नशा मुक्ति केंद्र में लेखक
डॉ. अशोक गौतमकई दिनों से मुझे यह तो अहसास हो गया था कि अपने मुहल्ले में जो नया सा बंदा ख़ूबसूरत बीवी के संग किराए पर रहने आया है वह किसी लत का शिकार ज़रूर है। पर फिर मैंने सोचा मुझे क्या? लत यहाँ किसे नहीं? सभी किसी न किसी नशे के शिकार होकर सड़क से लेकर संसद तक धक्के खा रहे हैं, सो चुप रहा।
ल बंदे की बीवी रोती हुई मेरे घर आई तो कलेजा मुँह को आ गया। सच कहूँ, जब किसी की बीवी रोती हुई दिखती है तो पता नहीं क्यों मेरी आँखों में आँसू न होने के बाद भी अचानक टप- टप आँसू कहाँ से बहने लगते हैं? अपनी तो अपनी, रोती हुई बीवी तो मुझे दुश्मन की भी बुरी लगती है।
वे आईं तो आते ही फफक- फफक कर रोती हुईं बोली, "भाई साहब! बड़े दिनों से कहना चाह रही थी आपसे, पर हिम्मत नहीं हो रही थी। आज सब्र का बाँध टूट गया सो..." शुक्र है देश में किसीके सब्र का बाँध तो टूटा। सुन बहुत राहत मिली।
"क्या बात है? ये आँसू और आपकी आँखों में? जिन आँखों में सुरमा होना चाहिए था उन आँखों में आँसू? ये आँसू आख़िर तुम्हारी बिल्ली सी आँखों में दिए किसने? उसका नाम बता दो तो अभी जाकर उसे ऐसा सबक सिखाऊँ कि वह तो वह, उसकी पिछली दस पुश्तों तक को भी पता चल जाए कि मैं आख़िर कौन हूँ," कह मैं आपे से बाहर हुआ तो वे इशारों ही इशारों में मुझे अपनी खाल में रहने को समझाती बोलीं, "क्या है न कि भाई साहब! अब तो हद ही हो गई। पिछला कमरा भी इसीलिए छोड़ कर आए थे। मकान मालिक ने हमें कहा था कि...."
"क्या कहा था? हर महीने कमरे का किराया नहीं दे पाए थे क्या?" सोचा, समय रहते अपने दोस्त को सूचित कर उसके प्रति अपनी वफ़ादारी का उदाहरण पेश करूँ।
"वह बात नहीं थी भाई साहब!"
"तो क्या बात थी? महाशय चौबीसों घंटे पीकर रहते हैं क्या? सच कहूँ तो जब से आप लोग मुहल्ले में आए हो महीना हो गया आपको आए, पर साहब के दर्शन नहीं हुए। आख़िर क्या करते रहते हैं वे दिन भर पड़े-पड़े? बाहर की हवा उन्हें रास नहीं आती या...."
"क्या बताऊँ भाई साहब! सोच रही हूँ अब उन्हें नशा निवारण केंद्र में ले जा उनका इलाज करवा ही लूँ। अब तो पानी सिर से ऊपर हो गया है," उन्होंने कहा तो लगा बंदा ज़रूर चरसी होगा। सभ्य आदमी से उसकी बीवी कभी शिकायत नहीं करती। वही सबसे उसकी शिकायत करता है। भंगी होगा? या कि हरदम गुटखे से मुँह भरे होता होगा? कि पी कर पड़ा रहता होगा हरदम चारपाई पर। तभी तो जब से हमारे मुहल्ले में आया है, उसके दर्शन ही नहीं हुए हैं।
"तो ये बात है?"
"जी भाई साहब!" कह वे कुछ नॉर्मल हुईं।
"तो??"
"आपके यहाँ नज़दीक कोई नशा मुक्ति केंद्र हो तो मैं इन्हें वहाँ एक बार दिखाना चाहती हूँ ताकि उन्हें इस लत से मुक्ति मिले और मैं सफल वैवाहिक जीवन इनके साथ जी सकूँ।"
"कोई बात नहीं। आपका दर्द अब हम सबका सांझा दर्द है," कह मैंने उन्हें सांत्वना दी तो उन्होंने पूछा, "तो कब चलें इन्हें लेकर वहाँ?"
