बारिश

धीरज ‘प्रीतो’ (अंक: 249, मार्च द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

बारिश की अभी कुछ ही बूँदें गिरी हैं
मेंढक ख़ुशी से उछल पड़े हैं
मोर अपने पंख फैलाए बारिश के इंतज़ार में खड़े हैं
पपिहे को अभी फ़र्क़ नहीं पड़ा
किसान आसमान को ताकते हैं उम्मीद के साथ
नदियाँ अपने तटों और 
जलजीवों से कह चुकी हैं तैयार रहो
मेरा आकार बढ़ने वाला है
टूटी फूटी झोपड़ियों में रहने वालों ने 
बरसाती निकाल ली है
राहगीर पेड़ों की शरण ले चुके हैं
भैंसों ने हुंकार लगा दी है
गायें गोरूवारों में चली गई हैं
माताओं ने छत पर सूखे अनाजों को 
इकट्ठा करना शुरू कर दिया है
आसमान गहन काला हो चुका है
बिजली कड़कड़ा रही है
हवाएँ चल पड़ी हैं
बच्चों ने डोरी से पन्नी बाँध ली है उड़ाने के लिए
बारिश की बूँदे आकार में बड़ी होने लगी हैं
झम झम करता हुआ एक लहरा पानी आया
सब तृप्त हुए
सिवाए मेरे
मुझे इंतज़ार है तुम्हारे लौट आने का। 

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