ब्लैक मार्किटियों की गूगल मीट
डॉ. अशोक गौतमजैसे ही अखिल भारतीय ब्लैक मार्किट महासंघ के प्रेसीडेंट को इस बात के पुख़्ता सबूत मिलने शुरू हुए कि देश में महामारी की तीसरी लहर हर हाल में आकर रहेगी। हर चीज़ को देश में आने से रोका जा सकता है, पर महामारी की तीसरी लहर को नहीं, तो उन्होंने देश हित में देश भर के तमाम कोराना माल की ब्लैक मार्किटिंग करने वालों की जनहित में गूगल मीट पर आपात मीटिंग बुलाई। तय समय पर गूगल मीट पर जब देश के नामचीन ब्लैक मार्किटिए जुटे तो उन्होंने ब्लैकियों को संबोधित करते कहा, "हे मेरे देश के ब्लैक मार्किट के बेताज बादशाहो! प्रसन्नता की बात है कि आपके इम्तिहान की घड़ी एक बार फिर आ रही है। इम्तिहान की घड़ी बोले तो आपको सूचित करते हुए मुझे प्रसन्नता हो रही है कि महामारी की तीसरी लहर अब कभी भी आ सकती है। इस बात को सरकार ने स्वीकार कर लिया है। सरकार कह रही है कि अगर जनता ने सावधानी नहीं बरती तो तीसरी लहर का आना लाज़िमी है।
"मित्रो! तीसरी ही क्या, महामारी की चाहे कितनी ही लहरें क्यों न आएँ? हम महामारी में उपयोग होने वाले सामान को लेकर हर दम जनता की सेवा में हाज़िर रहेंगे। यह आपकी तरफ़ से देश की जनता को मैं विश्वास दिलाता हूँ।
हम ही क्या, हमारा ख़ुदा भी जानता है कि हमारे देश में सब कुछ बरता जा सकता है, पर सावधानी हरगिज़ नहीं। देर-सबेर जनता का लापरवाही से प्रेम ही हमारे बाज़ार की चकाचौंध बढ़ाता रहा है।
"मित्रो! आपने अपना अदम्य साहस बताते हुए महामारी की दूसरी लहर में जिस तरह से महामारी से संबंधित सामग्री ख़ुद को जोखिम में डाल मनमाने दामों पर सीना तान कर जनता को हर हाल में मुहैया करवा उसकी जान बचाई, वह क़ाबिले तारीफ़ है। इसके लिए आप सबको साधुवाद! इसके लिए आप सबकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है। आपने दिन–रात एक कर अपनी जान की परवाह किए बग़ैर सरेआम धंधा करते हुए भी छुप-छुप कर जिस तरह लोगों की जान बचाई वह मानवता के इतिहास में सदैव याद रहेगा।
"अब जो ख़ास बात मैं आपसे शेयर करना चाहता हूँ, जिसके लिए यह गूगलमीट रखी गई है, वह यह कि तीसरी लहर को लेकर हमें अभी से पूरे दिमाग़ से तैयारी शुरू करनी होगी। महामारी की हर बीमारी से संबंधित हर सामान अपने गोदामों में अभी से जल्दी-जल्दी इकट्ठा करना शुरू करना होगा ताकि अबके समय आने पर पिछली दफा की तरह जनता को इधर–उधर न भागना पड़े, और हमें जनता के आगे शर्मसार न होना पड़े।
"मित्रो! पिछली लहर में आपकी अहर्निश सेवाओं के चलते पता नहीं कितने जीवों की जान बची? पैसे का क्या? पैसा तो हाथ पैर का मैल होता है। शास्त्रों में भी कहा गया है कि धन गया तो कुछ नहीं गया। चरित्र गया तो भी कुछ नहीं गया। पर स्वास्थ्य गया तो सब कुछ गया। मरने के बाद धन दौलत किस काम की?"
"पर सर! जैसा कि मीडिया पर ख़बरें बराबर आ रही हैं कि अबके सरकार ने तीसरी लहर से निपटने की तैयारी अभी से युद्ध स्तर पर शुरू कर दी है, तो ऐसे में अबके लगता है कि . . ."
