माँ

धीरज ‘प्रीतो’ (अंक: 252, मई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

माँ ही चूल्हा चौका बरतन है
माँ ही घर आँगन द्वार है
माँ ही नींव, माँ ही छत है
माँ ही अमृत कलश, माँ ही अमृत बूँद है
माँ हमारे घोंसले की प्राण है
माँ कोई साधारण नारी नहीं
माँ नारी मंथन से निकली सबसे प्यारी नारी है। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में