"कब क्या?? अभी ले चलते हैं," असल में मुहल्ला विकास समिति का सह सचिव रामदीन लंच करने अपने घर आया था और लंच करके ऑटों लेकर जाने ही वाला था। उसे सामने देख मैंने उसको पास बुला सब बाताया तो वह मुहल्ला विकास समिति का सहसचिव होने के नाते जनहित के लिए एकदम राज़ी हो गया।
हमने आव देखा न ताव, तीनों ने उनके पति को उनके कमरे से ज़बरदस्ती उठाया और ऑटो में डाल दिया। उस समय महाशय पूरी तरह सुरूर में थे।
आधे घंटे में हम तीनों महाशय को नशा मुक्ति केंद्र में पहुँचाने में सफल हो गए। रामदीन को पता था था कि काम जनकल्याण का है, सो जहाँ भी उसे लगता कि ऑटो बंद कर भी चल सकता है, वहाँ-वहाँ वह पूरा रिस्क ले ऑटो बंद कर ही चला रहा था। हालाँकि उनके पति ने इस अप्रत्याशित हमले से बचने की कोशिश भी की पर वह क्या मेरे चंगुल से कैसे बच जाता क्योंकि आज तक कोई मेरे चुंगल से बचा ही नहीं।
जैसे ही ऑटो नशा मुक्ति केद्र में पहुँचा तो बंदे के होश उड़े हुए। हम तीनों ने जैसे कैसे उसे नशा मुक्ति केंद्र में डॉक्टर के सामने कुर्सी पर पटक दिया। उस समय जो डॉक्टर ड्यूटी पर तैनात था उसके हाव-भाव देख कर वह सही हालत में बिलकुल नहीं लग रहा था। पर इस देश में ड्यूटी टाइम में किसी को कुछ कहना सबसे बड़ी मूर्खता होती है सो हम तीनों चुप रहे। आख़िर डॉक्टर साहब ने हमें घूरते हुए पूछा, "क्या हुआ है इसे?"
"साहब डेड लती है," मैंने उसे कुर्सी पर बिठा सँभालते कहा।
"क्या नशा लेता है? गुटखा खाता है?"
"नहीं," उसकी बीवी ने सिर झुकाए कहा।
"चेन स्मोकर है?"
"नहीं," उनकी बीवी ने फिर सिर झुकाए कहा।
"चरसी है?"
"जी नहीं।"
"तो शराब पीता है?" पूछने के साथ- साथ डॉक्टर साहब की खीझ भी बढ़ती जा रही थी।
"नहीं?"
"तो रिश्वत लेने की लत होगी इसे? इस लत ने आज भगवान तक को नहीं छोड़ा।"
"जी नहीं, आज तक इन्होंने रिश्वत ही दी है।"
"तो इधर-उधर मुँह मारने की बीमारी होगी? ये इंजेक्शन अभी लगता हूँ। ये तो क्या इस इंजेक्शन को बनाने वालों को दावा है कि जो मजनू, रांझा को लगता तो वे तो क्या उनके पुरखे तक इश्क़-मुश्क भूल गृहस्थ जीवन जीते।"
"नहीं डॉक्टर साहब! इधर-उधर क्या ख़ाक मुँह मारेंगे? ये तो मुझे भी नहीं देखते। बस, जब देखो, शून्य में ही कुछ निहारते रहते हैं।"
"ज़बरदस्ती विवाह तो नहीं हुआ है इससे आपका? कहीं पुराने प्रेम का रोग तो नहीं हैं इसे? हो सकता है विवाह के बाद भी गई प्रेमिका को शून्य में देखते रहता हो? कोई बात नहीं, उसकी भी दवाई है हमारे नशा मुक्ति केंद्र में। ऐसी डोज़ दूँगा कि प्रेमिका तो प्रेमिका, अपनी घरवाली तक को न भूल जाएँ तो वीआरएस ले प्राइवेट काम शुरू कर दूँ।"
"विवाह तो इनकी मर्जी से ही मैंने किया है इनसे," उनकी बीवी ने कहा तो मेरे पैरों तले से ज़मीन सरकी।
"तो आख़िर नशा क्या करता है ये नशेड़ी?" डॉक्टर ने शुक्र है मेरा नहीं, अपना ही माथा पीटा।
"इन्हें लिखने का नशा है डॉक्टर साहब। वह भी इतना कि जब ये लिखने बैठते हैं तो अपनी सुध-बुध ही खो देते हैं। जबसे इनसे विवाह-सूत्र में बँधी हूँ, मैंने इन्हें कभी भी सही हालत में नहीं देखा। जब देखो, बस, लिखने की धुन। न भूख, न प्यास। दिन हो या रात, बस काग़ज़ों से लिपटे रहते हैं। न रोटी की फ़िक्र न पानी की। इनको दी चाय दस बार गर्म करनी पड़ती है। सुबह की चाय रात को पीते हैं तो रात का खाना सुबह खाते हैं। अपनी तो इन्हें सुध है ही नहीं, पर मेरी भी नहीं है।"
"तो लिखने की लत है इसे??" डॉक्टर साहब चीखे।
"हाँ डॉक्टर साहब!" बंदे की समझदार बीवी ने सिसकते हुए कहा तो डॉक्टर पगलाया, "तो इसे किसी अख़बार के संपादक के पास ले जाओ। मेरा दिमाग़ क्यों ख़राब कर दिया सुबह-सुबह!"