ब्लैक मार्किट में नया-नया क़दम रखे एक मार्किटिए ने तीसरी लहर में ब्लैक मार्किट पर शंका ज़ाहिर की तो संघ के प्रेसीडेंट सीना चौड़ा कर उसे समझाते बोले, "मित्र! सरकार की तैयारियाँ हमने आज तक बहुत देखीं। यह उसकी कोई नई तैयारी नहीं है। हर बार आपदा आने से पहले सरकार बड़े-बड़े दावे करती रही है। पर जब सच्ची को आपदा आती है तो उसके सारे इंतज़ाम चींटी के मुँह का जीरा हो जाते हैं। इसलिए सरकार की तैयारियों के साथ ही साथ बैकअप के रूप में हमें सरकार की तैयारियों से अधिक अपनी तैयारी रखनी होगी। बाद में जो कुछ काम आएगा तो बस, बैकअप ही काम आएगा। हम केवल और केवल सरकार की तैयारियों के भरोसे तो देश की जनता को छोड़ नहीं सकते न? इस देश के संभ्रांत जीव होने के नाते देश के प्रति कुछ हमारा भी दायित्व बनता है कि नहीं?
"मित्रो! असल में जब भी कोई आपदा आती है, उनकी सारी तैयारियाँ कोने में दुबक कर छुप जाती हैं। इसलिए सरकार के बयानों पर नहीं, अपने को ब्लैक मार्किट के कामों में कंसंट्रेट करो। तीसरी लहर में सख़्त ज़रूरत पड़ने वाली चीज़ों से अपने गोदाम अभी से भरने शुरू कर दो ताकि ऐन मौक़े पर जनता को बंद होते फेफड़े लिए इधर–उधर न भागना पड़े। इधर–उधर भागते हुए परेशान न होना पड़े। प्राइवेट अस्पतालों को अभी से एडवांस दे वहाँ के सारे बेड बुक करवा दो ताकि तीसरी लहर के वक़्त जनता को जो कहीं ख़ाली बेड न मिले तो हम जनता को वे बेड दिलवा नर सेवा नारायण सेवा कर सकें। स्वस्थ होते तो वह दिन–रात पेट पीठ पर लिए दौड़ती रहती है, पर बीमारी की हालत में जनता को क़तई भी पेट पीठ पर लिए इधर–उधर न दौड़ना पड़े। अबके ब्लैक में बेचे सामान की होम डिलीवरी पर भी संघ विचार कर रहा है।
हमें पता है कि अपने देश की जनता लापरवाहियों की खिलाड़ी है, मस्ती की सवारी है। सावधान होते हुए भी वह लापरवाही हर हाल में करेगी ही। क्योंकि लापरवाही उसकी रग-रग में बसी है। इधर उसकी लापरवाही बढ़ी तो दूसरी ओर अपने धंधे की तूती बोली।"
"पर सर! लगता है अबके ऑक्सीजन का कारोबार ब्लैक में क़तई नहीं होने वाला," एक और ब्लैक बाज़ारी के धंधे में नया-नया क़दम रखने वाले ने उनसे कहा तो उन्होंने उसीसे ठहाका लगाते पूछा, "क्यों?"
"क्योंकि सर, सरकार ने जगह-जगह ऑक्सीजन प्लांट जो प्लांट कर दिए हैं!"
"तो क्या हो गया! सरकार ने तो देश में स्वर्ग तक प्लांट कर दिया है। पर कहीं स्वर्ग दिखा तुम्हें? नहीं न! ज़िंदा जी तो छोड़िए, स्वर्ग तो मरने के बाद भी यहाँ के जीवों को नहीं दिखता, मिलना तो दूर की बात है। सरकार को होने वाली हर क़िस्म की सप्लाई के बारे में हमसे अधिक और कौन जान सकता है? क्या पता तब वे चलें ही न! चलेंगे भी तो सिस्टम में बैठे हमारे बंदे उन्हें दूसरे ही दिन जेब भराई के चक्कर में ख़राब कर देंगे। उन्हें पता है कि वे चलेंगे तो वे अपनी जेबें कैसे भरेंगे? ब्लैक का कारोबार ऐसे ही सरकार के प्रति निष्ठा रखने वालों की छत्रछाया में पनपता रहा है, और फ़्यूचर में भी यों ही अबाध पनपता रहेगा। आज तक अपने ही सप्लायर भाइयों द्वारा जब-जब सरकार को दवा से लेकर हवा तक सप्लाई करने की बारी आई है तो वह दवा और हवा कुछ और ही सप्लाई होती रही है। इसलिए मैं आप सबसे एक बार पुनः अपील करता हूँ कि इससे पहले कि तीसरी लहर आए, हमें अपने को सरकार से अधिक जनता की रक्षा के लिए अभी से पूरी तरह तैयार रखना होगा। जय हिंद! जय ब्लैक मार्किट!"
