एकतरफ़ा प्यार

01-06-2025

एकतरफ़ा प्यार

धीरज पाल (अंक: 278, जून प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

इतनी व्यस्त दुनिया में
जहाँ भूख, प्यास, नींद और रोज़गार 
के ढेरों समीकरण उलझे हैं एक दूसरे से, 
समय बचा कर
मैं पूछ लेता था “तुम कैसी हो, खाना खाया या
क्या कर रही हो?” 
तुम से बात करके मैं निश्चिंत हो जाता
और दोहराता तुम्हारी बातों को दिन भर
गीतों की तरह
हालाँकि तुम को भी मालूम था 
मैं तुम से प्यार करता हूँ
फिर भी तुम ने कभी नहीं पूछा 
मेरा हालचाल, मैंने खाना खाया या क्या कर 
रहा हूँ मैं? 
प्यार एकतरफ़ा था मेरी ओर से
शायद तुम्हारी तरफ़ से दोस्ती भी नहीं थी
ख़ैर कुछ यादें है रेगिस्तान सी तपती हुई
फिर भी दर्द में अब कुछ कमी सी लगती है। 

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