आश्वासन मय सब जग जानी
डॉ. अशोक गौतमइधर ज्यों ही साँपों की नज़र अख़बार में छपी इस ख़बर पर पड़ी कि देश भर में विश्व मच्छर दिवस धूमधाम से ही नहीं मनाया गया अपितु मच्छर मंत्रालय के स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्रीजी ने इस मौक़े पर हर वर्ग के मच्छरों को मच्छर दिवस की बधाई देते उन्हें संबोधित करते हुए कहा कि, "हे मेरे देश के सरकारी, अर्धसरकारी, असंगठित क्षेत्र के मच्छरो, देश की अर्थव्यवस्था के विकास में तुम्हारा बहुत योगदान है, जिसे भुलाने के बाद भी कदापि नहीं भुलाया जा सकता। मच्छर चाहे व्यवस्था के हों या बाग़-बाग़ीचों के; देश के लिए दोनों ही बहुत ज़रूरी हैं। अतः मैं सरकार से सिफ़ारिश करता हूँ कि अगले स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर राष्ट्रीय स्तर पर ख़ून चूसने वाले संभ्रांत, माननीय मच्छरों को सरकार द्वारा पद्मभूषण से अलंकृत किया जाए," तो जंगल के साँपों ने भी सोचा कि क्यों न वे भी सरकार से विश्व साँप दिवस मनाने की माँग करें ताकि कल को वे भी शांति पुरस्कार के हक़दार हों। वैसे भी आज तक सबने सरकार से कुछ न कुछ माँगा ही है। जबकि उन्होंने आजतक सरकार से कोई माँग नहीं की।
बस, फिर क्या था! जंगल के सारे साँप इकट्ठा हुए और उन्होंने जनरल हाउस बुला जनरल हाउस में तय किया कि कल ही वे अपने साँप विकास मंत्रालय के स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्रीजी के पास जाकर उनके सामने अपनी इकलौती माँग रखेंगे कि जिस तरह विश्व मच्छर दिवस मनाया जाता है, कि जिस तरह विश्व सदाचार दिवस मनाया जाता है, कि जिस तरह विश्व मूर्ख दिवस मनाया जाता है, उसी तर्ज़ पर विश्व साँप दिवस भी मनाया जाए।
दूसरे दिन जंगल के साँपों का प्रतिनिधि मंडल अपनी माँग लेकर अपने मंत्रीजी के पास पहुँचा तो गेट पर उनके पीए ने साँपों के सरदार को रोकते पूछा, "डियर! कहाँ जा रहे हो?"
"अपने मंत्रीजी से मिलने।"
"किसलिए?"
"उन्हें अपना माँग पत्र देना है।"
"पहले मुझे अपना माँग पत्र दिखाओ। मैं देखना चाहता हूँ कि उसमें कितना दम है," साँप विकास मंत्रालय के मंत्रीजी के पीए ने कहा तो साँपों के सरदार ने अपनी जेब से माँग पत्र निकाल मंत्रीजी के पीए को दिखाया। कुछ देर तक साँप विकास मंत्रीजी का पीए माँगपत्र को घूरता रहा तो साँपों के प्रतिनिधि मंडल का सरदार उनके पीए को। आख़िर पीए ने मंत्रीजी को फोन लगाया तो साँपों के सरदार ने अपने कान फोन पर की आवाज़ पर खड़े करे, "कहो क्या बात है?" साँप विकास मंत्रालय के स्वतंत्र भार वाले मंत्रीजी ने अपने पीए से पूछा।
"सर! एक प्रतिनधि मंडल आपसे मिलने आया है।"
"तो भीतर भेज दो। सारा दिन हम यहाँ प्रतिनिधि मंडलों से मिलने के लिए ही तो बैठे रहते हैं।"
"पर सर! साँप आए हैं!"
"तो क्या हो गया! जब हम उनके मंत्री हैं तो गधों का प्रतिनिधि मंडल तो हमसे मिलने आएगा नहीं। कहाँ के हैं? शहर के या जंगल वाले?"
