कंघीहीन भाइयों के लिए ख़ुशख़बरी!
डॉ. अशोक गौतममेरे शहर के ही नहीं अपितु शहर के साथ के लगते एरिए के हो रहे, हो चुके अपने कंघीहीन भाइयों को यह शुभ सूचना देते हुए मुझे पागलपन का दौरा सा पड़ रहा है कि नित चौंका देने वाली ख़ुशख़बरियों के बीच शहर में अपने कंघीहीन भाइयों के लिए भी एक ख़ुशख़बरी आ रही है। और वह ख़ुशख़बरी ये है कि अब अपने शहर में कोई भाई कंघीहीन न रहेगा। अब वे हर सैलून के आगे से अपना कंघीहीन सिर छिपाकर नहीं गुज़रेंगे। क्योंकि बालों पर मेरे बिन कंघे भाइयों का भी रीछ जितना ही अधिकार है।
हालाँकि फ़िल्मों से लेकर गलियों तक में भाई कंघीहीन ही शोभा देता है। भाई की ख़ालिस पहचान उसकी कंघी हीनता ही होती है। जो कंघीहीन नहीं, वह भाई होकर भी भाई नहीं। पूरे बालों वाले को भाई कहना उसको अपमानित करने जैसा लगता है। अब किसी भी तरह की कंघीहीनता को दूर करने के लिए रेट ऐसे कि जिसके सिर पर सावन की घास की तरह लहलहाते बाल हों वह भी अपने सिर पर और बाल लगवाने को लालायित हो उठे और तकनीक अमेरिकी। मतलब, देसी खोपड़ी पर बाल विदेशी तकनीक के।
हे मेरे हर वर्ग के परमादरणीय कंघीहीन भाइयो! आप चाहे किसी भी कारण अकारण कंघीहीन हुए हों। आपके कंघी हीनता का कारण चाहे व्यवस्थागत रहा हो चाहे वंशानुगत। आप चाहे अपने सिर पर बाल उगाने के कितने ही नुस्ख़े आज़मा कंघीहीन सिर पर बाल उगाने वाले शातिर माहिरों को कितने ही पैसे क्यों न लुटा चुके हों, पर अब आपको निराश होने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं। अब आपके कंघीहीन सिर पर शर्तिया बाल उगाने वाले हमारे शहर में एंटर कर चुके हैं और वे इस दिवाली से अपने के शहर में कंघीहीन सिर में उग आए हीनता के भाव को भगा कंघीहीन भाइयों में खोया आत्म विश्वास पुनः वापस लाने के लिए वे कंघीहीनों के मसीहा कंघीहीनता मुक्ति क्लिनिक खोल रहे हैं। साथ में स्कीम भी लाएँ हैं। पहले दस कंघीहीनों के साथ पाँच कंघीहीन फ़्री। अब दिवाली को हमारे शहर राम आएँ या न, पर दिवाली से मेरे कंघीहीन भाइयों के सिर पर कंघे ज़रूर नाचेंगे।
अब किसी भी कारण से अपने सिर के बाल खो चुके मेरे कंघीहीन भाई बंधु अपने सिर शान से पर गाते गुनगुनाते हुए कॉम्ब फेर सकेंगे। किसी भी कंघीहीन से अपने बाल सँवारने के लिए कंघी माँग सकेंगे।
आदमी भी बड़ा अजीब है। अपने शरीर के बालों को तो तरह तरह के साबुन लगा साफ़ करता रहता है, पर सिर के बालों को बचाने के लिए वह तरह तरह के साबुन लगाता रहता है, यह जानते हुए भी आदमी का कंघीहीनता उसकी समृद्धता का प्रतीक होता है। मतलब, जो जितना पैसे वाला वह उतना ही कंघीविहीन। जितनी कोशिश मेरे कंघीहीन भाई अपने सिर पर बाल उगाने की करते हैं उतनी जो वे देश की अर्थव्यवस्था बचाने की करें तो देश की अर्थव्यवस्था सचमुच विश्व की नंबर वन अर्थव्यवस्था बन जाए। पर अब वे इस क्लिनिक का लाभ उठा अपने कंघीहीन सिर पर जवानी के दिनों की तरह चिड़ियाँ बना सकेंगे, वह भी मात्र आधे घंटे में लाइफ़ टाइम के लिए।
धन्य हो ये शहर! जो आजकल हम महँगाई से दुखियारों को रोज़ कोई न कोई ख़ुशख़बरी देता ही रहता है। कभी एक जोड़ी जूते के साथ एक जोड़ी जूते फ़्री की ख़ुशख़बरी तो कभी एक शर्ट के साथ चार शर्ट फ़्री की ख़ुशख़बरी। जबकि सच तो यह है कि इन दिनों मेरा मन न शर्ट पहनने को करता है न पतलून। कभी दो किलो आटे के साथ दो जीबी डाटा फ़्री की ख़ुशख़बरी तो कभी एक लीटर चावल के साथ डेढ़ लीटर पानी फ़्री की ख़ुशख़बरी तो कभी पाँच सौ रुपए की शॉपिंग के साथ छह सौ रुपए का गिफ़्ट वाउचर की ख़ुशख़बरी। जबसे शहर दिवालिया करने वाली ख़ुशख़बरियाँ दे रहा है तबसे सच कहूँ तो शहर छोड़ने को मन नहीं कर रहा। पागल ने ख़ुशख़बरियों की जैसे सावन सी झड़ी लगा रखी हो।
रे शहर! आख़िर तेरे पास इतनी जनता को तबाह करने वाली जबरिया ख़ुशख़बरियाँ आती कहाँ से हैं रे?
