लिटरेचर फ़र्टिलिटी सेंटर
डॉ. अशोक गौतमलाइफ़ में उन्होंने जो चाहा, वह वह सुबकुछ हुए, पर बहुत चाहकर भी कवि न हो पाए। कवि बनने को उन्होंने पता नहीं कितनी कोशिश नहीं की। किन किन कवियों के संसर्ग में नहीं गए? वे प्रगतिवादियों के संसर्ग में गए, वे न कवितावादियों के संसर्ग में गए, वे ट कवितावादियों के संसर्ग में भी गए, पर फिर भी कविता वाली गोद ख़ाली की ख़ाली। वे अ कविता वालों के घर में तो वैध अवैध ढंग से बीसियों दिन रहे। पर फिर भी उनकी कविता की कोख हरी न हो सकी। पर उन्होंने भी ठान लिया था कि सिर के ऊपर का आसमान नीचे हो जाए तो हो जाए, पर वे कविता के बाप ज़रूर होकर रहेंगे।
पर लाख कोशिशों के बाद भी जब उनकी कोख नैसर्गिक कविता से हरी भरी न हो पाई तो एक दिन वे अपने शहर के लिटरेचर फ़र्टिलिटी सेंटर के विशेषज्ञ से गुपचुप तरीक़े से मिले। उनसे अपने को पूरी तरह चेक करवाया। उन्हें ग़ौर से चेक करने के बाद लिटरेचर फ़र्टिलिटी सेंटर के लिटरेचर विशेषज्ञ ने उन्हें बताया कि वे किसी भी तरह ’नेचुरल वे’ में कविता को जन्म नहीं दे सकते। क्योंकि उनमें कविता के और तो सारे एलिमेंट हैं, पर कविता को जन्म देने वाले मेन काव्याणुओं में गड़बड़ी है। यही नहीं, उनमें कविता को जन्म देने वाले काव्याणुओं की संख्या भी बहुत कम है। कुछ कुछ कविता की रचनात्मकता काव्याणुओं में भी विकृति है। आदमी के शरीर से हर क़िस्म की विकृत दवाइयों के सहारे ठीक की जा सकती है पर कविता को जन्म देने वाले काव्याणुओं को किसी भी दवा से ठीक नहीं किया जा सकता।
“तो?” लिटरेचर फ़र्टिलिटी सेंटर के विशेषज्ञ से यह सुन उनको बहुत धक्का लगा। उनको लगा ज्यों इस जन्म में उनका कविता का बाप होने का सपना टूट गया हो जैसे। तब उनकी रचनात्मक घुटन को देख लिटरेचर फ़र्टिलिटी सेंटर के विशेषज्ञ ने आधे मुस्कुराते उनसे कहा, “डरिए मत! हिम्मत रखिए। हम हैं न! हमने आजतक पता नहीं कितने व्यंग्यकारों कहानीकारों, नाटककारों, समीक्षकों की उजाड़ गोदें अपने कारनामों से हरी-भरी की हैं। अगर तुम सच्ची को कविता के फ़ादर बनना ही चाहते हो तो एक रास्ता अभी भी ओपन है। हम अपने लिटरेचर फ़र्टिलिटी सेंटर में कृत्रिम विधि से किसी कवि के गर्भाशय में तुम्हारी कविता के स्पर्म प्रत्यारोपित कर उसे गर्भधारण करवा देंगे।”
“मतलब? मैं कविता का बाप बन जाऊँगा?” सुन वे चौंके।
“जी हाँ! वह भी शर्तिया! अब सैरोगेट कवि तुम्हारी कविता को जन्म देगा। तुम्हें चेक करने के बाद जितना मैंने महसूसा है, उसका निचोड़ ये निकला है कि तुम नेचुरल वे में कविता के भाव रखने के बाद भी कविता को जन्म नहीं दे सकते। पर हम किसीको भी हिम्मत नहीं हारने देते।”
“सैरोगेट कवि भी होते हैं क्या सर?” वे लिटरेचर फ़र्टिलिटी सेंटर के विशेषज्ञ के पाँव चूमने को हुए तो लिटरेचर फ़र्टिलिटी सेंटर के विशेषज्ञ ने अति विश्वास के साथ कहा, “क्यों नहीं! अपने यहाँ हर तरह के साहित्यकार होते हैं। सैरोगेट साहित्यकार से लेकर . . .”
