वैक्सीन का रिएक्शन
डॉ. अशोक गौतम. . . तो हुआ यों कि मंत्रीजी अपनी स्वदेशी वैक्सीन से डर के मारे वैक्सीन नहीं लगवा रहे थे। असल में वे जबसे पॉलिटिक्स में आए थे, स्वदेशी उत्पादों से बहुत डरते थे।
आख़िर अपनी पार्टी द्वारा बनवाई अपने वैक्सीन न लगवाने पर उन्हें विपक्ष ने घेर लिया। जितने विपक्ष के नेता, उतने उन पर कायरता के आरोप। अंत में हाई कमान को मंत्रीजी को वैक्सीन लगवाने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा। हाई कमान ने अपने मंत्रीजी को साफ़ कहा कि या तो वे अपने सबके सामने स्वदेशी वैक्सीन लगवाएँ या मंत्री पद से इस्तीफ़ा दें। हाई कमान अपना सब दाँव पर लगा सकता है, पर अपना वोट बैंक क़तई दाँव पर नहीं लगा सकता। वह वोट बैंक की रक्षा के लिए किसीकी भी बलि दे सकता है।
इसी वज़ह से भरे जलसे में उनके वैक्सीन लगवाने का कार्यक्रम तय हुआ ताकि उस जनता को जिसे सरकार पर क़तई विश्वास नहीं, पर कम से कम उसकी वैक्सीन पर तो हो।
मंच सजा हुआ था। पार्टी की विचारधारा के डॉक्टर साहब मंच पर इधर-उधर दौड़ लगा रहे थे। लाउड स्पीकर में क़ुर्बानी के गीत बज रहे थे। मंच की बगल में चार नई एंबुलेंस खड़ी थीं। इधर-उधर से ज़बरदस्ती लाई जनता मंत्रीजी को साक्षात् वैक्सीन लगाते देखने को आतुर थी तो पार्टी डॉक्टर साहब की नज़रें बराबर मंत्रीजी के वैक्सीन लगाने आने वाले रास्ते पर। पर एक मंत्रीजी थे कि रेस्ट हाउस से वैक्सीन लगाने आने में आनाकानी कर रहे थे। उनका पीए उन्हें बराबर हौसला देते वैक्सीन लगाने को मोटिवेट कर रहा था, "सर! कुछ नहीं होगा इस वैक्सीन से। देखो तो, मैंने तीन डोज़ ले लिए हैं। सही सलामत आपके सामने हूँ।"
"पर यार!"
"सर! आप तो पैदा होने से ही एक्शन को जाने जाते हैं। और जिनमें एक्शन कूट-कूट कर भरा हो उन्हें सपने में भी रिएक्शन नहीं होता। अच्छा, एक बात बताओ, आज तक विपक्ष के किसी भी एक्शन का आप में कोई रिएक्शन हुआ? आपकी सेहत पर कोई असर पड़ा? नहीं न! तो तय मानिए, इसको लगाने से भी आपको कुछ न होगा सर! हो सकता है उल्टे वैक्सीन की ही बदनामी हो जाए। इसलिए नो टेंशन!
’सर! ज़रा खुले दिमाग़ से सोचिए, माना, पार्टी में रहते हुए भी सजग नेता पार्टी का नहीं होता। फिर भी पार्टी कोई चीज़ होती है कि नहीं। कभी-कभार ही तो कोई भी पार्टी अपने वर्करों से क़ुर्बानी माँगती है। सो, अब पार्टी का ऋण चुकाने का मौक़ा उन्होंने दिया है तो आपको भी पार्टी हित में मेरे हिसाब से आग का ये दरिया पार करना ही चाहिए। ऐसे में अब आप पार्टी पर क़ुर्बानी देते-देते बच जाएँ तो यह आपकी क़िस्मत! सर! आज तक डटकर आपने पार्टी को खाया ही तो है, अब वैक्सीन लगवा पार्टी के उस कर्ज़ को चुकाओ सर! बीवी पर फ़िदा होने के मौक़े तो मरने के बाद भी पल पल आते रहते हैं, पर एक आदर्श नेता को पार्टी पर फ़िदा होने के मौक़े कभी-कभार ही आते हैं सर!"
