यमराज के सुतंत्र में गुरुजी

01-12-2024

यमराज के सुतंत्र में गुरुजी

डॉ. अशोक गौतम (अंक: 266, दिसंबर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

अपने गुरुजी अपने स्कूल के बाहर अपनी क्लास को पढ़ा रहे थे कि अचानक प्रधानजी कहीं से अपने गुर्गों के साथ आ टपके। पता नहीं किस बात पर उन्होंने गुरुजी को जमकर नापा। उनके नापते ही गुरुजी को पता नहीं क्या हुआ कि वे स्कूल से ही नहीं, दुनिया से कूच कर गए। 

इससे पहले कि स्कूल में ड्यूटी टाइम में गुरुजी की मौत का वीडियो बन सोशल मीडिया पर वायरल होता वे उससे पहले ही गुरुजी यमराज के दरबार में जा पहुँचे। मरने के बाद घर जाने का तो कोई प्रयोजन नहीं बचा था। मरे घर जाते तो सब कोसते ही कोसते। 

गुरुजी थे सो उन्हें प्राथमिकता के आधार पर उनका हिसाब करने के लिए यमराज के सामने पेश किया गया। उन्हें यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि जब-जब वे अपनी ट्रांसफ़र करवाने या रुकवाने मंत्रीजी से मिलने गए तो लाख जद्दोजेहद के बाद भी वे उनसे मिलना तो दूर, उनके दर्शन तक नहीं कर पाए। उन्हें हर बाहर मंत्रीजी के ऑफ़िस से बाहर कर दिया गया। ये यमराज मंत्रीजी से छोटा तो नहीं होगा कहीं? ज़रूर छोटा ही होगा। बड़ा होता तो उन्हें यमराज के सामने आने में महीनों न लग जाते? 

गुरुजी को सादर यमराज के सामने बड़े सम्मान से उपस्थित किया गया तो यमराज अपने सिंहासन से गुरुजी का अभिवादन करने हाथ जोड़े उठे। ये देख गुरुजी गद्‌गद्‌! तब उन्हें अपने मरने का क़तई भी दुःख न हुआ। पहली बार किसीने उठकर उनका हाथ जोड़े स्वागत जो किया था। तब वे मरने के बाद भी ख़ुश हुए कि कहीं तो गुरु जात की इज़्ज़त है। जो इतना आदर उन्हें यमराज के दरबार में मिलने का ज़रा सा भी पहले आभास होता तो वे बहुत पहले के मर चुके होते। ईमानदारी से पढ़ाने के बाद भी समाज ने उन्हें आख़िर क्या दिया? जी तक से तो किसीने संबोधित नहीं किया। ईमानदार आदमी ज़िन्दगी का नहीं, इज़्ज़त का भूख होता है हुज़ूर! पेट तो कुत्ते भी इनके-उनके पाँव में चूँ चूँ करते भर लिया करते हैं। 

“आओ गुरुजी आओ! मेरी नगरी में आपका हार्दिक स्वागत है, हार्दिक अभिनंदन है। आप जैसे गुरुजी के दर्शन कर मैं कृतार्थ हुआ। आपके चरण पड़ने से मेरी यमपुरी पवित्र हुई।”

“आपका बहुत बहुत आभार सर! वर्ना अपने यहाँ तो पंचायत के मेंबर भी गुरुजी को माटर-माटर कहते आगे हो लेते हैं। गुरुजी को समाज में आज गुरुजी कोई समझता ही कहाँ है।” 

“तो सबसे पहले दूसरों के हिसाब बंद कर आपका ही हिसाब करते हैं,” कह यमराज अपने सिंहासन पर बैठे। 

“इतनी जल्दी हुज़ूर! अपने यहाँ तो बंदों के एरियर उनके मरने के बाद भी क्लीयर हो जाएँ तो ग़नीमत समझो। बंदे हैं कि जनता का काम छोड़ एरियर दो! एरियर दो! चिल्लाते चिल्लाते साँस बंद हो जाते हैं पर . . . आपके यहाँ यह सब देखकर . . . आप इतनी जल्दी कैसे सबका हिसाब क्लीयर कर देते हो जनाब?” गुरुजी ने पूछा। 

तो यमराज मंद-मंद मुस्कुराने के बाद बोले, “तो आपने अपने अध्यापनकाल में बच्चों को ईमानदारी से पढ़ाने का गुनाह किया है, गुनाह क़ुबूल?” 

“ईमानदारी से काम करना कोई गुनाह होता है क्या हुज़ूर?” 

