मास्टर जी मंकी मोर्चे पर

01-04-2024

मास्टर जी मंकी मोर्चे पर

डॉ. अशोक गौतम (अंक: 250, अप्रैल प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

अपने प्राइमरी स्कूल के कामरेड मास्टर जी स्कूल के कामों को छोड़कर वैसे तो दूसरे हर क़िस्म के ग़ैर शैक्षिक कामों के माहिर हैं, पर जनगणना से लेकर गधा गणना तक में उनका कोई सानी नहीं। वे साल के तीन सौ पैंसठ दिनों में मुश्किल से बीस-पच्चीस दिन ही स्कूल में रहते होंगे। शेष दिनों में किसी न किसी काम के लिए डप्यूट किए जाते हैं या हो जाते हैं। ग़लती से जो उनको स्कूल में लगातार आते हफ़्ता हो जाए तो वे स्कूल के बच्चों से तंग आकर अपने आप ही मुँह लगे अफ़सरों से मिल-मिलाकर फ़ील्ड में अपनी कोई न कोई ड्यूटी लगवा लेते हैं। 

जब भी सरकार को जनगणना, गणना या कोई अन्य फ़ील्ड का ज़रूरी, ग़ैर-ज़रूरी काम प्राथमिकता पर करवाना होता है तो उसके लिए डप्यूट किए सरकारी कर्मचारियों में उनका नाम शीर्ष पर होता है। यही वजह है कि उन्हें स्कूल में अपनी क्लास के बच्चों का पता हो या न, पर अपने ब्लॉक के चप्पे-चप्पे का पता है। उन्हें यह साफ़-साफ़ पता है कि उनके ब्लॉक कहाँ-कहाँ कितने कितने वयस्क, अवयस्क सूअर हैं। उन्हें यह साफ़-साफ़ पता है कि उनके ब्लॉक में कहाँ-कहाँ, किस-किस रंग के, किस-किस नस्ल के कितने कुत्ते हैं। उन्हें यह साफ़-साफ़ पता है उनके ब्लॉक में कितने युवा, अधेड़ और कितने बूढ़े साँड़ हैं। उन्हें अपने ब्लॉक में उँगलियों पर पता है कि उनके ब्लॉक में किस जात के कितने साक्षर और कितने निरक्षर गधे हैं। 

जैसे ही अब के फिर सरकार ने चाहा कि देश के मंकियों के लिए नई विकास नीति बनाने हेतु मंकियों की नए सिरे से गणना की जाए ताकि सरकार बहादुर को साफ़-साफ़ पता चले कि वर्तमान में देश में मंकियों की ताज़ा जातीय स्थिति क्या है? देश में स्थायी मंकी कितने हैं और कितने बाहर से आए हैं। सरकार के अथक प्रयासों से उनके जीवन स्तर में कितना सुधार हुआ है। कि आने वाले चुनाव में सरकार में उनके प्रतिनिधित्व को तय किया जा सके। 

इधर सरकार के ये आदेश ब्लॉक लेबल पर पहुँचे ही कि उधर अफ़सरों ने तत्काल हरकत में आते सरकारी स्कूल के मास्टरों से बच्चों को पढ़वाना बंद कर उनको मंकियों की ताज़ा गणना करने को डप्यूट कर दिया। ज्यों ही अपने मास्टर जी को इस बात का पता चला कि उन्हें अबके फ़ील्ड में घूमने का मौक़ा मंकी दे रहे हैं तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। वे तत्काल उठे और मंकियों के अस्थायी शिविर में उनको दो किलो चने डाल आए। 

मास्टर जी को मंकी गिनने की दो दिन की विशेष सरकारी ट्रेनिंग दी गई जिसमें बताया गया कि मंकियों की गणना करते हुए और किन-किन बातों को क़लमबद्ध करना होगा। किस तरह से मंकियों से पूछ ईमानदारी से फ़ॉर्म भरने होंगे ताकि मंकियों से संबंधित जानकारी का सही विश्लेषण कर सरकार भविष्य में उनके विकास के कार्यक्रम ईमानदारी से तैयार कर सके। 