"पर यार! जो मुझे बायचांस ही सही, कुछ हो गया तो? तुम तो जानते हो जबसे मैं जनता का लोकप्रिय नेता हुआ हूँ, मैं केवल हर स्वदेशी दवा से दुआ तक सब जनता को ही समर्पित करता रहा हूँ। मैंने ख़ुद उसका कभी इस्तेमाल नहीं किया। यहाँ तक कि अपने रिश्तेदारों को भी उसका इस्तेमाल नहीं करने दिया। मैं अस्पताल जनता को समर्पित करता हूँ, पर अपना इलाज विदेशों में ही करवाता हूँ। मैंने आज तक स्वदेशी सिर दर्द की गोली भी स्वदेशी नहीं खाई । ऐसे में . . . बहुत डर लग रहा है यार! क्या ऐसा नहीं हो सकता कि वैक्सीन के बदले मेरे ख़ाली सिरिंज ही चुभो कर जनता का उल्लू बना दिया जाए?"
"नहीं हो सकता सर! आपके वैक्सीन लगाने का लाइव प्रसारण किया जा रहा है ताकि सोई देश की जनता में स्वदेशी वैक्सीन के प्रति विश्वास जागे। दूसरे वहाँ विपक्ष की अदृश्य आँखें आपका पीछा कर रही होंगी। ऐसे में . . . आपको पार्टी के लिए यह बलिदान करना ही होगा सर!"
"तो क्या ऐसा नहीं हो सकता कि स्वेदशी वैक्सीन की शीशी में विदेशी वैक्सीन भर मुझे लगा दी जाए?"
"ये भी मुमकिन नहीं सर!"
"क्यों?"
"क्योंकि पार्टी हेड ऑफ़िस ने तय किया है कि आपको स्वेदशी वैक्सीन लगाने से पहले जनता में छुपे किसी विपक्षी नेता को वह वैक्सीन दिखाई जाएगी कि वह पूरी तरह बाहर से भीतर तक स्वदेशी है। जब वह तसदीक़ करेगा उसके बाद ही सबके सामने वह वैक्सीन आपके लगाई जाएगी ताकि कल तक तो विपक्ष का मुँह बंद रह सके।"
" मतलब??"
"सर! अब कुछ नहीं हो सकता। पर यकीन मानिए, अपने देश में बनी वैक्सीन देश की आबो हवा के लिए पूरी तरह सेफ़ है। सर! आपका जब इतने बड़े बड़े कांड कुछ नहीं कर पाए तो ये वैक्सीन क्या ख़ाक कर लेगी?’ तभी जिस मंच पर सार्वजनिक रूप से मंत्रीजी को वैक्सीन के प्रचार के लिए वैक्सीन लगनी थी वहाँ से बार-बार फोन आने लगे कि जनता बेसब्री से मंत्रीजी का इंतज़ार करने के बाद जाने लगी है। अतः मंत्रीजी को जल्दी मंच पर लाया जाए।
. . . .और मंत्री जी मरते-मरते उस मंच पर आ गए जहाँ सार्वजनिक रूप से सबके सामने उन्हें स्वदेशी वैक्सीन दी जानी थी। जो मंत्रीजी पहले मंच का नाम सुनते ही पागल होने लगते थे, आज पहली बार उनकी मंच पर चढ़ते हुए साँसें उखड़ रही थीं। उन्हें धीरे-धीरे मंच की ओर बढ़ते देख उनके पेड पार्टी वर्कर गला फाड़ते हुए उनके अमर होने के नारे लगा रहे थे। पार्टी डॉक्टर बारबार सिरिंज में वैक्सीन भर कर उसे हवा में निकाल रहा था ताकि मंत्रीजी के वैक्सीन लगाते वक़्त डर के मारे सिरिंज की सूई का मूँह मंत्रीजी के आगे बंद न हो जाए।
ज्यों ही मंत्रीजी मंच पर चढ़े कि उनकी जय-जयकार और भी ज़ोर-ज़ोर से होने लगी। उनकी जय-जयकार जनता से अधिक उनके पेड चमचे कर रहे थे ।
मंच पर उनके चढ़ते ही पार्टी फोटोग्राफरों ने मोर्चा सँभाला। उनके वैक्सीनेशन कार्यक्रम का सीधा प्रसारण करने वाले अपनी तारों में उलझने लगे।
