फ़्री दिल चेकअप कैंप में डियर लाल
डॉ. अशोक गौतमडियर लाल को नेता जी वोट लेने के चक्कर में इतना फ़्री का दे रहे हैं कि पूछो ही मत! उनके पूरे परिवार को आजकल नेता जी की कृपा से फ़्री का इतना राशन मिल रहा है कि उनके खाने के बाद जो बचता है, वे नेती जी की अपनी गली के कुत्तों से जय करवा, उनको खिला देते हैं।
डियर लाल ग़रीबी की रेखा से ऊपर होने के बाद भी ग़रीबी की रेखा से नीचे चले गए हैं। नेता जी से मिल मिलाकर उन्होंने प्रशासन पर दबाव बनवा अपने को ग़रीबी रेखा में सबसे नीचे करवा दिया है।
ऐसा नहीं कि डियर लाल ग़रीबी रेखा से नीचे ही थे। वे ग़रीबी रेखा से ऊपर उठते जीव थे। पर नेता जी ने जबसे अपने कुर्सी सुख के लिए उनके हाथ में ग़रीबी की रेखा खींची है तबसे उनके ग़रीबी रेखा में सबसे नीचे होने की वजह से उनके सिर से लेकर पाँव तक का सारा भार नेता जी अपनी वोटों की नाव में हँसते हुए ढो रहे हैं। फ़्री के चक्कर में डूब अब डियर लाल ने ऊपर उठना ही छोड़ दिया है।
फ़्री की शिक्षा के चलते उनके बच्चे स्कूल में दो-दो साल एक-एक कक्षा में लगा रहे हैं ताकि नेता जी की फ़्री की सेवा का लाभ उनके बच्चे लंबे समय तक उठा सकें। उनके बच्चों को नेता जी ने फ़्री में स्कूल की किताबें देने की घोषणा कर रखी है। फ़्री में उन्हें वर्दी मिल जाती है। फ़्री में बच्चों को जूते मिल जाते हैं। स्कूल में मिड-डे फ़्री का मील मिल जाता है। डियर लाल ने बच्चों को साफ़ हिदायत दे रखी है कि वे स्कूल में ही मिड-डे मील ठूँस-ठूँस कर लिया करें। रात को उनके घर में उन्हें भोजन बिल्कुल नहीं मिलेगा।
उनके घर में बिजली की चाबीसों घंटे फ़्री की सप्लाई है तो खाना बनाने को फ़्री का गैस सिलेंडर। पानी मुफ़्त का है। सो वे घंटा-घंटा भर फ़्री के पानी से नहाते हैं, पर दिमाग़ का मैल है कि जाता ही नहीं। बीच-बीच में वे फ़्री के पानी से अपने मोहल्ले के ढोरों को नहला अपना अगला जन्म भी सुधार लेते हैं। मकान नेता जी ने उन्हें फ़्री में बनवा कर दिया है। अब उन्हें और चाहिए भी क्या जिसके लिए वे अपने हाथ पाँव हिलाएं? पहले वे बीच बीच में थोड़े बहुत हाथ पाँव हिला लिया करते थे। पर अब वे हिलने हिलाने सब बंद। वैसे जब आदमी को सब कुछ फ़्री का मिलने ल जाए तो आदमी होकर भी आदमी गधा हो जाता है। वह आदमी ही क्या जो सब कुछ फ़्री का मिलने पर भी हाथ पाँव हिलाएँ?
