पार्टी सौभाग्य श्री की तलाश
डॉ. अशोक गौतम
धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक पार्टी के मुखिया ही नहीं, पार्टी से दुखिया भी पार्टी को हर चुनाव में मन वांछित वोट न मिल पाने से परेशान थे। जब भी चुनाव होते, जहाँ भी चुनाव होते, उनको उस चुनाव में वोटरों को लाख आश्वासन देने, उनसे आँखें बंद कर वादे करने के बावजूद भी पिछले चुनाव से भी कम वोट मिलते। इस स्थिति में पार्टी के मुखिया को लग तो गया था कि उन पर जनता की दृष्टि वक्री तो चल रही है, पर आख़िर किस ग्रह की वजह से चल रही है, उन्हें पता नहीं लग रहा था।
हरते क्या न करते! तब पार्टी के मुखिया ने तय किया कि क्यों न इस समस्या का समाधान पाने हेतु चोरी छिपे वे किसी पंडित जी को पार्टी मुख्यालय बुलवा उन्हें अपनी कुंडली दिखवाएँ। उनकी कुंडली पार्टी की कुंडली। आख़िर मीडिया से चोरी छिपे पंडित जी को बुलाया गया जो यह बात मीडिया को लीक न करे कि धर्मनिरपेक्ष पार्टी ने उन्हें अपनी कुंडली दिखाई थी। पार्टी की जीत के पीछे उनका हाथ है।
पंडित जी के पार्टी मुख्यालय में आते ही उन्हें पार्टी मुखिया ने अपनी कुंडली दिखाई गई। कुंडली पर आधी नज़र डालते ही पंडित जी ने घोषणा कि, “हे पार्टी के मुखिया! हर चुनाव में हार से हो रहे दुखिया! आप पर शनि, राहू, केतू की दशा नहीं, महादशा चल रही है। पूर्व से शनि तो उत्तर से राहू आपकी पार्टी को घेरे है। केंद्र में केतू कुतर्की हुआ है। पार्टी की हर चुनाव में हार का यही सबसे बड़ी वजह है।”
“तो इसका क्या है निदान, हे राजनीतिक पंडित जी महान!”
“देखो यजमान! हमारी जेब में और कुछ रहे या न, पर हर राजनीतिज्ञ की कुंडली के हर दोष का निदान ज़रूर मौजूद रहता है। आप चिंता न करें। आपकी कुंडली के क्रूर ग्रह हमारी पकड़ में पूरी तरह आ गए हैं। शनि, राहू, केतू का ऐसा इलाज बताऊँगा कि जब तक आपके परिवार का कोई भी पार्टी का मुखिया रहेगा शनि, राहू, केतू तो क्या, शुक्र भी कभी उसकी ओर टेढ़ी नज़र से तो क्या, प्यार भरी नज़र से देखने की हिमाक़त भी न करेगा,” पंडित जी के मुख से यह सुन पार्टी के मुखिया को लगा, गए दिन अब विपक्ष में बैठने के। तब पार्टी मुखिया ने बरसों से बेचैन साँस पर लगाम लगाते पंडित जी से पूछा, “तो क्या पंडित जी अब आ रहे चुनाव में हमारा प्रदर्शन अच्छा रहेगा?”
“अच्छा नहीं, बहुत अच्छा! हो सकता है . . . बस, जो बता रहा हूँ, वह उपाय कर दीजिएगा। है तो कठिन, पर मुश्किल नहीं,” पंडित जी ने कुंडली बंद कर पार्टी के मुखिया को सौंपते कहा।
“तो कहिए पंडित जी,” पार्टी के मुखिया को अपनी डूबती पार्टी एकबार फिर तैरती दिखी, “आप जो भी उपाय कहेंगे, हम वो सब करेंगे। हमें चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े। मेरी बस, अब यही अंतिम इच्छा है कि बस, एक बार पार्टी जैसे-कैसे अपने पैरों पर खड़ी हो जाए। उसके बाद हम राजनीति से संन्यास लेकर विदेश चले जाएँगे। अब तो पंडित जी! हम जिधर भी जिसके साथ भी मिलकर चुनाव लड़ने की बात करते हैं, वही हमें दाँत दिखाने लगता है।”
“तो हे मेरे यजमान! आपको शनि, राहू, केतू की शान्ति के लिए बस, ये उपाय करना होगा।”
“कहिए पंडित जी!”