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
-
- रावण ऐसे नहीं मरा करते दोस्त
- शर्मा एक्सक्लूसिव पैट् शॉप
- अंधास्था द्वारे, वारे-न्यारे
- अंधेर नगरी फ़ास्ट क़ानून
- अजर अमर वायरस
- अतिथि करोनो भवः
- अपने गंजे, अपने कंघे
- अब तो मैं पुतला होकर ही रहूँगा
- अभिनंदन ग्रंथ की अंतिम यात्रा
- अमृत अल्कोहल दोऊ खड़े . . .
- असंतुष्ट इज़ बैटर दैन संतुष्ट
- अस्पताल में एक और आम हादसा
- आज्ञाकारी पति की वाल से
- आदमी होने की ज़रूरी शर्त
- आदर्श ऑफ़िस के दरिंदे
- आश्वासन मय सब जग जानी
- आसमान तो नहीं गिरा है न भाई साहब!
- आह प्रदूषण! वाह प्रदूषण!!
- आह रिटायरी! स्वाहा रिटायरी!
- इंस्पेक्टर खातादीन सुवाच
- उठो हिंदी वियोगी! मैम आ गई
- उधार दे, कुएँ में डाल
- उनका न्यू मोटर वीइकल क़ानून
- उफ़! अब मेरे भी दिन फिरेंगे
- एक और वैष्णव का उदय
- एक निगेटिव रिपोर्ट बस!
- एक सार्वजनिक सूचना
- एप्पों की पालकी! जय कन्हैया लाल की!
- ऐन ऑफ़िशियल प्लांटेशन ड्राइव
- ऑफ़िस शोक
- ओम् जय उलूक जी भ्राता!
- कंघीहीन भाइयों के लिए ख़ुशख़बरी!
- कवि की निजी क्रीड़ात्मक पीड़ाएँ
- काम करे मेरी जूत्ती
- कालजयी का जयंती लाइव
- कालजयी होने की खुजली
- कुक्कड़ का राजनीतिक शोक
- कुछ तीखा हो जाए
- कुशल साहब, ग़ुसल लाजवाब
- केवल गाँधी वाले आवेदन करें
- क्षमाम्! क्षमाम्! चमचाश्री!
- खानदानी सांत्वना छाप मरहमखाना
- गधी मैया दूध दे
- गर्दभ कैबिनेट हेतु बुद्धिजीवी विमर्श
- चमचा अलंकरण समारोह
- चरणयोगी भोग्या वसुंधरा
- चला गब्बर बब्बर होने
- चार्ज हैंडिड ओवर, टेकन ओवर
- चुनाव करवाइए, कोविड भगाइए
- छगन जी पहलवान लोकतंत्र की रक्षा के अखाड़े में
- जनतंत्र द्रुत प्रगति पर है
- जाके प्रिय न बॉस बीवेही
- जी ज़नाब का मिठाई सेटिंग दर्शन
- जैसे तुम, वैसे हम
- जो सुख सरकारी चौबारे वह....
- ज्ञानपीठ कोचिंग सेंटर
- टट्टी ख़त्म
- ट्रायल का बकरा मैं मैं
- ट्रिन.. ट्रिन... ट्रिन... ट्रिन...
- ठंडी चाय, तौबा! हाय!
- ठेले पर वैक्सीन
- डेज़ी की कमर्शियल आत्मकथा
- डोमेस्टिक चकित्सक के घर कोराना
- तीसरे दर्जे का शुभचिंतक
- त्रस्त पतियों के लिए डायमंड चांस
- त्रासदी विवाहित इश्क़िए की
- दंबूक सिंह खद्दरधारी
- दीर्घायु कामना को उग्र बीवी!
- धुएँ का नया लॉट
- न काहू से दोस्ती, न काहू की ख़ैर
- नंगा सबसे चंगा
- नई नाक वाले पुराने दोस्त
- नमः नव मठाधिपतये
- नशा मुक्ति केंद्र में लेखक
- नो कमेंट्स प्लीज!
- नक़लं परमं धर्मम्
- पधारो म्हारे मोबाइल नशा मुक्ति धाम
- परसाई की पीठ पर गधा
- पशु-आदमी भाई! भाई!
- पहली बार मज़े
- पार्टी सौभाग्य श्री की तलाश
- पावर वालों का पावरफ़ुल कुत्ता
- पुरस्कार पाने का रोडमैप
- पुरस्कार रोग से लाचार और मैं तीमारदार
- पुल के उठाले में नेता जी
- पेपर लीकेज संघ ज़िंदाबाद!
