शब्द
धीरज ‘प्रीतो’
एक
कोरा काग़ज़ देख
कुछ लिखने को मन करता है
फिर मैं ढूँढ़ने लगता हूँ तुम्हारी वो तस्वीर
जो ग़ुस्से में कहीं छुपा दी थी
ताकि मैं ढूँढ़ सकूँ कुछ शब्द
और रँग सकूँ उस पन्ने को शब्दों से
और इतना अहसान तो मैं कर ही सकता हूँ
उस पन्ने पर जो जीना चाहता है
और ख़ुद पर
शायद मैं भी जीना चाहता हूँ
अपनी इस कविता के सहारे
और तुम्हारी उस ख़ुश्बू से महकना चाहता हूँ
जो अभी इस वक़्त इस पन्ने से आ रही है।
दो
मुझे शब्द चाहिए
दुख प्रकट करने के लिए नहीं
क्रांति जागने के लिए
ख़ूनी क्रांति नहीं, मौन क्रांति
मुझे शब्द चाहिए ताकि मैं लिख सकूँ
ऐसी मार्मिक और दिलकश प्रेम कविताएँ
जिनमें ताक़त हो रुलाने की
आँसुओं की बाढ़ लाने की
ताकि ये धरती पूर्णतः जलमग्न हो सके
जो प्रेम पक्ष में हो, तैर सके और सुरक्षित रहे
और प्रेम कर सके बिना किसी रोक टोक के
जो पक्ष में नहीं है डूब जाए
मरने के लिए नहीं, सीखने के लिए
कि प्रेम के बग़ैर तैर पाना मुमकिन नहीं
कि प्रेम ही है जो उबार सकता है इस नर्क से
मुझे शब्द चाहिए, अद्भुत शब्द
जो इस धरा पर प्रेम को बचा सके।
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