“गुरुजी, जो मैं पूछता हूँ उसका हाँ या न में जवाब दो बस!”

“जी हाँ! गुनाह क़ुबूल!”

“अपने अध्यापनकाल में बच्चों को परीक्षा में पैसे लेकर नक़ल न करवाने का जो आपने गुनाह किया है, वह गुनाह क़ुबूल?” 

“जी हाँ! बिल्कुल गुनाह क़ुबूल!”

“अपने अध्यापनकाल में बच्चों के मिड डे मील में से राशन न खाने का जो आपने गुनाह किया है, क्या वह गुनाह क़ुबूल?” 

“जी हाँ! बिल्कुल गुनाह क़ुबूल!”

“अपने अध्यापनकाल में बच्चों से पैसे लेकर बोर्ड में जाकर उन्हें पास न करवाने का आपने जो गुनाह किया है, क्या वह गुनाह क़ुबूल?” 

“जी हाँ! मन की गहराइयों से वह गुनाह क़ुबूल!”

“अपने अध्यापनकाल में बच्चों को मैरिट में लाने के लिए उनकी उत्तर पुस्तिकाओं में नंबर न बढ़ाने का जो आपने गुनाह किया है, क्या वह गुनाह क़ुबूल?” 

“जी हाँ! सौ प्रतिशत वह गुनाह क़ुबूल!”

“अपने अध्यापनकाल में बच्चों को अपनी जेब से उनकी फ़ीस देने का जो आपने गुनाह किया है, क्या वह गुनाह क़ुबूल?” 

“जी हाँ! क़ुबूल! क़ुबूल! क़ुबूल!”

“अपने अध्यापनकाल में समाज को ग़लत कामों से रोकने का जो आपने अक्षम्य गुनाह किया है, क्या वह गुनाह क़ुबूल?” 

“जी हाँ! बिल्कुल गुनाह क़ुबूल!”

“अपने अध्यापनकाल में बच्चों को जो समझाने का आपने गुनाह किया है, क्या वह गुनाह क़ुबूल?” 

“जी हाँ! क़ुबूल!”

“अपने अध्यापनकाल में समाज को सही का साथ देने के लिए प्रेरित करने का जो आपने गुनाह किया है, क्या वह गुनाह क़ुबूल?” 

“जी हाँ! गुनाह क़ुबूल!”

“अपने अध्यापनकाल में दूध को दूध और पानी को पानी कहने की हिम्मत जुटाने को कहने का जो आपने गुनाह किया है, क्या वह गुनाह क़ुबूल?” 

“जी हाँ! गुनाह क़ुबूल!”

“अपने अध्यापनकाल में अपने बच्चों को संस्कार देने का जो आपने गुनाह किया है, क्या वह गुनाह क़ुबूल?” 

“जी हाँ! वह भी क़ुबूल!”

“अपने अध्यापनकाल में समय पर स्कूल आने और समय के बाद भी बच्चों की क्लास लेने का जो आपने गुनाह किया है, क्या वह गुनाह क़ुबूल?” 

“जी हाँ! हर गुनाह क़ुबूल! पर हुज़ूर ये सब हो क्या रहा है?” अपने गुरुजी ने जनाब से पूछा तो वे मुस्कुराते बोले, “जो आपने अपने अध्यापनकाल में किया असल में ये सब आज घोर अपराध की श्रेणी में आते हैं।”

“मतलब हुज़ूर??” 

“गुरुजी! आपने अपने अध्यापनकाल में केवल अपराध ही अपराध किए हैं। जनता के धन का दुरुपयोग किया है। आपने एक भी ऐसा समाजोपयोगी काम नहीं किया जिससे समाज आपको गुरुजी कहने लायक़ समझे और आपको मिला वेतन जस्टिफ़ाई हो। आपने अपने अध्यापनकाल में समाज को ग़लत रास्ते पर न ले जाने का कुप्रयास किया। लिहाज़ा, आपको अब तक के मिले वेतन और भत्तों की चक्रवृद्धि ब्याज सहित रिकवरी के आदेश के साथ आपके गुनाहों की रोशनी में मैं राजों का महाराज, यमराज! क्षमा करना, आपको नरक के योग्य मानता हूँ। अतः आपको आपका अंतिम संस्कार होने से पहले ही विद इमीजिएट इफ़ेक्ट नरक में स्थानांतरित किया जाता है,” और गुरुजी की फिर कोई अपील दलील सुने बिना उन्हें सादर नरक में शिफ़्ट कर दिया गया। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता
पुस्तक समीक्षा
कहानी
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में

लेखक की पुस्तकें