अकेलापन
धीरज ‘प्रीतो’
अकेले रहना आसान है
जो न समझा वही परेशान है
अकेलापन आराम है
ये ख़ुशियों का वरदान है
यह तुमको ख़ुद से मिलवाता है
भटके हो अगर तो राह दिखता है
क्या छुपा तुम्हारे भीतर
आईने सा साफ़ दिखता है
अपनी कहानी के तुम प्रमुख पात्र हो
ये पाठ तुम्हें समझाता है
बना तुमको ही दर्शक फिर ये
दोष तुम्हारा बतलाता है
जो समझ सके तुम तर जाओगे
मुश्किलों से तुम लड़ जाओगे
जब सारथी अकेलेपन जैसा पाओगे
बन कर अर्जुन निखर जाओगे।
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शांतिमय जीवन की कुन्जीः मेले में अकेला, अकेले में मेला।
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