मूर्तिभंजक की मूर्ति का चीरहरण

01-09-2023

मूर्तिभंजक की मूर्ति का चीरहरण

डॉ. अशोक गौतम (अंक: 236, सितम्बर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

(परसाई जन्मशती के अवसर पर)

 

वह एक समय का अपनी भाषा में अपने समय का महान मूर्तिभंजक व्यंग्यकार था। उसने अपनी क़लम से हर सुव्यवस्था की पेट में छुपी कुव्यवस्था की मूर्ति को तोड़ा। इतना तोड़ा कि तब उसके डर से व्यवस्था की व्यवस्था से हज़ार-हज़ार गुणा सुंदर-सुंदर मूर्तियाँ बनाने वाले मूर्तिरंजकों ने व्यवस्था की मूर्तियाँ बनानी ही बंद कर दीं। 

मूर्तिभंजक की जब मूर्तियाँ तोड़ते-तोड़ते मृत्यु हुई तो व्यवस्था से पारिश्रमिक ले व्यवस्था की एक से एक मनोहारी मूर्तियाँ बनाने वालों ने चैन की साँस ली। वे फिर लकवाग्रस्त व्यवस्था की सुंदर-सुंदर लोक लुभावनी मूर्तियाँ बनाने में जुट गए। व्यवस्था की एक से एक सुंदर मूर्तियों से एक बार फिर जनअंधविश्वास के बाज़ार में एकाएक उछाल आ गया। लोग लोमहर्षक व्यवस्था की मनहर्षक मूर्तियों को देख एक दूसरे का मुँह देखने लगे। 

देखते ही देखते जनता का व्यवस्था में अंधविश्वास जगाने के इरादे से जगह-जगह व्यवस्था की मूर्तियाँ स्थापित होने लगीं। कहीं बेईमानी की मूर्तियाँ लगने लगीं तो कहीं सरकारी धन चोरों की। चौक -चौक भाई-भतीजावाद की मूर्तियों के अनावरण होने लगा। चौक- चौक झूठ की मूर्तियों की पूजा होने लगी। देखते ही देखते शहर व्यवस्थागत मूर्तियों से भर गया। शहर आदमी कम तो मूर्तियाँ अधिक। तब मूर्तियाँ आदमियों को देखतीं तो आदमियों पर हँसने लगतीं। जब आदमी अपने पर मूर्तियों को हँसते हुए देखता तो उसका मन मूर्ति होने को व्याकुल हो उठता। मूर्तियाँ प्रेमी व्यवस्था मूर्तियाँ स्थापित करने को दिल खोलकर पैसे की व्यवस्था करने लगी। व्यवस्था को लगा, जनता को रोटी नहीं, मूर्तियाँ चाहिए। व्यवस्था को लगा, जनता को कपड़ा नहीं, मूर्तियाँ चाहिए। व्यवस्था को लगा, जनता की पहली प्रथमिकता मकान नहीं, व्यवस्थागत मूर्तियाँ हैं। 

अब व्यवस्था प्रसन्न थी। उसके सामने कोई ऐसा मूर्तिभंजक नहीं था जो उसकी बनाई मूर्तियों को चुनौती दे सके। शहर में मूर्ति भंजकों की हालाँकि अब भी कोई कमी न थी। पर भीतर से वे सब मूर्ति रंजक हो गए थे। पुरस्कारों की भूख ने उन्हें व्यवस्था का भाट बना दिया था। जहाँ भी व्यवस्था कोई मूर्ति स्थापित करने की सोचती, वहाँ पहले ही वे मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हेतु मंत्रोच्चारण करने सिर पर पैर रख पहुँच जाते। व्यवस्था प्रसन्न! तथाकथित मूर्तिभंजकों को अपने साथ देख वह फूली न समा रही थी। उसे मूर्ति भंजकों का मौन समर्थन दिल खोलकर मिल रहा था। 