"पर डॉक्टर साहब अब तो शाम के पाँच बज रहे हैं," मैंने कहा तो वे मुझे खाने वाली नज़रों से घूरने लगे।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
-
- रावण ऐसे नहीं मरा करते दोस्त
- शर्मा एक्सक्लूसिव पैट् शॉप
- अंधास्था द्वारे, वारे-न्यारे
- अंधेर नगरी फ़ास्ट क़ानून
- अजर अमर वायरस
- अतिथि करोनो भवः
- अपने गंजे, अपने कंघे
- अब तो मैं पुतला होकर ही रहूँगा
- अभिनंदन ग्रंथ की अंतिम यात्रा
- अमृत अल्कोहल दोऊ खड़े . . .
- असंतुष्ट इज़ बैटर दैन संतुष्ट
- अस्पताल में एक और आम हादसा
- आज्ञाकारी पति की वाल से
- आदमी होने की ज़रूरी शर्त
- आदर्श ऑफ़िस के दरिंदे
- आश्वासन मय सब जग जानी
- आसमान तो नहीं गिरा है न भाई साहब!
- आह प्रदूषण! वाह प्रदूषण!!
- आह रिटायरी! स्वाहा रिटायरी!
- इंस्पेक्टर खातादीन सुवाच
- उठो हिंदी वियोगी! मैम आ गई
- उधार दे, कुएँ में डाल
- उनका न्यू मोटर वीइकल क़ानून
- उफ़! अब मेरे भी दिन फिरेंगे
- एक और वैष्णव का उदय
- एक निगेटिव रिपोर्ट बस!
- एक सार्वजनिक सूचना
- एप्पों की पालकी! जय कन्हैया लाल की!
- ऐन ऑफ़िशियल प्लांटेशन ड्राइव
- ऑफ़िस शोक
- ओम् जय उलूक जी भ्राता!
- कंघीहीन भाइयों के लिए ख़ुशख़बरी!
- कवि की निजी क्रीड़ात्मक पीड़ाएँ
- काम करे मेरी जूत्ती
- कालजयी का जयंती लाइव
- कालजयी होने की खुजली
- कुक्कड़ का राजनीतिक शोक
- कुछ तीखा हो जाए
- कुशल साहब, ग़ुसल लाजवाब
- केवल गाँधी वाले आवेदन करें
- क्षमाम्! क्षमाम्! चमचाश्री!
- खानदानी सांत्वना छाप मरहमखाना
- गधी मैया दूध दे
- गर्दभ कैबिनेट हेतु बुद्धिजीवी विमर्श
- चमचा अलंकरण समारोह
- चरणयोगी भोग्या वसुंधरा
- चला गब्बर बब्बर होने
- चार्ज हैंडिड ओवर, टेकन ओवर
- चुनाव करवाइए, कोविड भगाइए
- छगन जी पहलवान लोकतंत्र की रक्षा के अखाड़े में
- जनतंत्र द्रुत प्रगति पर है
- जाके प्रिय न बॉस बीवेही
- जी ज़नाब का मिठाई सेटिंग दर्शन
- जैसे तुम, वैसे हम
- जो सुख सरकारी चौबारे वह....
- ज्ञानपीठ कोचिंग सेंटर
- टट्टी ख़त्म
- ट्रायल का बकरा मैं मैं
- ट्रिन.. ट्रिन... ट्रिन... ट्रिन...
- ठंडी चाय, तौबा! हाय!
- ठेले पर वैक्सीन
- डेज़ी की कमर्शियल आत्मकथा
- डोमेस्टिक चकित्सक के घर कोराना
- तीसरे दर्जे का शुभचिंतक
- त्रस्त पतियों के लिए डायमंड चांस
- त्रासदी विवाहित इश्क़िए की
- दंबूक सिंह खद्दरधारी
- दीर्घायु कामना को उग्र बीवी!
- धुएँ का नया लॉट
- न काहू से दोस्ती, न काहू की ख़ैर
- नंगा सबसे चंगा
- नई नाक वाले पुराने दोस्त
- नमः नव मठाधिपतये
- नशा मुक्ति केंद्र में लेखक
- नो कमेंट्स प्लीज!
- नक़लं परमं धर्मम्
- पधारो म्हारे मोबाइल नशा मुक्ति धाम
- परसाई की पीठ पर गधा
- पशु-आदमी भाई! भाई!
- पहली बार मज़े
- पार्टी सौभाग्य श्री की तलाश
- पावर वालों का पावरफ़ुल कुत्ता
- पुरस्कार पाने का रोडमैप
- पुरस्कार रोग से लाचार और मैं तीमारदार
- पुल के उठाले में नेता जी
- पेपर लीकेज संघ ज़िंदाबाद!
