तख़त

धीरज ‘प्रीतो’ (अंक: 261, सितम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

आम की लकड़ी से बना
मेरा तख़त
जिस पर बौर नहीं आते
आम नहीं आते
न ही आते है सुन्दर सपने
आती है सिर्फ़ और सिर्फ़
अकेलेपन में सनी हुई
एक दुलहन
जो जगाए रखती है मुझे रात भर
अपने सिरहाने लेटाए हुए
मुझे मेरी ही दुःख भरी कहानियाँ
सुनाते हुए
कभी कभी दुत्कार भी देती है
फटकार भी देती है
और मैं पकड़ लेता हूँ
तख़त का एक कोना
और सुबह हो जाती है। 

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