शैतान

धीरज ‘प्रीतो’ (अंक: 276, मई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

सच बताओ
हम ने उन दिनों क्या खोजा था
पहिया या समय का पहिया? 
अग्नि या एक नया दिवाकर? 
तांबा, पीतल, इस्पात, लौह या 
सभ्यता का हम ने अंत खोजा था
अजीब लगता है 
जब कोई मुझे इंसान कहता है
क्या मैंने ही धारण की है 
इस ब्रह्माण्ड का सबसे विकसित मस्तिष्क
फिर क्यों भटकता हूँ चौसठ हज़ार योनियों में 
सिर्फ़ तथाकथित मुक्ति पाने को और किसलिए? 
मैं क्यों स्वीकार नहीं कर पाता मुक्ति मौत है 
और बंधन ही सत्य 
तुम ज़ोर देकर कहो ईश्वर भ्रम है, शैतान यथार्थ 
वही शैतान जो मुझ में है, तुम में है, हम सब में है
याद रखना हम ने उन दिनों जो खोजा था
वह (मैं) शैतान ही था। 

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