- पैदल चल, मस्त रह
- पोइट आइसोलेशन में है वसंत!
- पोलिंग की पूर्व संध्या पर नेताजी का उद्बोधन
- फिर हैप्पी इंडिपेंडेंस डे
- फोटुओं और कार्यक्रमों का रिश्ता
- बंगाली बाबा परीक्षक वशीकरण वाले
- बधाई हो बधाई!!
- बाबा के डायपर और ऑफ़िस में हाइपर
- बुद्धिजीवी मेकर
- बूढ़ों के लिए ख़ुशख़बरी!
- बेगम जी के उपवास में ख़्वारियाँ
- बैकुंठ में जन्म लेती कुंठाएँ
- ब्लैक मार्किटियों की गूगल मीट
- भगौड़ी बीवी और पति विलाप
- भाड़े की देशभक्ति
- भोलाराम की मुक्ति
- मंत्री जी इंद्रलोक को
- मच्छर एकता ज़िंदाबाद!
- मातादीन का श्राप
- मातादीनजी का कन्फ़ैशन
- माधो! पग-पग ठगों का डेरा
- मार्जन, परिमार्जन, कुत्ता गार्जियन
- मालपुआमय हर कथा सुहानी
- मास्टर जी मंकी मोर्चे पर
- मिक्सिंग, फिक्सिंग और क्या??
- मुहब्बत में राजनीति
- मूर्तिभंजक की मूर्ति का चीरहरण
- मेरी किताब यमलोक पहुँची
- मेरे घर अख़बार आने के कारण
- मॉर्निंग वॉक और न्यू कुत्ता विमर्श
- मोबाइल लोक की जय!
- यमराज के सुतंत्र में गुरुजी
- यान के इंतज़ार में चंद्र सुंदरी
- राइटरों की नई राइटिंग संहिता
- राजनीतिक निवेश में ऐश ही ऐश
- रामदास, ठंड और बयानू सिकंदर
- रिटायरमेंट का मातम
- रिटायरियों का ओरिएंटेशन प्रोग्राम
- रैशनेलिटि स्वाहा
- लिंक बनाए राखिए . . .
- लिटरेचर फ़र्टिलिटी सेंटर
- लो, कर लो बात!
- वदाइयाँ यार! वदाइयाँ!
- विद द ग्रेस ऑफ़ ऑल्माइटी डॉग
- विनम्र श्रद्धांजलि पेंडिंग-सी
- वीवीआईपी के साथ विश्वानाथ
- वैक्सीन का रिएक्शन
- वैष्णवी ब्लड की जाँच रिपोर्ट
- व्यंग्य मार्केटिंग में बीवियाँ
- शर्मा जी को कुत्ता कमान
- शुभाकांक्षी, प्यालीदास!
- शेविंग पाउडर बलमा
- शोक सभा उर्फ टपाजंलि समारोह
- सजना है मुझे! हिंदी के लिए
- सम्मान लिपासुओं के लिए शुभ सूचना
- सम्मानित होने का चस्का
- सर जी! मैं अभी भी ग़ुलाम हूँ
- सरकार का पुतला ज़िंदाबाद!
- सर्व सम्मति से
- सामाजिक न्याय हेतु मंत्री जी को ज्ञापन
- साहब और कोरोना में खलयुद्ध
- साहित्य में साहित्य प्रवर्तक अडीशन
- सूधो! गब्बर से कहियो जाय
- सॉरी सरजी!
- स्टेट्स श्री में कुत्तों का योगदान
- स्याही फेंकिंग सूची और तथाकथित साली की ख़ुशी
- स्वर्गलोक में पारदर्शिता
- हँसना ज़रूरी है
- हम हैं तो मुमकिन है
- हाथ जोड़ता हूँ तिलोत्तमा प्लीज़!
- हादसा तो होने दे यार!
- हाय! मैं अभागा पति
- हिंदी दिवस, श्रोता शून्य, कवि बस!
- हिस्टॉरिकल भाषण
- हैप्पी बर्थडे टू बॉस के ऑगी जी!
- ख़ुश्बू बंद, बदबू शुरू
- ज़िंदा-जी हरिद्वार यात्रा
- ज़िम्मेदारों के बीच यमराज
- फ़र्ज़ी का असली इंटरव्यू
- फ़ेसबुकोहलिक की टाइम लाइन से
- फ़्री का चंदन, नो चूँ! नो चाँ नंदन!
- फ़्री दिल चेकअप कैंप में डियर लाल
- कविता
- पुस्तक समीक्षा
- कहानी
- विडियो
-
- ऑडियो
-