“शनि, राहू, केतू की शान्ति के लिए आपको हर पंजे से साढ़े तीन नाखूनों वाला असंतुष्ट कुत्ता पूजा को लाना होगा।”
“हमारी पार्टी में कुत्तों की कोई कमी नहीं पंडित जी! वजह बेवजह मुझ पर भौंकते रहते हैं। हे पार्टी महासचिव! अपनी पार्टी के तमाम कुत्तों को इसी वक़्त पार्टी मुख्यालय में पेश होने को कहो।”
“हे पार्टी हेड जी! आपका आदेश सिर माथे! पर हमारी पार्टी में काले कुत्ते कहाँ! सब काली भेड़ें हैं,” महासचिव ने सादर पार्टी मुखिया के आगे नतमस्तक होते कहा।
“अपनी पार्टी का नहीं, सत्ताधारी दल का कुत्ता हे पार्टी प्रमुख।”
“पर पंडित जी! सत्ताधारी दल में कोई कुत्ता असंतुष्ट कहाँ होगा?”
“होगा! ज़रूर होगा। आज एक राजनीतिक दल के भीतर कई दल, उप-दल होते हैं। ऐसे में सभी बाहर से प्रसन्न होते हुए भी भीतर से प्रसन्न नहीं रहते। ऐसा कुत्ता मिल जाने पर उसे तीन महीने तक पार्टी प्रमुख की कुर्सी पर बैठाना होगा। और केवल और केवल पार्टी प्रमुख को ही उसकी तीन महीने तक सेवा करनी होगी। वह जो भी कहे, उसे खिलाना होगा। वह जो भी पीने को कहे, उसे पिलाना होगा। आपकी सेवा से कुत्ता ख़ुश तो समझ लेना आपसे मतदाता ख़ुश। शनि, राहू, केतू स्वरूपा काले कुत्ते के ख़ुश होने के बाद आप जिस भी मतदाता को चुनाव के दिनों में जो भी खिलााएंगे, जो भी पिलाएँगे, वह आपके ही गुण गाएगा। वह केवल आपको याद रखेगा। बाक़ी सबको वह भूल जाएगा। पर हे पार्टी के मुखिया! स्मरण रहे, कुत्ता मूल रूप से . . . . . . और . . .”
तब पार्टी मुखिया ने पार्टी के दुःखद वर्तमान में सुखद भविष्य का सपना देखते तमाम पार्टी राज्य क्षत्रपों को आदेश दिए, “हे मेरी पार्टी के राज्य क्षत्रपो! ख़ुशी की बात है कि हमें आजतक की अपनी हार के कारणों का पता चल गया है। हम आजतक बेकार में जनता को दोष देते रहे। हे जनता जनार्दन! हमें माफ़ करना! हार से हम पगला गए थे। आज हमें अपनी पार्टी के हार के कारण से मुक्ति का भी उपाय मिल गया है। हमारी पार्टी की हार के कारण तुम नहीं, शनि, राहू केतू थे। अब हमारे हारने के दिन गए। अब हमें ललकारने के दिन गए। अब हम उनको ललकारेंगे। अब संसद में हम पर वे नहीं, हम उन पर दहाड़ेंगे। अब संसद में उनका निलंबन और हमारा आलिंगन होगा। अब हमारे हराने के दिन आए। विपक्ष में बैठे बैठे हम बहुत रो लिए। सत्ताधारी दल ने हमारा जितना मज़ाक़ उड़ाना था, उड़ा लिया। हमारे कपड़े उतार जितना उनकी नसीब में था, उन्होंने अपना दामन सजा लिया।
“हे उनके डर से पार्टी छोड़ने से बचे-खुचे पार्टी वर्करो! अब हमारे उनका मज़ाक़ उड़ाने के दिन आने वाले हैं। जो जो हमारी पार्टी को छोड़़ कर गए हैं, देखना, अब वे उछलते हुए अपने घर वापस आएँगे। इसके लिए बस, हमें इतना करना है कि हमें सत्ताधारी दल का ऐसा काला कुत्ता उठाकर लाना है जिसके हर पंजे में क़ुदरती साढ़े तीन नाखून हो। ढूँढ़ने से क्या नहीं मिल जाता। ढूँढ़ने से तो भगवान भी मिल जाते हैं। और यह तो मात्र असंतुष्ट काला कुत्ता है। अतः पार्टी प्रमुख ने अविलंब चाहा है कि ऐसा कुत्ता जितनी जल्दी हो सके पार्टी मुख्यालय में पार्टी मुखिया के श्री चरणों में पेश किया जाए।
“पार्टी क्षत्रपों को यह भी सख़्त हिदायत दी जाती है कि उसका एक नाखून आधा काट पार्टी मुखिया को प्रसन्न करने की ग़लती न की जाए। जो भी इस पार्टी सौभाग्य को खोज कर लाएगा, उसे पार्टी में मन चाहा पद दिया जाएगा।”
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