अगले ही दिन मास्टर जी ने अपना नई मंकी गणना के लिए छपे फ़ॉर्मों से भरा झोला उठाया और अपनी बग़ल के मंकी मुहल्ले में जा पहुँचे। उन्होंने देखा कि मंकियों का परिवार बाहर धूप में बैठा लेटा है। मंकी परिवार के बच्चे मोबाइल पर ऑनलाइन क्लास लगाने के बहाने कुछ और ही करने में व्यस्त हैं। एक बूढ़ा मंकी चारपाई पर कभी लेटता तो कभी बैठता खों-खों कर रहा है, अपनी खारिश अपने आप ही करता हुआ। मास्टर जी की सामाजिक नज़रों को जानते देर न लगी कि यही मंकी बंदरों के परिवार का मुखिया है। सो, उन्होंने कामरेड होने के बाद भी वक़्त की नब्ज़ पकड़ते दोनों हाथ जोड़े, “मंकीजी को जय श्री राम!” उनके वामपंथी मुख से दक्षिणपंथी ख़ुश्बू का झोंका पाते ही मंकी परिवार का मुखिया बहुत प्रसन्न हुआ। उसे लगा, धरती पर आदमी नहीं तो न सही, पर धर्म अभी भी जीवित है। उसे लगा, ज्यों उसकी पीठ की आधी खारिश छू हुई, “भाई कौन?” 

“मैं प्राइमरी स्कूल का मास्टर!”

“तुम्हें तो इस वक़्त सरकारी स्कूल में होना चाहिए था?” 

“उससे भी बड़े दायित्व का झोला उठाए आपके द्वार आया हूँ चचा!”

“कहो, क्या काम है? अरी मसुरिया! मास्साब आए हैं। ज़रा इनको नल का शुद्ध जल लाना।”

“चचा! रहने दो! जैसा कि अब के सरकार ने चाहा है कि आपके हितों की रक्षार्थ नए सिरे से आपकी गणना की जाए ताकि सरकार को पता चल सके कि आँकड़ों के स्तर पर आपकी जातीय पोज़ीशन क्या है? फिर उस हिसाब से . . .” कह मास्टर जी ने अपने झोले में से मंकी गणना का फ़ॉर्म निकाल उसे भरते हुए पूछना शुरू किया। 

“दो साल पहले ही तो हमारी गणना हुई थी?” 

“हाँ चचा! तब भी मैं ही आपके द्वार आया था। अब सरकार आपकी लेटेस्ट गणना चाहती है। तो आपके घर कुल कितने सदस्य हैं?” 

“मेरे समेत दस!”

“फ़ीमेल कितने हैं?” 

“पाँच!”
 
“उनमें से पढ़े कितने हैं?” 

“सारे बी.ए. हैं।”

“बच्चे कितने हैं?” 

“पाँच!”

“स्कूल कितने जाते हैं?” 

“सात।”

“कौन से?” 

“पब्लिक स्कूल में।”

“सरकारी स्कूल में क्यों नहीं?” 

“तुम स्कूल में रहते ही कहाँ हो मास्टर जी,” मंकी परिवार का मुखिया खाँसते हुए हँसा। 

“अच्छा तो, बच्चे कहाँ खेलते हैं? मेरा मतलब, घर की छतों पर, पेड़ों पर या . . .”

“अपने-अपने मोबाइल पर।”

“आपके घर में मोबाइल कितने हैं?” 

“ग्यारह!”

“कौन से?” 

“बीस-बीस हज़ार वाले।”

“वे उछलते-कूदते क्यों नहीं?” 

“जबसे तुम्हारे आदरणियों ने कभी इस पार्टी तो कभी उस पार्टी उछलना-कूदना शुरू किया है तबसे हमने उछलना-कूदना बंद कर दिया है। हममें और तुम्हारे आदरणियों में कुछ तो अंतर होना चाहिए कि नहीं?” 

“फिर जल्द ही मिलते हैं चचा! सही सही जानकारी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!” मास्टर जी ने मंकी फ़ैमिली हेड से मंकी फ़ैमिली की सही जानकारी मिलने के बाद भी फ़ॉर्म अपने मनमाफिक भर उसके नीचे मंकी हेड के सिगनेचर करवा अपने झोले में घुसेड़ा और अगले हाउस की ओर लपके। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता
पुस्तक समीक्षा
कहानी
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में

लेखक की पुस्तकें