फ़्री के इसी चक्कर के शिकार डियर लाल के हाथ पिछले हफ़्ते फ़्री के दिल चैकअप कैंप का पोस्टर लगा तो उनका सही सलामत दिल फ़्री में अपना चैकअप कराने को मचल उठा।
वैसे उनके दिल के बीमार रहने के क़िस्से आज भी मोहल्ले में पुराने होने होने के बाद भी नए अंदाज़ में सुने जा सकते हैं। आज भी कभी-कभी उनका दिल होता है कि इस उम्र में भी कोई न कोई गालियाँ सुनने वाली हरकतें कर ही लेता है। जूते खाने वाली हरकतें उनका दिल जवानी में किया करता था। जूते खिलाने वाली हरकतें करने को उनका दिल उनसे कहता तो आज भी है, पर वे उम्र का तक़ाज़ा बता उसे जैसे तैसे मना लेते हैं।
उनको कहीं जो मुफ़्त के चंदन की ख़ुश्बू का भ्रम देता सड़े बाँस का टुकड़ा भी मिल जाए वे उसे नाक से पकड़ घिसने के लती तो हैं ही। ऐसे में फ़्री के दिल का चैकअप कैंप वाला पोस्टर ज्यों ही उनके हाथ लगा तो उसे पढ़ते-पढ़ते उन्हें लगने लगा ज्यों उनके दिल को एक नहीं, हज़ारों रोग हों। जूते खाने वाले नहीं, जाने वाले।
बस! फिर क्या था। वे दिल से फ़्री के दिल चैकअप कैंप के पोस्टर को लगाए मेरे पास हाय तौबा करते आए, “यार! लगता है, इस मुए दिल को कोई रोग हो गया है। लगता है, इसे अब कहीं चैक करवाना ही पड़ेगा,” कहते फ़्री के दिल चैकअप कैंप के उस पोस्टर को बार-बार मेरी ओर करते वे ज़ोर-ज़ोर से अपने दिल के दर्द को दबाने के बदले सहलाने की नौटंकी करने लगे। उनकी रग-रग में ख़ून हो या न, पर नौटंकी उनकी रग-रग में ठूँस-ठूँस कर भरी है। वैसे मैं उनके इस रोग की वजह बहुत कुछ पहले ही समझ गया था। जिसे एकबार फ़्री के खाने पीने की लत लग जाए उसकी यह लत मरने के बाद भी नहीं जाती। तब उनके जैसा हर एक धीरे-धीरे इसे अपनी सहायता न मान अपना अधिकार समझने लगता है।
इसी अधिकार के चलते सरकारी राशन की दुकान पर उनके हिस्से का फ़्री का आटा दाल, चावल, तेल, नमक का कोटा पीछे से न आया हो तो भी वे वहाँ साधिकार सपरिवार धरना दे देते हैं। तब सरकारी राशन की दुकान वाले को उनको इनकम टैक्स देने वालों के हिस्से का राशन दे उनसे अपना पिंड़ छुड़वाना पड़ता है। ऐसा एक बार नहीं, अनेकों बार होते मैंने अपनी कमज़ोर आँखों से बहुतों बार साफ़-साफ़ देखा है।
“मतलब?” तब मुझे उनके फ़्री के रोग पर हँसी आ रही थी।
“यार! कई दिनों से फ़ील कर रहा हूँ जैसे दिल बीच-बीच में स्कूटर के इंजन की तरह मीसिंग दे रहा है।”
“तो?”
“पता नहीं ख़ुदा ने इस दिल की आज क्यों सुन ली। शायद इसे अभी और जूते खाने होंगे तभी तो दिल की क़िस्मत से हमारे मोहल्ले में फ़्री का दिल चैकअप कैंप लग रहा है,” वे असली मुद्दे पर आए।
“तो?”
“अगर तुम अपने बेकार के समय में से थोड़ा समय मेरे दिल को निकाल सको तो . . .”
“तो तुम अकेले दिल को मुफ़्त में चैक करवाने क्यों नहीं जा आते?”
“अबके पता नहीं क्यों डर सा लग रहा है यार!”
और अगले दिन मैं उनके ठीक दिल का मन रखने के लिए उनके साथ मोहल्ले में लगने वाले मुफ़्त के दिल चैकअप कैंप में जा पहुँचा। उनको अपनी ओर आते देख कैंप का दिल का डॉक्टर उनके दिल के ऊपर भेड़िए की तरह झपटा तो मैं किनारे हो गया। लगा, जैसे वह उनका दिल चेक करने नहीं, उनका दिल निकालने को उतावला हो।
“आइए साहब!”
