सब अधूरा 

01-06-2025

सब अधूरा 

धीरज पाल (अंक: 278, जून प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

बचपन अधूरा था
जवानी अधूरी है
हाथों की लकीरें अधूरी
क़िस्मत के ग्रह नक्षत्र अधूरे
सुख की चादर अधूरी
दुःख का दरिया अधूरा
सब अधूरा रह गया
मैं आतंकित हूँ
अपने अधूरे कार्यों से
डरता हूँ कविता लिखते वक़्त न मर जाऊँ। 

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