ऐन ऑफ़िशियल प्लांटेशन ड्राइव
डॉ. अशोक गौतम
सरकार आती रही है, सरकार जाती रही है, पर पिछले बीस सालों से इसी ऑफ़िस में जमे हमारे साहब के कमरे की छत से हर मानूसन के दस्तक देते ही अबके भी जैसे ही पानी की पहली बूँद टपकी तो उन्हें पता चल गया कि भाई साहब! मानसून आ गया। हमारे ऑफ़िस की छत की ख़ासियत यह है कि वह हर मानसून के बाद ठीक की जाती है और हर मानसून आने पर फिर टपकती है झुग्गी झोंपड़ी में रहने वाले बच्चों के नाक की तरह।
तो ज्यों ही साहब के कमरे की छत से मानसून की पहली बूँद उनकी टेबल पर टपकी तो वे मोर हो उठे। अपनी टेबल पर मानसून को देख भाव विभोर हो उठे।
अहा! मानसून फिर आ गया! अब फिर मानूसन जाने के बाद ऑफ़िस की छत ठीक करवानी पड़ेगी। रमा आसरे को इस्टीमेट बनाने को कहे देता हूँ। उन्होंने अपने कमरे की छत से मानसून की पहली बूँद अपने ऑफ़िस में प्रवेश करती देखी तो उनका मन प्लांटेशन ड्राइव को मचल उठा। वे उतने स्टाफ़ फ़्रेंडली नहीं जितने इको फ़्रेंडली हैं। वे जानते हैं कि हर समस्या का कारण पर्यावरण का दूषित होना है। जिस दिन पर्यावरण सही हो जाएगा, सब अपने आप ठीक हो जाएगा।
अपने कमरे में मानसून की पहली बूँद का अभिनंदन करते उन्होंने स्टाफ़ सेक्रेटरी को आदेश दिया, “अहा बंधु! हमारे कमरे में मानसून आ गया! स्टाफ़ मीटिंग बुलाई जाए।”
“पर किस लिए सर? अभी परसों ही तो स्टाफ़ मीटिंग बुलाई थी। अब स्टाफ़ फ़ंड में स्टाफ़ मीटिंग के बाद स्टाफ़ को चाय समोसे के लिए पैसे नहीं बचे हैं। बुरा न मानो तो ऐसा करते हैं सर! अब पहली के बाद स्टाफ़ मीटिंग करते हैं। पहली को पाँच दिन ही शेष हैं।”
“कोई बात नहीं। अबके पूरे स्टाफ़ को चाय मेरी ओर से। हम चाहते हैं कि स्टाफ़ मीटिंग एकदम बुलाई जाए।”
. . . और साहब का आदेश स्टाफ़ सेक्रेटरी ने सिर माथे ले उन्हीं की टेबल पर से स्टाफ़ नोटिस निकाला, “साहब के हर आम और ख़ास मातहत को सूचित किया जाता है कि कल बारह बजे स्टाफ़ की आपताकालीन मीटिंग साहब के कमरे में रखी गई है। अतः मीटिंग में सारे काम छोड़ आना अनिवार्य माना जाए।”
और अगले दिन साहब के कमरे में साढ़े ग्यारह बजे ही सारा स्टाफ़ जमा हो गया, पर स्टाफ़ मीटिंग साढ़े बारह बजे शुरू हुई।
मीटिंग का एजेंडा स्टाफ़ सेक्रेटरी को पहले ही पता था। सो स्टाफ़ सेक्रेटरी ने जैसे ही साहब की बग़ल में खड़े हो साहब की ओर मस्तक झुका स्टाफ़ को संबोधित करने के लिए साहब को कुर्सी पर बैठे-बैठे आमंत्रित किया तो स्टाफ़ ने तालियाँ बजाईं। तब साहब ने कुर्सी पर बैठे–लेटे, आड़े–तिरछे होते कुशल वक्ता की मुद्रा बना स्टाफ़ को संबोधित करना शुरू किया, “हे मेरे ऑफ़िस के जुझारू नर सेवियो! ये आपकी ही कार्य कुशलता का नतीजा है कि आज हमारे ऑफ़िस में कोई नहीं आता, पर मानसून आ गया है। उसके आने का पता मुझे तब चला जब कल मेरी टेबल पर दो महीने पहले ही ठीक करवाई छत से उसने मुझे अपने दर्शन दे कृतार्थ किया।
“सच पूछो तो मुझे मानसून से बहुत प्रेम है। इसके कई पर्सनल कारण हैं। हर साल की तरह अबके भी प्लांटेशन ड्राइव चलाने का सौभाग्य मानसून ने हमें दिया है। यह देश ड्राइवर प्रधान देश नहीं, ड्राइव प्रधान देश है। यहाँ रोज़ कोई न कोई ड्राइव चलती रहती है। इससे पता चलता है कि देश किसी न किसी दिशा की ओर तो ड्राइव हो ही रहा है।
