हम हैं तो मुमकिन है

15-12-2021

हम हैं तो मुमकिन है

डॉ. अशोक गौतम (अंक: 195, दिसंबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

जिस तरह जन्म से ग़रीबों के केंद्र में बृहस्पति होने के बाद भी वह उम्र भर उन्हें राहू केतु का ही फल देता है उसी तरह नेताजी के केंद्र में कुर्सी होने के बाद भी चुनावी दिनों में उनकी कुर्सी वक्री चली हुई थी। वे परेशान थे कि इस बार चुनाव में वोटों का जुगाड़ कैसे किया जाए? जनता को पटाने का उन्हें शर्तिया जुगाड़ नहीं मिल रहा था। उनके लिए हर जुगाड़ सम्भव था, पर चुनाव में वे वोट के जुगाड़ को सम्भव बनाने के लिए हर सम्भव से लेकर असम्भव तक कोशिश में लगे थे। 

वोट जुगाड़ के इसी सम्भव से लेकर असम्भव पर मंथन करते कल ज्यों ही उन्हें उनके ख़ास ने बताया कि होरी फिर मृत्यु शैया पर आराम से यमदूतों का इंतज़ार करता लेटा है तो उनका सीना फूल कर अस्सी हुआ। वाह! ये हुई न बात! अब देखो कैसे वे होरी के गाँव में पचास वोटों पर अपना नाक साफ़ करते हैं। 

उन्होंने तत्काल अपने गाड़ीवान को आदेश दिया, “हे मेरे पायलट! बिन चाबी के ही गाड़ी र्स्टाट की जाए। अभी के अभी! वे इसी वक़्त यमदूतों के आने से पहले होरी से मिलना चाहते हैं। इससे पहले कि यमदूत होरी को उठा ले जाएँ वहाँ पहुँचना चाहते हैं।” अपने मालिक का आदेश पा गाड़ीवान ने गाड़ी का वायुयान बनाया और वे हवा से भी तेज़ गति से होरी के घर जा पहुँचे। शुक्र है, तब तक यमदूत उसे लेने नहीं आए थे। 

वे गाड़ी से उतरे और सीधे होरी की झोपड़ी में। जब उन्होंने होरी को मृत्यु शैया पर जीवित देखा तो उनकी जान में जान आई। 

झोपड़ी में सामने होरी टूटी चारपाई पर यमदूतों का पल-पल इंतज़ार करता। होरी ने ज्यों ही यमदूतों के बदले नेताजी को सामने देखा तो होरी एक बार फिर काँपा। उसे अपने से डरते देख नेताजी ने उसके सिर पर हाथ फेरते पूछा, “डियर होरी! फिर जा रहे हो?” 

“जा रहा हूँ साहेब! अब किसान आंदोलन भी ख़त्म हो गया। मरने वाले मर गए। जिनको राजनीति चमकानी थी वे अपनी बाँछें चमकाने बैठे हैं। बिलों की वापसी भी हो गई। मेरा अब यहाँ क्या काम! पर यमदूतों के बदले आप?” 

“हाँ होरी हम! जब तक हम यहाँ हैं तब तक यमराज के ही नहीं, किसीके भी दूत तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। जहाँ न पहुँचे रवि, चुनाव के दिनों में वहाँ पहुँचे नेताजी कवि। तुम्हारी क़सम होरी! इस धरती पर बार-बार आवागमन से छुटकारा दिलवाने के लिए अबकी बार हम तुम्हें स्वर्ग दिलवाने आए हैं। हम चाहते हैं कि अब तुम्हें मोक्ष मिल ही जाए,” मोक्ष का नाम सुन होरी के पाँवों की तरफ बैठी मायूस धनिया उछल पड़ी, “आप ऐसा भी कर सकते हो क्या नेताजी?”