"सर! स्वभाव से लग तो जंगल वाले ही रहे हैं," मंत्रीजी के पीए ने उन्हें फोन करते-करते निरखते-परखते कहा।
"तो उन्हें भेज दो। मुझे बस, शहर के सापों से डर लगता है। जंगल के साँप अब बहुत सदाचारी, समझदारी वाले हो गए हैं," मंत्रीजी के कहने पर उनके पीए ने साँपों के प्रधान से कहा, "जाइए! अपने मंत्रीजी से मिल लीजिए।"
साँपों के सरदार ने काम होने की ख़ुशी में मंत्रीजी के पीए के हाथ पर पाँच सौ धरे और मंत्रीजी के कमरे की ओर अपने मंडल के साथ हो लिया।
साँपों के मंत्रीजी अपनी कुर्सी से उठ साँपों के प्रतिनिधि मंडल के सरदार से जी भर गले मिले। जी भर गले लगने के बाद साँपों के विकास मंत्रीजी ने साँपों के सरदार से सादर पूछा, "कहिए बंधु, कैसे आना हुआ?"
"सर! अपनी छोटी सी माँग है," अपने हाथों के बीच लिए माँगपत्र को ले साँपों के सरदार ने हाथ जोड़ते कहा।
"कहो कहो डियर! छोटी सी माँग अपना मुँह बड़ा खोल कर कहो। वैसे हम आशीवार्द यात्रा करते तुम्हारे यहाँ आने ही वाले थे।"
"सर! हम चाहते हैं कि . . . हम चाहते हैं कि . . . जिस तरह से विश्व मच्छर दिवस मनाया गया है, उसी तर्ज़ विश्व साँप दिवस भी मनाया जाए अगले हफ़्ते से।"
"बहुत उचित माँग है तुम्हारी! मैं संसद के पटल पर सत्र आने पर यह माँग ज़रूर उठाऊँगा पर . . ."
"पर क्या मंत्रीजी?"
"पर तुम तो सबकी आस्तीनों में चौबीसों घंटे रहते हो तो फिर एक दिन मनाने की, अपने को याद करवाने की क्या ज़रूरत? पूरे देश में नाग पंचमी काफ़ी नहीं?"
"सर! सो तो सब ठीक है पर . . . हम चाहते हैं हमें विश्व स्तर पर रैकॅग्निशन मिले।"
"पर मैं तो केवल देश का साँप विकास मंत्रालय का मंत्री हूँ सो . . ."
"नहीं मंत्रीजी। ऐसा न कहो। हमारे लिए तो आप पूरे संसार के ही नहीं, समस्त लोकों के मंत्रीजी हो," सापों के सरदार ने अपने दोनों हाथ जोड़ अपने लोकप्रिय मंत्रीजी को मलाई लगाते कहा तो साँपों के विकास के मंत्रीजी साँपों के मंत्रीजी से शेषनागों के भी मंत्री होते अपनी सदरी के बटन खोलते बोले, "कोई बात नहीं। मैं तुम्हें आश्वासन देता हूँ कि . . . अभी इसी वक़्त इस मामले को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाता हूँ। और अगर संभव हुआ तो किसीका विश्व दिवस हटा तुम्हारा करवा दूँगा। जो मान लो बात नहीं बनी तो साल के तीन सौ पैंसठ दिनों के बदले तीन सौ छियासठ करवा दूँगा। और मेरे लायक़ कोई सेवा?"
"बस, आश्वासन ही?" सापों दे सरदार ने अपना मुँह ताकते पूछा।
"मित्र! हम नेताओं के पास आश्वासनों के सिवाय और देने के लिए होता ही क्या है। इसीलिए हमारे द्वार जनता को आश्वासन देने के लिए चौबीसों घंटे खुले रहते हैं। आश्वासन विश्वास, विकास की कुंजी है बंधु! जिस तरह से ये धरती बैल के सींगों पर टिकी है उसी तरह यह लोकतंत्र आश्वासनों पर ही टिका है।"
"मतबल?"
"मतलब, आश्वासन मय सब जग जानी! करहुं प्रनाम जोरि जुग पानी।" मंत्रीजी ने हाथ जोड़े शीश नवाए बड़े ही आदर भाव से गुनगुनाते कहा तो साँपों के प्रतिनिधि मंडल के सरदार ने अपने मंत्रीजी के पाँव छुए और उनसे आश्वासन ले अपने प्रतिनिधि मंडल के सदस्यों से मंत्रीजी की जय जयकार करवाता उनके कार्यालय से बाहर आ प्रेस वालों को फोन करने में व्यस्त हो गया।
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