लो, कर लो बात!
डॉ. अशोक गौतमआज और दिनों की अपेक्षा जल्दी बारह बजे ऑफ़िस पहुँचा तो पूरी ब्रांच में ब्रांच वालों के पसरे के बदले सन्नाटा पसरा देखा तो अजीब-अजीब सा सोचने लगा। सारे ब्रांच वाले बड़े बाबू को घेर उदास मुद्रा में बैठे थे जैसे उन्हें कोई शोक हो गया हो। उनकी टेबल पर बीसियों अख़बार किसी अस्त-व्यस्त नायिका के कपड़ों की तरह बिखरे पड़े थे। सहमा हुआ सा ज़रा और नज़दीक गया तो बड़े बाबू का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर और वे ख़ुद आठवें आसमान पर। उनके क्रोध का कोई पारावार न था। गोया वे क्रोध के यज्ञ में धूँ-धूँ जल रहे हों। उनका बढ़ा हुआ बीपी दूर से ही उनकी नसों के फूले होने का अहसास करवा रहा था। हमेशा औरों का ही हँसते हुए बुरा करने वाले, उनको, उस वक़्त देखकर ऐसा लग रहा था ज्यों आज वे कुछ भी अपना तक बुरा कर सकते हैं।
उनको ब्रांच वालों ने पूरी तरह घेरा हुआ था। वे बके जा रहे थे। बकते बकते नई नई गालियाँ रचे जा रहे थे। ब्रांच वाले उनसे चुप होने का जितना अनुरोध करते, वे उतना ही गला फाड़ कर बकते, जैसे वे अपने बकने का टेस्ट दे रहे हों।
“.... हद हो गई साली! ये नहीं हो सकता! ये हो ही नहीं सकता! ये आख़िर हो ही कैसे सकता है? इतना सब करने के बाद भी हर साल हमारी टॉप रहने वाली ब्रांच भ्रष्टाचार, रिश्वतख़ोरी, हरामख़ोरी में उनकी ब्रांच से भी आठ रैंक पीछे? भ्रष्टाचार, रिश्वतख़ोरी में हर बार की तरह टॉपर रहने के लिए अबके भी मैंने क्या-क्या नहीं किया? क्या-क्या नहीं करवाया? रिश्वत, भ्रष्टाचार में ज़िला भर में टॉप रहते आने के लिए ही तो मैं रिश्वत लेने, भ्रष्टाचार करने के नए नए तरीक़ों को जन्म देता रहा हूँ ताकि ज़िला में हर बार मेरी ब्रांच टॉप करे।
“अब जो तुम ये अपना अपना थोबड़ा लटकाए हो न! कल तक तुम सबसे ऑफ़िस के सारे काम छोड़ बस यही कहता रहा, दोस्तो! अबके भी रिश्वतख़ोरी, भ्रष्टाचार में पूरे ज़िला में अपनी ब्रांच की नाक नहीं कटनी चाहिए। हमसे ज़िला में रिश्वतख़ोरी, भ्रष्टाचार का ताज कोई भी ज़िला करप्शन सर्वे की रिपोर्ट नहीं छीन सकती। पूरे ज़िला में भ्रष्टाचार, रिश्वतख़ोरी के हम बेताज बादशाह, थे, हैं और हर भविष्य में भी रहेंगे। पर.... साली हो गई न वही बात! जो सिर बीवी के आगे न झुका, वह आज तुमने मेरा इस रिपोर्ट के आगे झुका दिया। मुझे तो शर्म आ ही रही है, पर तुम्हें भी यह देख कर शर्म आनी चाहिए जो ब्रांच के लिए समर्पित हों तो! हाय रे भगवान! ये रिपोर्ट आने से पहले तुमने मुझे उठा क्यों न लिया?” कहते वे पता नहीं क्या सोचने को रुके तो उनके आसपास सिर झुकायों में से एक ने रोनी सूरत बनाए उनसे कहा- “बड़े बाबू! हमारे तो सिर जिस दिन से हमने रिश्वत लेनी शुरू की थी, उसी दिन से झुके हुए हैं। लगता है, आपको हमको लेकर कोई ग़लतफ़हमी हो रही है कि हमने रिश्वत लेना कम कर दिया है। हम पड़ोसी की बीवी और उसके बच्चों की क़सम खाकर कहते हैं कि हमने इस साल भी आपके मार्गदर्शन में रिश्वत लेने में कोई क़ोताही नहीं बरती है। पूरी सत्य निष्ठा से रिश्वत ली है। ब्रांच में जमकर गंद डाला है। आप मानें या न, पर हमें अपनी नाक की परवाह भले ही न हो, आपकी नाक को हम सदा देश की नाक से भी अधिक तवज्जो देते रहे हैं। हम आपकी नाक को देश झंडे से भी ऊँचा रखना चाहते हैं। हमारी ब्रांच में काम करवाने आए किसी एक से भी जाकर पूछ लीजिएगा जो हमने उससे बिन रिश्वत लिए उसका काम करना तो दूर, हमारे पीउन तक ने उसे ऑफ़िस में घुसने भी नहीं दिया हो।”
“तो ये सब कैसे हो गया साला? ऑफ़िस में मेरे लाख न डरने को कहने के बावजूद भी क्या कोई सरकारी ख़रीद द्वारा लगने से पहले ही हमारी जासूसी करने आए इन ख़राब सीसीटीवी कैमरों से तो नहीं डर गया? कोई न कोई कारण तो ज़रूर है जो.... या ये ज़िला करप्शन सर्वे की रिपोर्ट झूठ बोल रही है? देखो, आज जो भी है, खुलकर बता दे कि किसकी ईमानदारी की वजह से हुआ ये सब? वर्ना जो बाद में पता लग गया कि आख़िर ब्रांच में यह गद्दार है कौन तो उसकी सर्विसबुक में ऐसी एंट्री कर दूँगा कि मरने के बाद उसे हटाने को यमराज भी सौ बार यहाँ-वहाँ लीगल एडवाइस लेता फिरेगा। आखिर हमारी ब्रांच में रिश्वत, भ्रष्टाचार पहने काली भेड़ें हैं कौन?” कहने के बाद वे हमें तो हमें, दीवारों को भी शक की नज़रों से घूरने लगे।
“है तो सड़े मुँह खरी बात, पर बड़े बाबू बुरा न मानों तो…,” मैंने उनके कान के जाकर बुदबुदाया तो वे बोले, “खुलकर कहो। हमें आज इस बात पर मंथन करना ही होगा कि हम सदा करप्शन की हर सर्वे रिपोर्ट में टॉप रहने वाले इस साल भ्रष्टाचार, रिश्वतख़ोरी की दौड़ में पीछे हुए तो कैसे? जबकि आम जनता की फ़ीड बैक तो यही था कि सबसे भ्रष्ट ब्रांच कोई ज़िला भर में है तो बस हमारी ही है। कहीं यह कोई षड्यंत्र तो नहीं?”
