एप्पों की पालकी! जय कन्हैया लाल की!

01-11-2021

एप्पों की पालकी! जय कन्हैया लाल की!

डॉ. अशोक गौतम (अंक: 192, नवम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

अब नाती पोतों के नाना, दादा की पीठ की सवारी के दिन लद गए। अब तो ठा से एप्प की पीठ की सवारी के दिन हैं। अब बच्चा पैदा होते ही माँ से दूध! दूध! नहीं, मोबाइल! मोबाइल! की रोते हुए डिमांड करता है। और माँ भी झट से उसे अपना दूध पिलाने के बदले अपने सिरहाने रखा मोबाइल ठीक उसी तरह थमा देती है जैसे मेरे ज़माने में माँ मेरे रोने पर मेरे हाथ में छुनछुना थमाया करती थी। और मैं हाथ में छुनछुना लिए उसे बजाता फूला न समाया करता था, ठीक उसी तरह उससे खेला करता था जैसे आज नेता लोग जीत जाने के बाद जनता के हाथ में छुनछुना थमा देते हैं और वह अगले चुनाव तक उस छुनछुने को बजाते हुए अपना मन बहलाती रहती है। फिर जैसे ही दूसरा नेता जीतता है तो वह भी उसके हाथ में छुनछुना थमा देता है इस इरादे से कि हे मेरे प्रिय वोटर! अगले चुनाव तक तुम भी मेरा छुनछुना बजाओ ओर मेरी ओर लगाई उम्मीदों से परम शांति पाओ। उसके हाथ में अपनी माँ के सिरहाने रखा फोन आते ही उसे लोरी सुनाने की भी ज़रूरत महसूस नहीं होती। वह फोन में पहले से विराजमान लोरियों को ख़ुद ही ऑन करता है और माँ के माँ के समय की अधकचरी लोरियों को सुनाने से पहले ही घोड़े बेचकर सो जाता है– मोबाइल की पालकी! जय कन्हैया लाल की!

मत पूछो, तब हाथ में मोबाइल ले उसमें अपलोडिड एप्पों की पीठ पर सवार होने को लालायित निउली बॉर्न बेबी किस तरह माँ से लड़ने झगड़ने लगता है! माँ से माँ का मोबाइल ले तब उसे लगता है जैसे वह माँ की बग़ल में न लेट सूरज के रथ पर सवार हो। सूरज के सातों घोड़ों की लगामें उसकी हाथ में हों। 

वाह! इतने एपिया घोड़े! ! इतने तो स्वर्ग के देवताओं के रथ में भी नहीं होते। अहा! इतनी गेमें! अब तो बाहर गली में खेलने जाने की भी ज़रूरत नहीं। किसी दोस्त तक की ज़रूरत नहीं, अकेले ही जी भर खेलते रहो। भाड़ में जाएँ दोस्त! तब उसे पहली बार पता चलता है कि बचपन में अकेले भी खेला जा सकता है। हाथ में माँ का मोबाइल लिए, उसके टच पैड को अपनी उँगलियों से सहलाते किलकारियाँ भरते देख तब मत पूछो माँ किस तरह उसकी बलैया लेने लगती है, उसके बलिहारी जाती है। अब बाल की बाल लीलाएँ खिलौनों, सखाओं संग नहीं, मोबाइल में लोडिड एप्पों के संग होती हैं। प्रभु! ऐसे में जो अब गोपाल एक बार धरती पर आ जाएँ तो वे भी राधा, यमुना, गायों, गोपों को छोड़ मोबाइल पर ही तरह तरह बाल की लीलाएँ रचाएँ। और माँ यशोदा! बस, उनका मोबाइल रिचार्ज करवाती-करवाती उन्हें निहारती रहें। तब सूरदास उनकी बाल लीलाओं का कैसा वर्णन करेंगे, तभी किंडल पर पढ़ेंगे हम लोग!

भाई साहब! अब कहीं घूमने जाना हो तो किसीसे वहाँ का फ़ीड बैक लेने की कोई ज़रूरत नहीं। घुमाने वाले एप्प की पीठ पर लेटे-लेटे मज़े से सवार हो लिए। जगह पसंद आई तो एप्प के थ्रू वहाँ सब कुछ ठुक से बुक डिजिटली करवा लिया। कहीं शोक व्यक्त करने जाना हो तो हँसते-हँसते शोक व्यक्त करने वाले एप्प की चटाई पर बैठ लिए ओम् शांति! ओम् शांति करते हुए। दवाई खानी-लानी हो तो दवा वाले एप्प की पीठ ज़िंदाबाद! जो भूख लगी तो रसोई के बदले एप्प की पीठ पर सवार हुए और माँ के हाथों के खाने से भी लज़ीज़ खाना हाज़िर। अब तो राजकुमार तक अपनी राजकुमारी को ढूँढ़ने घोड़े पर सवार होकर नहीं, प्रेम वाले एप्प की पीठ पर ही सवार होकर निकलते हैं। अब वह दिन दूर नहीं जब अंधविश्वाशी जीव मरने के बाद यमदूतों की पीठ पर नहीं, एप्प की पीठ पर सवार होकर ही यमलोक गमन किया करेगा।
 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता
पुस्तक समीक्षा
कहानी
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में

लेखक की पुस्तकें