“तो वह मेरी कविता को जन्म कैसे देगा?”
“हम किसी सैरोगेट कवि की तलाश करने के बाद उससे उसकी कविता करने वाली कोख किराए पर ले लेंगे। फिर लेटेस्ट तकनीक से उसकी कविता को जन्म देने वाली कोख में तुम्हारी कविता के अंडे को पॉलिश करने के बाद उसमें स्थापित कर देंगे। और जैसे ही वह कविता को जन्म देगा, हम उस कमर्शियल सैरोगेट कवि से जन्मी कविता को तुम्हारे नाम हस्तांतरित करवा लेंगे। इस तरह तुम जैनेटिक कवि हो जाओगे,” लिटरेचर फ़र्टिलिटी सेंटर के विशेषज्ञ ने उन्हें बताया तो वे अपना पेट पकड़े उछलते बोले, “सैरोगेट कवि आसानी से मिल जाते हैं क्या?”
“ढूँढ़ने से क्या नहीं मिल जाता अपने यहाँ! हमारे यहाँ ऐसे पता नहीं कितने कवि हैं जो कवि तो हैं, पर उनको पूछता कोई नहीं। उनके पास आय का दूसरा कोई साधन नहीं और उनकी कविता ख़रीदता कोई नहीं। इसलिए हम ऐसे ही कवि से संपर्क करेंगे। उसको चार पैसे बन जाएँगे और तुम कविता के पिता।”
“तो प्लीज़! जल्दी से किसी सैरोगेट कवि का ढूँढ़िएगा, ” देखते ही देखते उनके भीतर का कविता का जैनेटिक बाप कुलाँचे मारने लगा,” तो सर! मामला कितने तक में तय हो सकता है?” कविता का जैनेटिक बाप बनने को आतुर ने लिटरेचर फ़र्टिलिटी सेंटर के विशेषज्ञ से जेब में हाथ डालते पूछा तो उसने कहा, “यही कोई पाँच सात हज़ार में!”
“बस?” कविता का बाप बनने की चाह वाले ने तुरंत अपनी जेब से दो दो हज़ार के पाँच नोट निकाले और लिटरेचर फ़र्टिलिटी सेंटर के विशेषज्ञ की मेज़ पर रखते कहा, “तो मैं अब कब आऊँ आपके लिटरेचर फ़र्टिलिटी सेंटर में?”
“जैसे ही मुझे कोई सैरोगेट कवि मिलेगा, मैं उसी वक़्त आपको कॉल कर दूँगा। साहित्यिक टेस्ट तो तुम्हारे सारे हो ही गए हैं। अब समझो कि तुमने कविता को जन्म दे दिया। अब तुम देश के जाने माने कवियों में शुमार होने की तैयारी शुरू कर दो। अब तुम्हें ज्ञानपीठ लेने से ज्ञानपीठ भी नहीं रोक सकता।”
“सच कहूँ तो डॉक्टर साहब! मेरे पास नंबर दो की कमाई का दिया सब कुछ है। घर है दसियों बीवियाँ हैं। पचासियों बच्चे हैं, पर कविता की तरफ़ से मैं निस्संतान था। अब वह कमी आपने पूरी कर दी। आप मुझे बस, एक बार पहली और आख़िरी कविता का बाप बना दें,” उन्होंने लिटरेचर फ़र्टिलिटी सेंटर के विशेषज्ञ के पाँव छुए और ऐसे वहाँ से यों दनदनाते गुनगुनाते बाहर निकले ज्यों उनकी गोद में कविता हँस रही हो।
1 टिप्पणियाँ
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वाह । मज़ा आ गया । सचमुच आज हम जैसे इनफरटाइल काव्यबापों के लिए ख़ुशख़बरी । वाह क्या जेनेटिक सोच है । बहुत बधाई
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