“हो सकता है बड़े बाबू इस सर्वे की रिपोर्ट को बनाते वक़्त टॉपर को नीचे लाने को पैसा चला हो?”
“मतलब??” वे आग बबूला से आग बुलबुला होने लगे।
“हो सकता है बड़े बाबू! गंगा के देश में क्या कुछ नहीं हो सकता? पैसा आजकल कहाँ नहीं चलता बड़े बाबू? यहाँ प्याज़ से लेकर राज तक सबमें पैसा ही तो चलता है। भले ही वे हॉर्स के बदले गधे ख़रीद गए हों पर... घोड़े तो घोड़े, बिन पैसे आज गधे भी नहीं बिकते।”
“तो इसका मतलब है कि.....देख लूँगा पैसा लेकर इन ज़िला करप्शन सर्वे की रिपोर्ट बनाने वालों को। इस देश के साथ यही तो एक सबसे बड़ी मुसीबत है कि लाख ईमानदारी की शपथें खाने के बाद भी योग्यों को आगे आने ही नहीं दिया जाता। फिर कहते हैं कि देश में तरक्क़ी नहीं हो रही, देश में विकास नहीं हो रहा। अरे, जब योग्य लोगों को तरजीह नहीं दोगे तो देश का विकास क्या ख़ाक़ होगा? ....और बंसी तुम! खड़े-खड़े मेरा मुँह क्या चाट रहे हो? हो न हो, तुम्हारी वजह से भी??? कुछ महीनों से मैं मेरे लाख मना करने के बाद भी तुम्हें बराबर चोरी छिपे नोटिस कर रहा था कि तुम मंदिर जाने लगे हो, अब बंद किया कि नहीं? कहीं तुम्हारी रिश्वत में आस्था ख़त्म तो नहीं हो गई अब? कहीं तभी?? हद है यार! ब्रांच की नाक भगवान के आगे दाव पर लगवा दी तुमने?”
“नहीं बड़े बाबू, ऐसा कुछ नही जो आप बेकार में गैस्स कर अपना बीपी हाई किए हो। मैं ईमानदार होने के लिए मंदिर थोड़े ही जाता हूँ। मैं तो भगवान से यह कहने इसलिए मंदिर जाता हूँ कि हे भगवान! मैं ऑफ़िस में लेता हुआ किसी भी जन्म में न पकड़ा जाऊँ। ....और बड़े बाबू आप भी न! बस, आपको मुझ पर इतना ही विश्वास है? मुझे आज पता चला। मैं तो आपकी इज़्ज़त के लिए ऑफ़िस में तो क्या, बाज़ार में भी सरेआम रिश्वत माँग सकता हूँ।"
"तो इसका मतलब है कि....??"
"बड़े बाबू दाल में कहीं न कहीं काला तो ज़रूर है वर्ना.…" मैंने जले पर पेट्रोल डाला।
"तो तुम्हारा मतलब इस करप्शन के सर्वे की रिपोर्ट को कोर्ट में चुनौती दी जाए ताकि दूध का दूध, पानी का पानी हो हमें इंसाफ़ मिले?"बड़े बाबू ने मेरी आँखों में अपनी लाल-लाल आँखें डालते पूछा तो मैंने कहा,"सत्यमेव जयते! इसलिए सच की तह तक जाने के लिए हमें कहीं भी जाने से नहीं डरना चाहिए बड़े बाबू!"
यह सुनते ही उन्हें मत पूछो कितनी शांति मिली? एकाएक हमारे बीच से उछलते हुए उन्होंने अपनी कुर्सी पर बैठते ही स्टेनो को आदेश दिया,"मुरारी चल! डिक्टेशन ले। ज़िला करप्शन सर्वे की रिश्वत लेकर बनाई गई इस रिपोर्ट के ख़िलाफ़ चुनौती का ऐसा ड्राफ़्ट लिखवाऊँगा कि.... ऐसा ड्राफ़्ट बनवाऊँगा कि सरकारी वकील के तो सरकारी वकील के, सरकारी चील के भी होश उड़ जाएँगे...." देखते ही देखते ब्रांच के सारे कंप्यूटरों के की बोर्ड रिपोर्ट को चुनौती देने के लिए बिना बंदों के ख़ुद ब ख़ुद टकाटक टाइप करने लग गए।
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