“मुझे अपना दिल फ़्री में चेक करवाना है डॉक्टर साहब!”
“हम यहाँ फ़्री में दिल चेक करने ही तो आए हैं सर!” डॉक्टर ने अपने दाँत मन ही मन उनके दिल पर चुभाते कहा तो मैं और डरा। लगा, अपने फ़्री के मारे डियर लाल आज ग़लत जगह फ़्री के लिए हाथ डाले हैं।
डॉक्टर उन्हें पर्दे से बनाए एक कमरे में ले गया। वहाँ उन्हें बिस्तर पर लिटाया गया तो उन्हें इस बात की प्रसन्नता हुई कि फ़्री के बिस्तर भी बुरे नहीं होते। अबके जब नेता जी उनके पास वोट माँगने आएँगे तो वे उनसे ग़रीबों को फ़्री का बिस्तर देने की भी माँग पुरज़ोर उठाएँगे।
डॉक्टर उनको बेड पर लिटा उनके दिल का चेकअप करने लगा। कुछ देर तक वह उनके पूरे शरीर पर इधर उधर हाथ मारने के बाद उनके दिल के पास रुक उनके दिल को गंभीर हो चेक करता बोला, “सर! आई एम फुली श्योर आपके दिल की पाँच धमनियाँ बंद हो रही हैं। पर डरिए मत। आपका दिल बहुत लक्की है। आप फ़्री के कैंप में सही वक़्त पर आ गए हैं।”
“पर मुझे तो कुछ फ़ील नहीं होता,” कुछ देर पहले हँसने वाले फ़्री के डियर लाल अब काँपने लगे।
“कुछ बेशरम दिल बहुत गंदे टाइप के दिल होते हैं सर! वे अपने मालिक को कुछ बताते नहीं। उसे अँधेरे में रखते हैं। और जब वे बताते हैं तो . . .”
“तो अब डॉक्टर साहब?”
“अब कुछ नहीं। हमारे प्राइवेट अस्पताल में आ जाइएगा कल। हमारे पास एक से एक ऐसी मशीनें हैं कि हम . . .” फिर अचानक डॉक्टर का हाथ उनकी किडनियों पर गया तो डॉक्टर ने उनको और चौंकाते कहा, “मैं श्योर तो नहीं, पर पूरा श्योर हूँ कि आपकी डेढ़ किडनी भी ख़राब चल रही है।”
“पर मैं तो अनुलेाम विलोम रोज़ करता हूँ तो . . .”
“ऐसा ही होता है। कई बार पता ही नहीं चलता, लगता है देश की तरह भीतर सब ठीक है। पर कोई बात नहीं। हम हैं न! हमारे प्राइवेट अस्पताल में आ जाइएगा कल। इसे कोरी चेतावनी नहीं, वैधानिक गंभीर चेतावनी समझिएगा! जो दिल और किडनियों की ज़िंदगी चाहते हैं तो जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी कीजिएगा। आदमी को अपने दिमाग़ की परवाह हो या न, पर उसे अपने दिल, किडनियों की परवाह ज़रूर करनी चाहिए। आगे फ़ैसला आपका,” कह डॉक्टर ने उन्हें बिस्तर से सादर सहारा देकर उठाया तो उन्हें फ़ील हुआ ज्यों उनका दिल, किडनी, लीवर सब सच्ची को बुरी तरह ख़राब हों।
बिस्तर से उठ उन्होंने तब मन ही मन अपने को गालियाँ देते कोसा! काश! न उनके हाथ फ़्री का दिल चैकअप कैंप का पोस्टर हाथ लगता, न आज वे अपने दिल तो दिल किडनियों, लीवर की ओर से परेशान होते।
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