भगौड़ी बीवी और पति विलाप
डॉ. अशोक गौतम
हे मेरे पति पारायण श्रीमतियों के अपनी-अपनी श्रीमतियों से इन दिनों आहत, मर्माहत पति भाइयो! मीडिया, सोशल मीडिया से ही ज्ञात हुआ है कि इन दिनों आप बहुत रुदन, क्रंदन कर रहे हो अपनी जन्म-जन्म की बीवियों को लेकर। पति से बिछुड़ने पर सावन में पत्नी की पीड़ा तो रीतिकालीन कवियों के मुख से बहुत पढ़ी सुनी थी, पर सावन में अपनी पत्नियों से बिछुड़े पतियों की पीड़ा आधुनिक काल में पहली बार सुन रहा हूँ। सच कहूँ तो यह आधुनिक कालीन समाज की सबसे बड़ी उपलब्धि कही जाएगी जब कभी आधुनिक कालीन समाज का मूल्यांकन होगा।
हे मेरे पत्नी पीड़ित बाल-बच्चों वाले भाइयो! आपकी अकथ पीड़ा कितनी है, अब पता चल रहा है। आज आप की पीड़ा व्हाट्सएप से लेकर अख़बारों, टीवी समाचारों का केंद्र बिंदु बनी हुई है। टीवी पर विवाहित एंकर भी आपकी ख़बर डरे-डरे से बता रहे हैं। जो भी सुखी शादी-शुदा आपके समाचार पढ़, सुन रहा है, उसके बाद से एक टक सोए-सोए भी बस, अपनी बीवी को ही देख रहा है। सोए-सोए भी जो कहीं ज़रा सी बिल्ली आहट कर देती है तो वह डर कर जाग जाता है। बीवी के कमरे की ओर दबे पाँव लपकता है। बीवी को अपनी चारपाई पर आराम से सोया देख भगवान का लाख-लाख शुक्र करता फिर सोने की कोशिश करता है। पर उस बेचारे को नींद ही नहीं आती।
हे अपने-अपने परमादरणीय पतित पतियों को कारणवश अकारणवश छोड़ कर आई गई बीवियो! तुम सच मानो या न, तुम्हारी इस अदाकारी से विवाहित मर्द तो विवाहित मर्द, अविवाहित तक सदमे में हैं। वाह! तुमने पूरे पुरुष समाज की नींद हराम करके रख दी है। वह बेचारा शर्म के मारे न सो पा रहा है, न जागता हुआ रह पा रहा है। हाय रे पुरुष तू इन दिनों!
टीवी पर अपने विवाहित भाइयों का अपनी छोड़ कर गई बीवी को लेकर रोना जब कोई कुँआरा भी सुनता है तो उसके समर्थन में वह भी उसके रोने के सुर में अपना रोना मिलाता रोना शुरू कर देता है। अपने विवाहित भाइयों के पक्ष में पूरा पुरुष समाज अहा! कितना संवदेनशाली हो गया है। यार! ऐसे कैसे हो सकता है कि किसीकी बीवी किसीके ज़िन्दा होते उसकी छाती पर चने पीस उसकी ही जेब से किराया निकाल दूसरे पति के पास रवाना हो जाए? नहीं तो मैं अबसे पहले तक बस यही सोचा करता था कि पत्नियों को रुलाने का हक़ केवल पुरुष के पास ही सुरक्षित है। पति ही अपनी बीवी को छोड़ सकता है। पति ही अपनी पति परायण बीवी को छोड़ और कहीं विवाहेत्तर सम्बन्ध जोड़ सकता है।
अच्छा लग रहा है भाई साहबो! मेरी भाभियाँ भी अब जाग रही हैं। पहले माँ को ही बाप का रोल अदा करना पड़ता था। पर अब बाप माँ का रोल अदा कर रहा है। रोत-रोते ही सही।
देखिए भाई साहब! क्रिया की प्रतिक्रिया एक न एक दिन ज़रूर होती है। बुरा मत मानिएगा। एक समय में आपने भी तो भाभियों को बहुत ताड़ित, प्रताड़ित किया था। कभी आप भी तो पाँच-पाँच बच्चों के बाप होने के बाद भी दूसरी बीवी की ओर शान से सिर ऊँचा किए सरक लेते थे। आप भी तो तब आधी रात को बीवी को अकेला छोड़ सत्य की खोज में निकल पड़ते थे। तब बीवी के साथ क्या सत्य की खोज नहीं की जा सकती थी? कुँआरा होने के बाद भी मैं दावा ठोक कर कह सकता हूँ कि बीवी के साथ रहकर ही संसार के सबसे बड़े सत्य की खोज की जा सकती है। अब वो तुम्हें अकेला छोड़ सत्य की खोज के बदले दूसरे पति की खोज में निकल रही है तो इसमें क्या बुरा है? एक दूसरे के साथ बदतमीज़ी करने का हक़ केवल एक के पास ही सुरक्षित नहीं होता। होना भी नहीं चाहिए। सम्बन्धों का संविधान तो यह कहता है कि बदतमीज़ी के मामले में सब समान हैं। पूरी ज़िन्दगी एक ही को बदतमीज़ी सहन करना कहाँ का इंसाफ़ है भाई साहब?
हे मेरे बिन बीवी के विवाहित भाइयो! मैं विवाहित तो नहीं, पर फिर भी आपकी असीम, ससीम दुःख की इन घड़ियों में मेरी सारी वेदनाएँ, संवदेनाएँ आपके साथ हैं। मैं आपके असह्य दुःख को देखकर इससे अधिक और कर भी क्या सकता हूँ। केवल आर आई पी ही कह सकता हूँ। बाल कुँआरा होने के चलते मेरे पास बीवी से मिलने वाले दुःखों का सच्चा अनुभव तो है नहीं। अब भगवान से मेरी बस यही प्रार्थना कि वे आपको और आपके बच्चों को यथा शीघ्र नई बीवी और नई माँ दें। नहीं सम्भव तो तो अपने और बच्चों को अकेले पालने की असीम शक्ति दें।
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