शादी का मकड़जाल
धीरज ‘प्रीतो’
प्रत्येक बात का
एक उपचार होता है
पर कैसा हो जब
सभी बातों का उपचार एक ही हो
जैसे मेरे घरवाले के पास
मेरी सभी परेशानियों का
उपचार है—
मम्मी आज कुछ अच्छा नहीं लग रहा है
बेटा कह तो रही हूँ
शादी कर लो सब ठीक हो जाएगा
यार भाभी आज सब्ज़ी अच्छी नहीं बनी है
कह तो रही हूँ भइया
शादी कर लो स्वाद आ जाएगा
दीदी सर में दर्द है मालिश कर दो
तुम शादी क्यूँ नहीं कर लेते
भइया का मैसेज आया
बाबा अपनी दो तीन बढ़िया
वाली फोटो भेज दो
क्या करेंगे भइया?
कुछ नहीं शादी के लिए भेजनी है
दोस्तों का भी यही हाल है
भाई भाभी चाहिए, शादी कर लो
उमर निकली जा रही है
शादी कर लो
क्या सच में शादी इतना ज़रूरी है
क्या शादी न हो तो आदमी
आदमी नहीं रहता
क्यों सब मुझे बेचारी दृष्टि से देखते हैं
क्या शादी से ही सारी ख़ुशियाँ जुड़ी हैं
क्या शादी ही जीवन का सार है
तो फिर शादीशुदा लोग ख़ुश क्यों नहीं हैं
या फिर ये षड्यंत्र है
मुझे भी अपनी तरह बनाने का
मेरी भी ख़ुशियों का लगा घोंटने का
ये मेरे अपने हैं
यही लोग मेरे दिल की बात नहीं
समझते हैं
मैं ये नहीं कहता मुझे शादी नहीं करनी है,
करनी है परन्तु अभी नहीं
अभी मैं तैयार नहीं हूँ
पर मुझे समय चाहिए
पर क्या मुझे समय मिलेगा?
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