- पैदल चल, मस्त रह
- पोइट आइसोलेशन में है वसंत!
- पोलिंग की पूर्व संध्या पर नेताजी का उद्बोधन
- फिर हैप्पी इंडिपेंडेंस डे
- फोटुओं और कार्यक्रमों का रिश्ता
- बंगाली बाबा परीक्षक वशीकरण वाले
- बधाई हो बधाई!!
- बाबा के डायपर और ऑफ़िस में हाइपर
- बुद्धिजीवी मेकर
- बूढ़ों के लिए ख़ुशख़बरी!
- बेगम जी के उपवास में ख़्वारियाँ
- बैकुंठ में जन्म लेती कुंठाएँ
- ब्लैक मार्किटियों की गूगल मीट
- भगौड़ी बीवी और पति विलाप
- भाड़े की देशभक्ति
- भोलाराम की मुक्ति
- मंत्री जी इंद्रलोक को
- मच्छर एकता ज़िंदाबाद!
- मातादीन का श्राप
- मातादीनजी का कन्फ़ैशन
- माधो! पग-पग ठगों का डेरा
- मार्जन, परिमार्जन, कुत्ता गार्जियन
- मालपुआमय हर कथा सुहानी
- मास्टर जी मंकी मोर्चे पर
- मिक्सिंग, फिक्सिंग और क्या??
- मुहब्बत में राजनीति
- मूर्तिभंजक की मूर्ति का चीरहरण
- मेरी किताब यमलोक पहुँची
- मेरे घर अख़बार आने के कारण
- मॉर्निंग वॉक और न्यू कुत्ता विमर्श
- मोबाइल लोक की जय!
- यमराज के सुतंत्र में गुरुजी
- यान के इंतज़ार में चंद्र सुंदरी
- राइटरों की नई राइटिंग संहिता
- राजनीतिक निवेश में ऐश ही ऐश
- रामदास, ठंड और बयानू सिकंदर
- रिटायरमेंट का मातम
- रिटायरियों का ओरिएंटेशन प्रोग्राम
- रैशनेलिटि स्वाहा
- लिंक बनाए राखिए . . .
- लिटरेचर फ़र्टिलिटी सेंटर
- लो, कर लो बात!
- वदाइयाँ यार! वदाइयाँ!
- विद द ग्रेस ऑफ़ ऑल्माइटी डॉग
- विनम्र श्रद्धांजलि पेंडिंग-सी
- वीवीआईपी के साथ विश्वानाथ
- वैक्सीन का रिएक्शन
- वैष्णवी ब्लड की जाँच रिपोर्ट
- व्यंग्य मार्केटिंग में बीवियाँ
- शर्मा जी को कुत्ता कमान
- शुभाकांक्षी, प्यालीदास!
- शेविंग पाउडर बलमा
- शोक सभा उर्फ टपाजंलि समारोह
- सजना है मुझे! हिंदी के लिए
- सम्मान लिपासुओं के लिए शुभ सूचना
- सम्मानित होने का चस्का
- सर जी! मैं अभी भी ग़ुलाम हूँ
- सरकार का पुतला ज़िंदाबाद!
- सर्व सम्मति से
- सामाजिक न्याय हेतु मंत्री जी को ज्ञापन
- साहब और कोरोना में खलयुद्ध
- साहित्य में साहित्य प्रवर्तक अडीशन
- सूधो! गब्बर से कहियो जाय
- सॉरी सरजी!
- स्टेट्स श्री में कुत्तों का योगदान
- स्याही फेंकिंग सूची और तथाकथित साली की ख़ुशी
- स्वर्गलोक में पारदर्शिता
- हँसना ज़रूरी है
- हम हैं तो मुमकिन है
- हाथ जोड़ता हूँ तिलोत्तमा प्लीज़!
- हादसा तो होने दे यार!
- हाय! मैं अभागा पति
- हिंदी दिवस, श्रोता शून्य, कवि बस!
- हिस्टॉरिकल भाषण
- हैप्पी बर्थडे टू बॉस के ऑगी जी!
- ख़ुश्बू बंद, बदबू शुरू
- ज़िंदा-जी हरिद्वार यात्रा
- ज़िम्मेदारों के बीच यमराज
- फ़र्ज़ी का असली इंटरव्यू
- फ़ेसबुकोहलिक की टाइम लाइन से
- फ़्री का चंदन, नो चूँ! नो चाँ नंदन!
- फ़्री दिल चेकअप कैंप में डियर लाल
- कविता
- पुस्तक समीक्षा
- कहानी
- विडियो
-
- ऑडियो
-