहमी और डरी हुई भी
दीदी भी डरती है यह मेरे लिए नई बात है और हैरानी की भी
और परेशानी की भी
दीदी कभी मम्मी को देखती
कभी पापा को और कभी मुझे
सिर्फ़ देखती नहीं,
देखते देखते उनका गला भर्रा जाता,
आँखें बह जातीं
शायद मैं जान गया हूँ दीदी के रोने का कारण
शायद शादियाँ बुरी होती हैं और डरावनी भी
तभी तो हमेशा ख़ुश रहने वाली दीदी
आज रोए जा रही है
बिदाई का समय है
सब रो रहे है, दीदी की आवाज़ सबसे तेज़ है
तीन
अब सन्नाटा है
रिश्तेदार जा रहे हैं
घर ख़ाली हो रहा है
ग़लत, घर खंडहर हो रहा है
अब पूरा घर मेरा है, पर ये ख़ुशी रास नहीं आती
दिन बीत रहे हैं
आज दीदी वापस आई है
कितनी ख़ुश है, ठीक पहले जैसी
लेकिन थोड़ी दुबली हो गई है
शायद मैं सही समझा था, शादियाँ बुरी होती हैं
और ससुराल तो बिल्कुल जेलख़ाना
क्या दीदी रिहा हो गई है? शायद नहीं
शायद दीदी ‘बेल’ पर आईं है
पर कितने दिनों के लिए मालूम नहीं।
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