बंधुओ! ग़रीबी अभिशाप नहीं, अनपढ़ता अभिशाप नहीं, बेरोज़गारी अभिशाप नहीं, अमान में ख़यानत अभिशाप नहीं, ईमानदारी में ठगी अभिशाप नहीं, शिष्टाचार में भ्रष्टाचार अभिशाप नहीं। इस जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप अगर कोई है तो वह है बिन कंघीहीनता। समाज गधे को सम्मान दे सकता है। समाज घोड़े को सम्मान दे सकता है। समाज सूअर को सम्मान दे सकता है। समाज उल्लू को सम्मान की नज़रों से देख सकता है, पर मेरे कंघीहीन भाइयों को नहीं। यहाँ तक कि किसी कंघीहीन को देखकर पता नहीं क्यों नक़ली बाल सिर पर लगाने वाले अपने नक़ली बालों पर हाथ फेरने लग जाते हैं?
बंधुओ! जो कंघीहीन होना किसीके हाथ में होता तो आज कोई भी कंघीहीन न होता। जिस तरह से सरकार का ग़रीबी पर कोई निंयत्रण नहीं, उसी तरह आदमी का भी अपनी कंघीहीनता पर कोई नियंत्रण नहीं। सरकार के लाख कोशिश करने के बाद भी जिस तरह ग़रीबी सरकार के नियत्रंण में नहीं रहती उसी तरह अपने सिर पर बालों को बचाने के लिए कुछ भी लगाने के बाद आदमी को दे सबेर न चाहकर भी कंघीहीन होना ही पड़ता है। ऐसे में धन्य हैं वे जो लास्ट तक अपने सिर पर जैसे तैसे ऑर्गेनिक बाल बचाए रखते हैं। जिस तरह देश में ग़रीबी का रहना विकास की स्वाभाविक प्रक्रिया है उसी तरह आदमी का कंघीहीन होना नेचुरल प्रक्रिया है। ऐसे में उन पर बंदा चाहे कितना ही बजट क्यों न फूँक ले। उन्हें जाना है तो वे जाकर रहेंगे। उसे कंघीहीन भाइयों की क्लास में ला कर रहेंगे। जिस तरह सरकार को अथक कोशिशों के बाद भी भ्रष्टाचार पर उसका बस नहीं चलता उसी तरह बंदे की बाल बचाने की लाख कोशिश के बाद भी उसका अपनी कंघीहीनता पर कोई बस नहीं चलता। वह हर से जीत सकता है, वह हर एक से लड़ सकता है, पर अपनी कंघीहीनता के आगे देर सबेर उसे हथियार डालने ही पड़ते हैं।
पर अब मेरे इन बालों की ओर से हताश निराश बंधुओं को और बाल हीनता झेलने की ज़रूरत नहीं। आज मेरे अख़बार में बालों वाली शुभ सूचना मुझे तक पहुँच गई है। मेरे जिन कंघीहीन भाइयों ने जो अख़बार लगवाया होगा तो उन तक भी यह शुभ सूचना पहुँच गई होगी, पहुँच रही होगी। अगर वे मेरे भाई दूसरों से अख़बार माँग कर पढ़ते होंगे तो हो सकता है वे इस शुभ सूचना से वंचित रहें। अख़बार का असली मालिक उस शुभ सूचना को निकाल कर आपको अख़बार दे और आप भविष्य में भी ऐसी धाँसू शुभ सूचनाओं से वंचित होते रहें। इसलिए मेरे कंघीहीन भाई दूध लगवाएँ या न, पर अख़बार ज़रूर लगवाएँ। क्योंकि आजकल के अख़बार उतनी हमें ख़बरें नहीं देते जितनी ख़ुशख़बरियाँ देते हैं।
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