कुछ तीखा हो जाए

15-12-2024

कुछ तीखा हो जाए

डॉ. अशोक गौतम (अंक: 267, दिसंबर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

पता नहीं आपको यक़ीन होगा कि नहीं, परन्तु मैं सच कह रहा हूँ कि पराली जलने से नहीं, समाज जलने से मेरा कुछ न कुछ आए दिन घुट-घुट कर मर रहा है। समाज जलने के धुएँ की घुटन से पहली बार जब मेरा सच मरा था तो ख़ुदा क़सम! मैं बहुत परेशान हुआ था। बहुत रोया था। सोचा, अब कैसे जिऊँगा? सच के बिना कोई जीना भी जीना होता है लल्लू! पर मेरा रोना बेकार था। इधर मेरे सच की अर्थी भी न उठी थी कि चुपके से झूठ ने मेरे कंधे पर बड़े प्यार से अपना हाथ रख मुझे हौसला दिया और सच का उठाला होने से पहले ही मैं जितना सच के साथ चला करता था, उससे कई गुणा तेज़ी से दौड़ने लगा। तब पता चला था कि सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट बिल्कुल सही है। तब पता नहीं मेरे सच के मरते ही मेरे पैरों को पंख कहाँ से लग गए? क़सम खाकर कहता हूँ, तब पंख वाले पैर पहली बार महसूस किए थे। वर्ना बेड़ियों वाले पैरों में ही चलता रहा था। 

मेरे सच के मरने पर लगा, अरे यार! अब तो ज़िन्दगी पंख सी हल्की हो गई। जहाँ मन करे मज़े से उड़ो! विशुद्ध झूठे हैं वे जो कहते हैं कि झूठ के पाँव नहीं होते। झूठ के ही क्या, किसीके भी नहीं होने चाहिएँ। जिसके पास चलने के लिए अपने पाँव होते हैं उसके पाँव पर क़दम-क़दम पर कुल्हाड़ियाँ मार-मार कर, अपने तक उन्हें लहूलुहान कर देते हैं। 

फिर मेरी ईमानदारी मरी, मैंने कोई संज्ञान नहीं लिया। मरी तो मरती रहे। फिर मेरा विश्वास मरा, फिर भी मैंने कोई संज्ञान नहीं लिया। मरा तो मरता रहे। समाज के बदलते व्याकरण में जीव की तरह मूल्य भी तो नश्वर हो गए हैं। 

पर अब सुनो मज़े की बात! कल रात मेरा ज़मीर भी मर गया। कुल मिलाकर अवसर दुअवसर सुअवसर हर आदमी के पास दिखाने को एक जितना भी हो, ज़मीर ही होता है जो झूठ, बेईमानी में भी उसे ज़िन्दा रहने की प्रेरणा देता रहता है। तब पल भर को तो मुझे लगा कि मैं भी अब गया। कारण, मेरे शतरंज के ख़ास दोस्त बात बात पर कहा करते थे कि बेटा! शतरंज में वज़ीर और ज़िन्दगी में ज़मीर मर जाए तो खेल ख़त्म हो हुआ समझो, चाहे कितनी ही गेम और ज़िन्दगी क्यों न शेष बची हो। 

तब ज़मीर के मरते ही मुझे कुछ-कुछ घुटन महसूस हुई। लगा, शतरंज वाला दोस्त ठीक ही कहता था। ज़मीर के मरते ही मैंने ज्यों ही इस बात की, सुखद या दुखद जो भी मेरे फ़ेसबुकिया फ़्रेंड समझें, सूचना अपने तमाम मित्रों से साझा की तो तुरंत मिली-जुली प्रतिक्रिया हुई। आजकल लोग फ़ेसबुक पर ही खाते हैं, फ़ेसबुक पर ही नहाते हैं, फ़ेसबुक पर ही मेहनत करते-करते सो जाते हैं। कुछ ने तत्काल लिखा, “गुड लक! बहुत भाग्यशाली हो। देर से ही सही, मरे ज़मीर वाले हुए। अब खीर खाओ। औरों की कड़ाही का हलुआ खाओ!” तो कुछ ज़मीरियों ने लिखा, “बेटा! अब तुम गए। ज़मीर मर जाने के बाद आदमी के भीतर कुछ शेष मरने को नहीं जाता। जितने को हम आते हैं अपनी अंतिम यात्रा की तैयारी करो। आते-आते कुछ लाना हो तो फ़ेसबुक पर डाल देना।”

फ़ेसबुक पर मेरे द्वारा मेरे ज़मीर के मरने की सूचना ज्यों ही मेरे परम मित्र को मिली तो वे दौड़े-दौड़े मेरे पास आए। उन्होंने मुझे ज़िन्दा देखा तो उन्हें हैरानी भी हुई और परेशानी भी। हैरानी और परेशानी के मिश्रित भाव उनके दिमाग़ पर देखे तो मैंने मज़े लेने को पूछा, “मित्र! इतने परेशान-हैरान क्यों हो? अभी मेरा ज़मीर ही तो मरा है। मैं तो ज़िन्दा हूँ न, ये देखो, ये देखो?” 

