अंधेर नगरी फ़ास्ट क़ानून
डॉ. अशोक गौतमबीसियों बार अंधेर नगरी की कच्ची सड़क पक्की होने के होते रद्द होते टेंडर अबके जो राजा के ख़ास ठेकेदार के नाम पास हुए तो तब जाकर सड़क पक्की होने का काम शुरू हुआ। यह देख अंधेर नगरी के बाशिंदे प्रसन्न कि अब उन्हें पर गधों पर बैठ कुछ दिनों तक गड्ढों में गिरना नहीं पड़ेगा।
....और चुनाव के आख़िरी साल में सड़क का सामान कुछ इसके घर तो कुछ उसके घर लगने के बाद अंधेर नगरी की कच्ची सड़क दिखने में बाहर से पक्की हो गई। अब इंतज़ार था तो बस, राजा का कि राजा को जो फ़ुर्सत मिले तो वे उसका उद्घाटन कर उसे अंधेर नगरी की अंधी जनता को समर्पित करें। पर राजा तो विजयी अभियान पर निकले थे।
इसीलिए अंधेर नगरी के डीएम ने अपने ख़ास पुलिस अफ़सर की ड्यूटी यह आदेश देते चोर डाकुओं से जनता को बचाने के बदले नई बनी सड़क की देखरेख के लिए लगा दी थी कि जब तक राजा सड़क का उद्घाटन नहीं कर लेते, तब तक सड़क पर तो सड़क पर, सड़क के ऊपर नीचे जो भी चले, उसे तत्काल क़ानून के तहत सज़ा दी जाए। जब तक सड़क राजा द्वारा जनता को समर्पित नहीं कर दी जाती, तब तक सड़क पर राजा का हक़ रहेगा।
डीएम के आदेश पा पुलिस के आला अफ़सर ने सड़क के साथ लगते इलाक़ों में एक ईमानदार पुलिस वाले के गले में ढोल डाल ढिंढोरा पिटवा दिया , "आम और खास गधों सहित सारी आम जनता को सूचित किया जाता है कि अंधेर नगरी की बीसियों के खाने के बाद बची सामग्री से जो नई सड़क बनी है, उस पर तब तक आकाश में पच्छी, जमीन के नीचे चींटी , सड़क पर हवा का चलना निषेध माना जाएगा, जब तक राजा उसे जनता को समर्पित नहीं कर लेते। इस ढिंढोरे को तत्काल प्रभावी माना जाए। सड़क जब राजा जनता को समर्पित कर देंगे, उसके बाद जनता की मर्जी वह उसका जैसे चाहे सदुपयोग दुरुपयोग करे। जो कोई इस सरकारी ढिंढोरे की अवहेलना करता पाया जाएगा, उसे पाँच साल का अति कठोर कारावास या दस हजार रुपए जुर्माना या दोनों किया जाएगा," पुलिस का ढिंढोरा सुन गधे तो गधे, अपने का बीस मारखां समझने वाले घोड़े तक सहम गए। सब दुआ करने लगे कि जितनी जल्दी हो राजा सड़क का उद्घाटन कर उसे जनता को कब्ज़ाने को समर्पित करें तो उनकी जान बचे।
.....और एक दिन जब पुलिस वालों का दस्ता सुस्ताते हुए सड़क की रखवाली कर रहा था कि अचानक एक पुलिसवाले की सोई नज़र सड़क पर पड़ी। उसने देखा कि एक भैंस राजाजी से पहले सड़क पर चल रही है, इतराती, पूँछ हिलाती। भैंस सड़क पर! उस सड़क पर जिस पर वे भी फूँक-फूँक कर क़दम धर रहे थे। राजा से पहले भैंस सड़क पर कैसे चल सकती है? सड़क पर भैंस चलते देख पुलिस दस्ता दंग रह गया। भैंस की इतनी हिम्मत कैसे? क्या इस भैंस को अपनी जान प्यारी नहीं? इससे पहले की मीडिया की पैनी नज़र राजा से हटकर भैंस पर पड़ती, उन्होंने भैंस को पूँछ से पकड़ा और उसे सड़क के किनारे ले गए इंटेरोगेशन के लिए। उन्होंने इधर-उधर देखा, पर उस वक़्त उनके अतिरिक्त किसीकी भी नज़र भैंस पर नहीं पड़ी थी। थैंक गॉड! उन्होंने कुछ चैन की साँस ली। जो राजाजी के नई सड़क के उद्घाटन से पहले मीडिया भैंस को सड़क पर देख लेता तो ग़ज़ब हो जाता। सारी मुस्तैदी पानी में चली जाती।
"री गधी भैंस सड़क पर? ये क्या हो रहा है? जान प्यारी नहीं है क्या?"