दोगले मूर्ति भंजकों को अपने साथ चलते देख व्यवस्था के मन में आई कि क्यों न नाम मात्र के बचे व्यवस्था विरोधी मूर्ति भंजकों को सबक़ सिखाने के इरादे से दिवंगत मूर्तिभंजक व्यंग्यकार की जन्मशती पर उसकी मूर्ति के अनावरण के बहाने उसका चीर हरण किया जाए। मरने के बाद ही सही। ज़िन्दा जी तो वह परेशान नहीं हुआ, तो क्यों न उसके मरने के बाद उसे परेशान किया जाए। 

दिवंगत मूर्तिभंजक व्यंग्यकार को जैसे ही इस बात की गुप्त सूचना अपनी जमात के उँगली पर गिने जाने वाले व्यंग्यकारों के माध्यम से मिली कि उसकी मूर्ति शीघ्र ही सरकार द्वारा उसी के शहर के चौक पर लगाई जा रही है तो मूर्ति भंजक व्यंग्यकार बेचैन हो उठा। उससे भी बहुत अधिक जितना वह जीवित होने पर हुआ करता था। उसे पता तो था कि व्यवस्था, व्यवस्था की कुरीतियों का विरोध करने वालों से एक न एक दिन बदला तो लेकर रहती है, पर वह इस तरह बदला लेगी, उसे पता न था। 

अपनी ओर से उसने शहर के ईमानदार नागरिकों के माध्यम ये लाख कोशिश की कि उस मूर्तिभंजक की मूर्ति न लगाई जाए। पर उनकी सुनने वाला वहाँ था ही कौन? देखते ही देखते दूसरे सारे विकास के कामों को बंद कर उसकी मूर्ति को बेईमानों से भरे शहर को समर्पित करने की तैयारी ज़ोर-शोर से शुरू हो गई। मूर्तिभंजक की मूर्ति को बनाने का ठेका प्रभावी उन्होंने अस्सी प्रतिशत कमीशन पर अपने साले को दिलवाया जो बच्चों को खिलौने बनाने की फ़ैक्ट्री चलाता था। 

मूर्तिभंजक की मूर्ति को बनाने के लिए जो मैटेरियल टेंडर में चाहा गया मूर्तिभंजक की मूर्ति बनाने वाले ने उससे हल्का मैटेरियल मूर्तिभंजक की मूर्ति में पूरी ईमानदारी से लगाया गया। शहर के बीचों बीच मूर्तिभंजक की मूर्ति के नीचे जो चबूतरा बनना तय हुआ था, उसे बनाने के लिए पीडब्लूडी के ठेकेदार ने रेत को दूर से ही सीमेंट के दर्शन करवा पुण्य प्राप्त करवाया। 

नियत तिथि को मूर्तिभंजक की मूर्ति का अनारवण उन द्वारा तय हुआ जिन पर भ्रष्टाचार के पचासियों केस चले थे। पर वे जनता की सेवा करने में तब भी तन मन से डटे थे। उन्होंने साफ़ कह दिया था कि जब तक उन पर भ्रष्टाचार के केस सिद्ध नहीं हो जाते, तब तक वे जनता की इसी भाव से सेवा करते रहेंगे। 

मूर्तिभंजक की मूर्ति कौवों, कबूतरों को सौंपने के लिए उसके चीर हरण के अवसर के पर मूर्तिभंजक के गले में फूलों की मालाएँ डालने के लिए सरकारी आयोजकों द्वारा पचास की माला पाँच सौ में ख़रीदी गई। मूर्तिभंजक की मृत्यु शुगर की बीमारी के होने के चलते मूर्तिभंजक की मूर्ति का नेताजी द्वारा चीरहरण के तुरंत बाद वहाँ इकट्ठा हुए सरकारी मूर्ति भंजकों को भर पेट मोतीचूर के लड्डू बाँटे गए। तब मूर्तिभंजक व्यंग्यकारों की नई जमात व्यवस्था के कमर कमलों से मोती चूर के लड्डू प्राप्त कर सत्ता सुखों की अधिकारी हुई। 

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