कर्ण
धीरज ‘प्रीतो’
कर्ण हो तुम, तुम्हारा नाम पर्याप्त है
पुरुषों के सारे गुण तुम में विद्यमान हैं
क्या गुरु क्या चेला सब तुम से भयभीत हैं
भगवान ने तुम को शिक्षा दी, यही तुम्हारी जीत है।
सरल जितना स्वभाव तुम्हारा वचन उतना कठोर है
मित्रता पर सब कुछ वर दिया, यही तुम्हारी रीत है
अस्त्रों से शक्तिशाली इन्द्र को दिया तुम्हारा दान है
अपनो के रक्षा की ख़ातिर तुम ने खाए चोट महान है।
दर्द क्या होता तुम ने ये जाना ही नहीं
सुख का दामन तुम ने कभी थामा ही नहीं
डर भी होता है कुछ तुम ने कभी समझा ही नहीं
लड़ जाए भगवान से ख़ुद जो, ऐसा वीर कहीं देखा ही नहीं।
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