"क्यों? क्या हो गया! भैंस सड़क पर नहीं चलेगी तो क्या हवा में उड़ेगी?" भैंस ने मुँह में चारा न होने के बाद भी जुगाली करते पूछा तो पुलिस दस्ता परेशान! यार, किसकी भैंस होगी ये? आम भैंस तो इतनी बदतमीज़ हो नहीं सकती!
"खुद तो मरेगी ही ,पर क्या हमें भी मरवाएगी बदज़ात? जानती नहीं कि..."
"सड़क पर चलना गुनाह है क्या?"
"हाँ! जब तक राजा सड़क को तुम्हें समर्पित नहीं कर देते तब तक तो बहुत बड़ा गुनाह है। जब राजा एक बार सड़क पर चल दिए, उसके बाद तुम्हारी मर्ज़ी जो तुम चाहो सड़क का करो, सड़क पर करो। तुम इस पर मूतो चाहे इस पर गोबर करो। जूते मारेंगे उसको उसके बाद जो कोई तुम्हें सड़क पर कुछ भी करने से रोके," दूसरे पुलिस वाले ने टूटा डंडा दिखाया तो भैंस का डर के मारे सड़क पर गोबर हो गया। सड़क पर गोबर?? सड़क की रखवाली को गश्त पर तैनात पुलिस वालों का मुखिया चौंका तो भैंस ने डरते हुए कहा, "हुज़ूर! भैंस हूँ तो गोबर ही करूँगी न! गोबर राकेने पर आजतक किसका बस चला? गू करने से तो रही। अब हो गया तो हो गया।"
"कैसे हो गया? बिन उद्घाटन हुई सड़क पर गोबर? अपराध! घोर अपराध! अब तुम्हें क़ानून से कोई नहीं बचा सकता। अब तो तुम्हें हर हाल में सज़ा मिलकर ही रहेगी? लोअर इंस्पेक्टर! डीएम को फोन लगाओ," अप्पर इंस्पेक्टर का आदेश सिर माथे लेते लोअर इंस्पेक्टर ने डीएम को स्विच ऑफ़ फोन से फोन लगाया और वह तुरंत लग भी गया, "हुजूर की जय हो जनाब!"
"क्या है?" डीएम भौंके।
"हुजूर भैंस सड़क पर गोबर करती पकड़ी गई है," कहते उसने अपना पेट अंदर किया।
"गोबर की बास तो मुझे भी आ गई थी पर . . . हमने सोचा तबेले से आई होगी।"
"हुजूर! ऑर्डर दें, अब इस भैंस का क्या करें?"
"इसको ऑन द स्पाट दस हज़ार रुपए जुमार्ना कर दो।"
"पर सरकार! भैंस है।"
"तो इसे पाँच साल की जेल की सज़ा दे दो ताकि सड़क का उद्घाटन होने के बाद किसीकी भी सड़क पर गोबर करने की हिम्मत न हो।"
"पर सरकार भैंस है।"
"मतलब??"
"भैंस सर! भैंस!"
"आई मीन बफैलो! बफैलो ही है न? बफैला तो नहीं? अच्छा तो, भैंस किसकी है?"
"सेहत से तो आम किसान की ही लगती है। पर फिर भी पूछ लेते हैं। क्योंकि आजकल राजा की भैंसें भी जनता की भैंसों सी ही हो गई हैं।"
"ओके ओके! तो पहले पता करो कि भैंस किस लेबल के बंदे की है। उसके हिसाब से ही एक्शन लेने की सोचेंगे," कह डीएम ने फोन काटा तो पुलिस वाले आगे की जानकारी जुटाने में कर्तव्यबद्ध हुए।
"तो तू किसकी भैंस है?" अप्पर इंस्पेक्टर ने तफ़्तीश करते पूछा।
"अपने मालिक की और किसकी,"भैंस ने अप्पर इंस्पेक्टर की आँखों में आँखें डालते कहा।
"होगी तो तू किसी न किसी की ही पर तेरा मालिक किस स्तर का है? आई मीन कि . . ."
"अपना मालक संचालक मैं क्यों बताऊँ?"