“यही देख तो मैं और हैरान और परेशान दोनों एक साथ हूँ। क़ायदे से तो ज़मीर मरने के बाद तुम जैसे आदमी एकदम मरते देखे हैं मैंने। या तो तुम वैसे आदमी नहीं हो जैसा मैं सोचता था या फिर . . . दुकान बंद कर, फ़ेसबुकिया सूचना पढ़, आरआईपी लिखने के बदले दौड़ा-दौड़ा चला आया कि इससे पहले तुम्हारी आँखें पूरी बंद हो जाएँ मैं तुम्हारे ज़िन्दा के अंतिम दर्शन कर लूँ। मरने के बाद तो वे भी दर्शन करने पड़ोसी से उधार ले टैैक्सी में दौड़े-दौड़े आ जाते हैं जिन्होंने कभी बरसों हमें देखा भी न हो।”

“पर मुझे तो मेरे ज़मीर के मरने पर भी कुछ नहीं हो रहा। हाँ! शुरू शुरू में घुटन सी फ़ील हुई थी, अब वह भी ठीक है। देखो तो, पहले से स्वस्थ मस्त हूँ। अब मज़े से साँस ले रहा हूँ। बल्कि यूँ कहूँ कि पहले से ‘इजीली’ साँस ले रहा हूँ तो तुम्हें बहुत बुरा लगेगा। देखो तो, मेरा दिमाग़ मेरे ज़मीर के मरने पर पहले से भी अधिक एक्टिव हो गया है। मेरे ज़मीर के मरने के बाद मेरे चेहरे पर पहले से अधिक ‘ग्लो’ नहीं देख रहे हो तुम क्या? मैंने तो ज़मीर के मरने पर सबसे पहले आईने में अपने चेहरे को ही देखा था कि वह कैसे बदलेगा अब? पर उसपर पहले से अधिक ताज़गी दिखी तो मुझे पता चल गया था कि तुम मुझे आजतक झूठ बोल-बोल कर डराए रहे ताकि मैं चैन से न जी सकूँ। मेरे चेहरे पर ऐसी मुस्कुराहट पहले कभी तुमने देखी थी क्या जितनी अब देख रहे हो? तुम क्यों देखोगे? तुम्हें तो अपने चेहरे की मुस्कुराहट ही अच्छी लगती है न! वैसे भी यहाँ लोग अपने चेहरों की मुस्कुराहटों को ही सँभालने में जुटे रहते हैं। उनके चेहरे की मुस्कुराहटें सलामत तो दूसरों के चेहरों पर होती रहे तो होती रहे क़यामत। 

“मित्र! शतरंज का खेल भले ही वज़ीर के मरने पर ख़त्म होता हो तो होता रहे, पर ज़िन्दगी का असली खेल ज़मीर के मरने के बाद ही शुरू होता है। खेल के नियम ज़िन्दगी में क़तई लागू नहीं होते। ज़िन्दगी और खेल दोनों अलग अलग छोर हैं। 

“मित्र! सच कहूँ तो मैं अपने को इस वक़्त इतना डिलाइट फ़ील कर रहा हूँ जितना मैंने अपने सच के मरने पर भी न किया था। मित्र! सच कहूँ तो मैं अपने को इस वक़्त इतना डिलाइट फ़ील कर रहा हूँ जितना मैंने अपनी ईमानदारी के मरने पर भी न किया था। मित्र! सच कहूँ तो मैं अपने को इस वक़्त इतना डिलाइट फ़ील कर रहा हूँ जितना मैंने अपनी नैतिकता के मरने पर भी न किया था। 

“मुँह पर कहता हूँ मित्र! तुम झूठे नहीं, सरासर निकले! तुमने मुझे इतने सालों तक डराए रखा कि ज़मीर के मरने पर गधे से गधा भी मर जाता है। पर देखो, मैं तो पहले से अधिक संजीदगी से ज़िन्दा हूँ!” तब उन्हें लगा, मैं बौरा गया। उनका ये भी मानना था कि आदमी के ज़मीर के मरने पर आदमी मरे नहीं तो भी आदमी के ज़मीर के मरने पर आदमी पर कोई न कोई साइड इफ़ेक्ट होता ही है; उसी तरह जिस तरह दिमाग़ में थक्का आने से। पर अपने यहाँ वैसा कुछ भी नहीं था! अब तो दिमाग़ में थक्के आने से बहुतों के दिमाग़ मैंने पहले से अधिक एक्टिव होते देखे हैं।” 

मित्रो! मेरे जिन-जिन मित्रों ने मेरे ज़मीर के मरने में, मेरे मरने की संभावनाएँ तलाशी, तराशी थीं, उन्हें फ़ेसबुक पर शुभसूचना देते हुए मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है कि आज मेरे मरे ज़मीर का चौथा है, पर मैं पहले से अधिक फ़िट हूँ। सच कहूँ तो मुझे ज़मीर के मरने के बाद ही जीने का असली आनंद आ रहा है। अपने फेबुकिया दोस्त पर लेश मात्र भी विश्वास हो तो अपने ज़मीर को बचाइए मत! उसे मज़े से मरने दीजिए। किराए का नहीं, मेरा मौलिक अनुभव है। अपनी परवाह कीजिए बस! वह बीमार हो तो उसका इलाज मत कराइए। ये समय ज़मीर के मरने पर रोने का समय नहीं, मरे ज़मीरों के बीच ठहाके लगाकर जीने का समय है। इसलिए अपने ज़मीर के मरने की ख़ुशी में खुली सड़क पर ज़मीर बचाकर रखने वाले दोस्तों के साथ बैठकर पीने का समय है। क़सम से! मुझे जो पहले पता होता कि इस मुए ज़मीर के मरने के बाद ज़िन्दगी इतनी रंगीन हो जाएगी तो इसके अपनी मौत मरने का इतना लंबा इंतज़ार के बदले सबसे पहले इसकी ही हत्या कर, आज तक जीने का मत पूछो कितना स्वर्गिक आनंद ले चुका होता। 

अंदर की बात कहूँ, मेरे ज़मीर के मरने के बाद मुझसे अधिक मेरे घरवाले आनंदित हैं। 

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