“हे मेरे डियरो! मीडिया बता रहा है कि मानूसन के आने पर पूरे देश में प्लांटेशन ड्राइव मानसून से भी तेज़ी से चल रहा है। देश के इसी प्लांटेशन ड्राइव के कंधे से कंधा मिलाते हुए बींग अ सरकारी कर्मचारी हमारा भी नैतिक कर्त्तव्य हो जाता है कि हम भी अपने ऑफ़िस में प्लांटेशन ड्राइव मनाएँ। आज करे सो कल कर, कल करे सो आज। इसलिए मैं चाहता हूँ कि कल हमारे ऑफ़िस में प्लांटेशन ड्राइव हो। पूरे देश की तरह हम भी चाहते हैं कि यह धरती हरी-भरी हो। कई बार तो मेरा मन करता है कि समाज को प्रेरित करने के लिए मैं अबके प्लांट धरती पर नहीं ऑफ़िस की छत पर लगाऊँ ताकि शहर के लोगों को इससे प्रेरणा मिले और हमें आने वाले समय में छाँव।
“तो अब मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि कल सर्वसम्मति से प्लांट कहाँ प्लांट किया जाए और वह किस प्रजाति का हो?” सुन सबने सिर झुका लिए तो सबकी ओर से स्टाफ़ सेक्रेटरी ने कहा, “सर! प्लांट के लिए जगह पिछले साल की तरह ऑफ़िस के बग़ल वाली ही ठीक रहेगी। वहाँ प्लांट प्लांट होगा तो उसकी केयर इजीली हो जाएगी। जबसे यहाँ ऑफ़िस बना है, हम तबसे ही वहीं प्लांट इंप्लांट करते रहे हैं।”
“गुड! आइडिया!” साहब ने मुस्कुराते कहा तो मीटिंग में बैठों-लेटों में से किसीने एक हाथ से तो किसीने दोनों हाथों से तालियाँ बजाईं।
“तो अब सवाल ये कि प्लांट कौन सा हो?”
“सर! बुरा न माने तो अपने धर्म का हो तो अच्छा रहेगा। चाहे बबूल ही क्यों न हो। इससे ऊपर तक मैसेज जाएगा कि हम प्लांट के माध्यम से भी अपने धर्म का प्रचार प्रसार करने में जुटे हैं,” स्टाफ़ सेक्रेटरी ने दोनों हाथ स्वर्ग की ओर जोड़ निवदेन किया जिसे मुस्कुराते हुए साहब ने तुंरत मान लिया। वैसे भी अपनी धरती पर दूसरे धर्म के प्लांट इंप्लांट करना भी धर्म के विरुद्ध होता है।
“अब अगला सवाल ये कि प्लांट कितने लगाए जाएँ?” साहब ने सर्वसम्मति माँगी तो सह स्टाफ़ सेक्रेटरी ने कहा, “सर! दो ही काफ़ी रहेंगे। एक आपकी तरफ़ से और एक हम सबकी तरफ़ से,” स्टाफ़ सेक्रेटरी की अबसेंस में सेक्रेटरी का काम करने वाले शर्मा ने सुझाव दिया तो उसे भी तत्काल निर्विरोध मान लिया गया।
“तो अपने धर्म का प्लांटों में से प्लांटेशन हेतु प्लांट कौन सा हो?”
“सर! ऑफ़िसीय शास्त्रों में कहा गया है कि ऑफ़िस के आसपास बबूल ही शुभ होते हैं। पीपल की जड़ें ऑफ़िस का नुक़्सान पहुँचा सकती हैं,” स्टाफ़ सेक्रेटरी ने पुनः निवेदन किया जिसे करतल ध्वनि से मान लिया गया। मीटिंग के अंत में चाय के साथ साहब ने कुर्सी पर बैठे बैठे अंतिम घोषणा की, “तो बंधुओ! कल ठीक बारह बजे जब सूरज सिर पर हो, ऑफ़िस के पीछे पिछले साल वाली जगह पर ही हमारा प्लांटेशन ड्राइव होगा। हम सब वहीं कल ठीक बारह बजे धरती को हरा-भरा करने को मिलेंगे। ‘चंगी धरती करते पुकार, बबूल लगे तो हो शृंगार।’ इवेंट को कवर करने के लिए अख़बार वालों को सँभालने का दायित्व मीडिया सेल का रहेगा। हर अख़बार में हमारे ड्राइव की मेरी स्टेटमेंट, फोटो सहित ख़बर छपे, हर बार की तरह यह उसकी नैतिक ज़िम्मेदारी रहेगी। बबूल के दो प्लांट सेक्रेटरी साहब स्टाफ़ फ़ंड में से ख़रीद कर नर्सरी से लाएँगे। और हाँ! कल सभी हरे कपड़े पहन कर आएँगे ताकि मानसून को भी लगे कि हम कितने पर्यावरण प्रेमी हैं।”
जय मानसून! जय ऑफ़िशियल प्लांटेशन ड्राइव!
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