मैं क्या लिखूँ? 

15-10-2024

मैं क्या लिखूँ? 

धीरज ‘प्रीतो’ (अंक: 263, अक्टूबर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

सोच रहा हूँ 
तुम पर फिर कोई कविता लिखूँ
पर क्या मेरी कविताएँ तुम्हारी बराबरी कर सकती हैं? 
पता नहीं, परन्तु मैं लिखूँगा
पर तुम जैसी ख़ूबसूरत कविता 
शायद ही मैं कभी लिख पाऊँ
हाँ इतना टेढ़ा तो लिख ही सकता हूँ
जितनी तुम्हारी नाक दीवार से
टकराने पर टेढ़ी हो गई थी या 
उतना गिरा हुआ कविता लिखूँ 
जितनी स्कूटी से गिरने पर
तुम्हारे हाथ छिल गए थे या 
फिर उतना बेहूदा तो लिखी सकता हूँ
जितना बेहूदा तुम्हारे पेट का कैंसर था या
उतना बदनसीब कविता लिखूँ जितना मैं हूँ
जो तुम्हें आख़िरी बार देख भी न सका
 
मैं क्या लिखूँ ऐसा जो तुम सा लगे? 
मैं क्या लिखूँ ऐसा कि मुझे सुकून मिले? 
 
क्या मैं लिखूँ हमारी बातों को, हमारी मुलाक़ातों को? 
या तुम्हारे चरणों की धूल लिखूँ? 
या तुम्हारे क़ब्र की मिट्टी लिखूँ? 
या मैं लिखूँ तुम्हारे दर्द की सिसकियों को
या मैं लिखूँ तुम्हारे आँख के सूखे पानी को
या मैं तुम्हारी आख़िरी साँस की कहानी लिखूँ
 
मैं क्या लिखूँ? कुछ तो बताओ! 
मेरे सपनों में आकर मुझे राह दिखाओ
मैं भटक गया हूँ, मैं जड़ हो गया हूँ
मैं बस तुम्हें लिखना चाहता हूँ
मैं बस तुम्हारी यादों में रहना चाहता हूँ। 
 
(यह कविता मेरी एक दोस्त की याद में लिखी है जो कैंसर से लड़ते-लड़ते दुनिया छोड़ गई) 

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