“हाँ! हम हैं तो सब मुमकिन है। हम कुछ भी कर सकते हैं। तुम्हें पता नहीं, हमने कितनों का स्वर्ग दिलवाया है? अरी बावली! आधे से अधिक स्वर्ग तो मेरे भेजों से ही भरा पड़ा है। अब सब मज़े कर रहे हैं वहाँ!” नेताजी ने चुनावी मूँछों पर ताव देते कहा तो धनिया होरी के पास से सरकती बोली, “तो मुझे भी स्वर्ग दिलवा दो न! बहुत तंग आ गई हूँ इस बस्ती में,” धनिया ने मरते होरी के पाँव छोड़ नेताजी के पाँव पकड़े तो नेताजी गद्‌गद्‌ हुए, “तुम्हें भी दिलवा दूँगा धनिया समय आने पर। अभी होरी को स्वर्ग की सख़्त ज़रूरत है। हम हैं न! टेंशन काहे की लेती है तू? बस, अबके भी हमें वोट भर तो देनी है,” नेताजी ने पूरे आत्म विश्वास से धनिया की आँखों में झाँकते कहा तो धनिया धन्य होती बोली, “आप चिंता न करे साहेब! पूरी बस्ती के वोट गोबर के सिर पर हाथ रख आपके। पर मेरे लिए . . . ”

पर मुत्यु शैया पर लेटा होरी मायूस ही रहा! उसका उस वक़्त स्वर्ग में क़तई इंट्रेस्ट न था। पता नहीं क्यों! वह तो बस, यही सोच रहा था कि काश! यमदूत आ जाते तो उसे . . . ” कुछ देर इधर–उधर देखते नेताजी ने होरी से कहा, “देखो होरी! तुम हमारे ख़ास हो। हर जन्म में हमारे साथ आँखें मूँद कर खड़े रहे हो, हमारे विरोधियों से सिर बाजू तुड़वाते लड़े रहे हो। यह लो हमारा लेटर! वहाँ जाते ही इसे अपना मुँह दिखाने से पहले यमराज को दिखा देना कि मेरे ख़ास नेताजी ने दिया है,” कहते नेताजी ने उसके सिरहाने अपनी जेब से निकाल वह काग़ज़ का पुर्जा रखा तो धनिया ने होरी को सहलाते पूछा, “इस काग़ज़ के पुर्जे को दिखा क्या होगा नेताजी? धनिया का उस काग़ज़ के पुर्जे में धीरे-धीरे विस्मय जागने लगा तो नेताजी मुस्कुराते बोले, “इस काग़ज़ के पुर्जे में बहुत दम होता है धनिया! हम जैसे इस पर जो कुछ भी लिखकर दे दें तो क्या मजाल कोई वह करने से इनकार कर जाए। हमने इस पर लिखा है कि होरी पहले ही किसान आंदोलन में बहुत तंग हो चुका है। उसे मरने के बाद अब और तंग न किया जाए। उसे सबको किनारे कर सबसे पहले हर हाल में तत्काल स्वर्ग दिया जाए। वर्ना हमसे बुरा कोई न होगा! जा होरी! अब ख़ुशी-ख़ुशी मरते ऐश कर,” रौब से कहते नेताजी ने काग़ज़ का वह पुर्जा मरते होरी की जेब में डाला और धनिया को हिदायत देते बोले, “देख धनिया! अब होरी का कफ़न की भी ज़रूरत नहीं। गाय की भी ज़रूरत नहीं। पंडित की भी ज़रूरत नहीं। इसके पास मेरी यमराज को लिखी चिट्ठी ही काफ़ी है, और हाँ होरी! जब स्वर्ग में जाओ तो हमें फोन ज़रूर करना। भूल मत जाना। गुड बॉय होरी! बी हैप्पी! स्वर्ग में अपनी मस्ती के क़िस्से मेरे वोटरों से व्हाट्सएप ग्रुप पर ज़रूर शेयर करते रहना। इससे मेरे वोटरों का मेरी जनकल्याणकारी नीतियों पर विश्वास और मज़बूत होगा,” नेताजी ने सामने यमदूत आते देखे तो दुम दबाए वहाँ से मुस्कुराते दस तीन तेरह हो लिए, बार-बार पीछे मुड़ते देखते हुए। 

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