इज़हार

धीरज ‘प्रीतो’ (अंक: 262, अक्टूबर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

तुम्हारी हरकतें बताती हैं 
तुम्हें मुझसे कितना प्रेम है
तो किस बात का डर है तुम्हें
मेरे अस्वीकार का
समाज का या फिर
आता ही नहीं तुम्हें इज़हार करना
अगर ऐसा है तो निश्चिंत रहो
सब को नहीं आती इज़हार की कला
लेकिन तुम स्त्री हो, तुम्हें रिझाना आना चाहिए
 
मुझे रिझाना है तो 
तुम्हें उठना होगा रोज़ सुबह 
एक अबोध बालक की तरह आँखों में प्रेम लिए
खिलना होगा रातरानी की तरह 
जब उम्मीद की एक भी रोशनी न हो
तुम्हें सजना होगा बेला की तरह मेरी आत्मा पर
तुम में हिम्मत इतनी कि सरे बाज़ार मेरे द्वारा चूमे जाने पर 
तुम असहज महसूस न करो 
और ठहाके लगा सको मेरी बेवुक़ूफ़ियों पर, मेरी नादानियों पर
और चालाकियाँ कि समझ सको मेरे इशारों को
मुझे प्रेम करने के लिए
तुम्हें इज़हार करना नहीं, रिझाना आना चाहिए
चालाकियाँ आनी चाहिएँ और 
होनी चाहिए तुम में हिम्मत
फिर, फिर मैं ख़ुद आऊँगा इज़हार करने
तुम्हारे प्रेम को
मेरे लिए, हम दोनों के लिए। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में