जाके प्रिय न बॉस बीवेही
डॉ. अशोक गौतममित्रो! सरकारी नौकरी स्वर्ग मिलने की तरह होती है, शरीर के रहते हुए ही। सरकारी नौकरी पाने के बाद सवर्ग से सुखों के लिए मरने का कष्ट नहीं उठाना पड़ता। रिटायरमेंट के बाद उठाने पड़ें तो बात दूसरी है। जिस स्वर्ग को प्राप्त करने के लिए बड़े बड़े योगी-मुनि जन्मों तप करते रहते हैं फिर भी उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति नहीं हो पाती, वहीं स्वर्ग सरकारी नौकरी रहते सशरीर प्राप्त किया जा सकता है, अथवा प्राप्त हो जाता है।
कल ज्यों ही जेब में दस बजे के बदले सात बजे ही जोड़-तोड़ से पाया अपाइंटमेंट लेटर ले बताए कार्यालय में पहुँचा तो चौकीदार ने लंबी मुस्कुराहट भरते मुझसे पूछा, “कहिए, क्या काम है?”
“मेरी इस ऑफ़िस में नौकरी लगी है,” ऑफ़िस का गेट बंद देख मन किया कहते-कहते गेट फाँद कर अंदर घुस जाऊँ। तब ऑफ़िस के सड़े-बचे गेट का लोहा काटते चौकीदार ने मुझे ऊपर से नीचे तक नापने के बाद तालियाँ बजाते कहा, “पर जनाब! ऑफ़िस तो बारह बजे खुलेगा।”
“दस बजे क्यों नहीं?”
“यहाँ दस बारह बजे ही बजते हैं।”
ख़ैर, जैसे तैसे बारह मतलब दस बजे। लगा, जैसे मैंने दस बजे का नहीं, दस युगों का इंतज़ार किया हो।
ऑफ़िस का गेट खुलते ही सुपरसोनिक हो ज्यों ही मैं बेरोज़गार नर से सरकारी नारायण हो बॉस के कमरे में ज्वाइनिंग देने पहुँचा तो बॉस ने मुझसे मुस्कुराते पूछा, “कहिए, किस लिए पधारे हैं? आप मेरी क्या सेवा कर सकते हैं?”
“सर! मैं साठ साल तक जनता की सेवा करने आया हूँ। यह रहा मेरा अपाइंटमेंट लेटर सर!”
“बधाई हो! शुरू-शुरू में सब जनता की सेवा करने ही आते हैं बच्चे! पर धीरे-धीरे सब जनता की सेवा करनी भूल अपनी सेवा जनता से करवाने में लग जाते हैं . . . बैठो! अब आराम ही आराम करो। नौकरी के लिए बहुत दौड़े होगे। जनता के काम तो होते ही रहेंगे। न भी हों तो कौन-सा पहाड़ टूट जाएगा।” उन्होंने मुझसे मेरी ज्वाइनिंग लेने के बाद आगे कहा, “हे पार्थ! अब ध्यान से सुनो। अपने हर कान से सुनो। तुम स्वर्ग-सी सरकारी नौकरी को प्राप्त हुए हो। अब स्वर्ग-सा हर सुख भोगना तुम्हारा पहला धर्म है। जो साठ साल तक अब मज़े करने हों तो यह ज्ञान आँखें मूँद अपनी पूँछ बाँध लो।”
“कौन-सा श्रीमन् बॉस?” मैंने उनके पाँव छुए तो वे मेरी श्रद्धा से अभिभूत हुए, “बहुत आगे तक खाओगे! बहुत गुणी हो वत्स! पर अब यही याद रखना कि सरकारी नौकरी में रहते जाके प्रिय न बॉस बीवेही, सो नर तजहि जदपि परम स्नेही . . .”
“अर्थात् सर?”
“अर्थात् जो सफल नौकरी करना चाहते हो तो आठ पहर चौबीस घंटे बॉस और उनकी बीवी के प्रति समर्पित रहना। अपना तो तीस साल की सफल नौकरी का सार यही है कि जिस सहचर्मी को अपना बॉस और उनकी श्रीमती प्रिय न हो उसे करोड़ों शत्रुओं के समान छोड़ देना चाहिए, चाहे वह अपना कितना ही हेल्पफुल क्लीग क्यों न हो।
“नौकरी में होते नरक में रहते जितने भी स्वर्ग-सा सुख भोगने वाले धर्मात्मा हुए हैं, और हैं, पुण्यात्मा हुए हैं और हैं, और जो सही मायने में समाज द्वारा पूजनीय कर्मचारी हुए और हैं, वे सब श्रीबॉस और उनकी बीवीजी की सेवा के कारण ही पूजनीय हुए हैं, पूजनीय हैं। हर छोटे से छोटे ऑफ़िस के कण-कण में कोई विराजमान हो या न, पर बॉस और उनकी बीवेही हर पल किसी न किसी रूप में विराजमान रहती हैं। इससे अधिक अब और क्या कहूँ?
“जिस जनता की सेवा करने को तुम नियुक्त हुए हो उसकी सेवा करने से घर में हरदम कंगाली रहती है। ऐसी जनता की सेवा भला किस काम की? इसलिए तुम्हारे बॉस का तुम्हारे लिए ज्वाइनिंग पर यही उपदेश है कि साठ साल तक जिस भी बॉस के साथ रहो, उनकी और उनकी मैडम की हर समय ऑइलिंग, ग्रीसिंग करते रहो। बॉस और उनकी मैडम के किसी भी पुर्जे में जो तनिक भी ऑइलिंग, ग्रीसिंग घटी तो समझो कोई आकस्मिक दुर्घटना घटी।
“वैसे नौकरी में आकर मैंने आजतक कोई भी जनता की सेवा करता देखा तो नहीं, भले कहते सब यही हों, पर जनता की सेवा करने वालों को ऑफ़िस में कोई नहीं पूछता। जनता की सेवा करने से घर में सदैव कंगाली बदहाली छाई रहती है। इसलिए जब तक सरकारी नौकरी में रहना बॉस और उनकी बीवेही को ही अपना परम हितकारी, पूजनीय और प्राणों से भी अधिक प्यारा समझना।”
यह परम ज्ञान मेरे बॉस ने मुझे मेरी ज्वाइनिंग के समय दिया था। उन्होंने जब सरकारी नौकरी ज्वाइन की थी तो उन्हें उनके बॉस ने यह परम ज्ञान दिया था।
“मतलब सर?”
“मतलब वत्स! ये युगों-युगों से जाँचा परखा ज्ञान है। ज्ञानों की परंपरा में यह ज्ञान ज्ञानों का ज्ञान है, सबसे महान है। सनातन पर उँगली उठाई जा सकती है, पर इस अनुभूत ज्ञान पर नहीं।”
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