तभी भीड़ में छिपे विपक्ष के बंदे को पल में ढूँढ़ सादर मंच पर लाया गया। उसे सील लगी स्वेदशी वैक्सीन की शीशी चेक करवाई गई। जब विपक्ष के नेता को विश्वास हो गया कि स्वदेशी वैक्सीन सचमुच स्वदेशी है तो ज्यों ही मंत्रीजी ने आँखें बंद कर जनता के सामने पहली बार अपना कुरता खोला तो पार्टी डॉक्टर ने मंत्रीजी से इस अपराध की क्षमा माँगते, आँखें बंद कर उनकी बाजू से सिरिंज की सूई उनकी चमड़ी में घुसाने की बहुत कोशिश की, पर सूई भीतर ही न जा रही थी। तब उन्हें पहली बार पता चला कि नेता की और जनता की चमड़ी तक में ज़मीन आसमान का अंतर होता है। आख़िर दम कड़ा कर पार्टी डॉक्टर ने अपना पूरा ज़ोर सिरिंज पर केंद्रित किया, तब जाकर कहीं सिरिंज की सूई उनकी चमड़ी के भीतर गई। उसके बाद उसने प्रभु का स्मरण किया और वैक्सीन की डोज़ उनके शरीर में उतार दी। मंत्रीजी को वैक्सीन की डोज़ लगते ही उनके चारों ओर डॉक्टर इकट्ठा हो गए। एंबुलेंसें स्टार्ट हो गईं। सायरन बजने लगे। भीड़ में प्लाटिंड उनके चेले उनके विजय के नारे लगाने लगे।
पर ये क्या! अचानक वैक्सीन का रिएक्शन हो गया। इससे पहले कि डॉक्टरों को कुछ पता चलता, वे पगलाए से माइक पर आ गए। मंच पर के नेता उन्हें रोकने लगे तो वे उनको परे धकेलते माइक पर सीना बजा-बजाकर बोलने लगे, "डियरो! आज मैं पहली बार आप सबसे पूरी ईमानदारी से कहता हूँ कि इस देश को मैंने आज तक खाया ही खाया। मैं कहने को ही आपका लोकप्रिय नेता बना रहा। असल में पूछो तो मैं अपनी बीवी का भी प्रिय न रहा। इस देश को जोड़ने की आड़ में मैंने आज तक जितना तोड़ा, उतना अँग्रे़ज़ों ने भी नहीं तोड़ा। मैं शपथ खाकर कहता हूँ, जितना इस देश का शोषण अँग्रेज़ों ने नहीं किया, उससे अधिक मेरी बिरादरी ने किया। मैं आपके लिए जिन कल्याणकारी योजनाओं की बात करता रहा, वे वास्तव में सारी मेरे ही कल्याण की ही योजनाएँ थीं। कुर्सी पाने के लिए मत पूछो आपका लोकप्रिय नेता कितना कहाँ-कहाँ नहीं बिका? चुनाव जीतने के लिए उसने क्या-क्या नहीं किया। कुर्सी पर बने रहने के लिए उसने क्या-क्या नहीं किया? मुझसे नीच, गिरा हुआ शायद ही इस धरती पर और कोई जीव हो . . ." उनको ईमानदारी से बहकता देख मंच के दूसरे नेता उनको जितना माइक के पास से हटाने की कोशिश करते, कहते-कहते वे उतना ही उनको माइक से परे छिटक देते, " . . . हाँ तो डियरो! मैंने आज तक आपके साथ आपके हित की बातें करते गप्पें ही मारीं। मैंने आज तक . . . मैंने आज तक . . . मैंने आजतक . . . " और वे सच कहते-कहते गश खाकर मंच पर ही गिर पड़े। इससे पहले कि वे पुनः सच कहने को उठ पाते कि साथ खड़े पार्टी डॉक्टर ने उनको वैक्सीन का रिएक्शन ख़त्म करने वाला इंजेक्शन बिना सिरिंज के ही लगा दिया। पर भला हो मंच पर खड़े उस विपक्ष के नेता का कि जिसने मौक़ा-ए-वारदात की स्थिति सँभाल मंत्रीजी के वैक्सीन वाले कार्यक्रम का लाइव करने वाले यंत्रों की मेन तार ऐन मौक़े पर अपने दाँतों से काट दी थी वर्ना . . .
1 टिप्पणियाँ
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अच्छा व्यंग्य। अभी एक विडियो वायरल हो रहा है जिसमें नर्स ने वैक्सीन के नाम पर खाली सिरींज हीं लगा दिया। मैने गौर से देखा तो वह नर्स के यूनिफार्म में नहीं थी। शायद आशा वर्कर या आंगन बाड़ी कार्यकर्ता रही हो।
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