"बताना पड़ेगा। इसीमें तेरी और हमारी भलाई है। वर्ना तू तो गई पाँच साल के लिए अंदर!"
"जनाब! वहाँ भरपेट चारा तो मिल जाएगा न?" भैंस ने भोलेपन से पूछा तो अप्पर इंस्पेक्टर को लगा, ज़रूर किसी गधे की भैंस होगी। उसने इधर-उधर कनखियों से अपने साथियों को देखा। उन्होंने मौन हामी भरी तो वे सब भैंस के गले में हथकड़ी डाल उसके न बताने के बावजूद भी उसके घर जा पहुँचे।
"ये भैंस तुम्हारी है क्या?"
"हाँ तो! क्या किया इसने? फिर किसीके खेत में चारा खा आई?"
"नहीं, राजा के उद्घाटन करने से पहले सड़क पर चलने के अपराध के साथ ही साथ इसने सड़क पर गोबर करने का अपराध भी किया है।"
"मतलब, एक साथ दो-दो अपराध," सुन भैंस का पालक मन ही मन मुस्कुराया।
"हाँ! इसकी सज़ा है कि या तो भैंस दस हज़ार रुपए जुर्माना भरे या फिर पाँच साल को खामुशक्कत जेल जाए।"
"पर जनाब! ये तो भैंस है। जिसके पास देने का दूध तक नहीं वह दस हज़ार कहाँ से देगी?" भैंस का पालक भैंस वाले से वकील हुआ, "क्यों न, कुछ आपस में ही . . ."
"समझते क्यों नहीं यार! साहब तक इसके गोबर की बास रिकॉर्ड हो चुकी है। और जानते हो वे कितने सख़्त हैं? अगर बास उन तक न पहुँच हम तक भी रहती तो भी हम . . .इसलिए, अब हमारे लाख चाहने खाने के बाद भी कुछ नहीं हो सकता। अब तो दस हज़ार बोले तो पूरे दस हज़ार। पाँच साल की क़ैद बोले तो पूरे पाँच साल की क़ैद। जुर्माना कौन देगा? तुम जानो! सज़ा कौन काटेगा? तुम जानो!"
"पर हुजूर! ये कहाँ का न्याय है? गोबर करे भैंस, और भुगते उसका पालक। सड़क पर राजा से पहले चले भैंस, और भुगते उसका पालक!"
"देखो! न्याय बरक़रार रखने के लिए सज़ा तो किसी न किसी को तो होकर ही रहेगी। सज़ा किसको हो रही है? इससे सज़ा को कोई लेना-देना नहीं। हमें तो अपने शहर में क़ानून व्यवस्था बनाए रखनी है बस! इसे बनाए रखने के लिए हमें किसीको तो सज़ा देनी ही पड़ेगी न, तुम हमारी मजबूरी को समझते क्यों नहीं डियर!"
"पर हुजूर . . ." तभी भीतर से भैंस के पालक की पत्नी ने आवाज़ दी, "अजी, सुनते हो।"
"क्या है? सौदा करने दे।"
"फोन आया है।"
"किसका?"
"राजाजी के वजीर का।"
"वजीर साहब का?"
"हाँ! पूछ रहे हैं उनकी भैंस कैसी है?"
"कह दो उसने नई सड़क पर गोबर कर दिया है और . . ." तभी पुलिस के अप्पर इंस्पेक्टर ने भैंस के पालक के मुँह पर हाथ रखते कहा, "यार! पहले नहीं बता सकते थे? मरवाओगे क्या?"
"मुझे क्या पता था? मैं तो समझा था कानून इज कानून," वज़ीर की भैंस के पालक ने भैंस के गले में बाँहें डालते कहा।
अप्पर इंस्पेक्टर के इशारे पर लोअर इंस्पेक्टर ने डीएम साहब को स्विच ऑफ़ फोन से एकबार फिर फोन मिलाया, "हुजूर! हुजूर!"
"अब क्या है? कहा न! दोनों में से किसीको भी सज़ा कर दो। भैंस को या फिर मालिक भैंस को। एक ही बात है।"
"पर जनाब, भैंस तो राजा के वजीर की है," उसने मुँह पर हाथ रखे कहा।
"मतलब?? तो उसे छोड़ दो और भैंसवाले से कहो कि वह वजीर से इस बारे कोई बात न करे," डीएम साहब ने फोन काटा और भगवान से पता नहीं क्या-क्या प्रार्थना करने लग गए।
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