बेगम जी के उपवास में ख़्वारियाँ
डॉ. अशोक गौतम
मेरी बेगम जी बहुत धर्मपरायण हैं। अगर वह उपवास लेकर धर्म की रक्षा न करें तो कई बार लगता है जैसे धरती पर से धर्म ही ख़त्म न हो जाए कहीं। धर्म की ध्वजा जैसे उनके उपवासों के चलते ही धरती पर लहरा रही है।
महीने बाद मेरी बेगम जी का उपवास है। आधे दिन का नहीं, सुबह सात बजे से लेकर शाम को तीन बजे तक। उसके बाद जो डिनर बनने में तीन के सवा तीन हो गए तो समझो धरा पर भूचाल आ गया। ये जो धरा पर भूचाल आते हैं इसके पीछे कारण वही हैं। कामवाली की तो कामवाली की, तब मेरी भी ख़ैर नहीं। ख़ैर, मेरी तो किसी भी समय ख़ैर नहीं होती। मेरा सिर तो हमेशा बेगमजी के मूसल के नीचे ही सादर हाथ जोड़े जैसे कैसे पड़ा रहता है। सच कहूँ तो वैसे मुझे भी अब अपना सिर बेगम जी के मूसल के नीचे रखने की आदत सी पड़ गई है।
तो हे मेरी तरह के उपवास प्रेमी बेगमों के श्री पतियो! महीने बाद के बेगम जी के उपवास को लेकर इन दिनों घर में तैयारियाँ ज़ोरों-शोरों पर हैं। इतनी तैयारियाँ तो हमारे घर में होली के पर्व को भी नहीं होतीं। इतनी तैयारियाँ तो हमारे घर में दीपावली के आने पर भी नहीं होतीं।
सब कुछ फ़ाइनल करने के बाद भी मैं फ़ाइनल नहीं कर पा रहा हूँ कि उनके इस उपवास को अबके काजू- बादाम किस दुकान से लाऊँ? उनके उपवास के लिए पिछले उपवास पर काजू-बादाम जहाँ से लाया था उस दुकान के काजू-बादाम उन्होंने फ़ेल कर दिए हैं। दूध की बर्फी किस हलवाई की दुकान से लाऊँ? उपवास स्टार्ट होने से पहले वाली जलेबियाँ कहाँ से लाऊँ? उस दिन उनके लिए दूध कितना लिया जाए? वह किस डायरी का हो? आदि आदि। उपवास पर उनके लिए दूध को लेकर न चाहते हुए भी घर में हर बार कलह हो जाती है। केले, अंगूर, सेब, पपीता तो ख़ैर ताज़े-ताज़े ही लाने हैं। और तय है, उसके बाद भी गालियाँ ही मेरे हाथ लगनी हैं।
अबके बेगम जी ने अभी ही साफ़ वार्निंग दे दी है कि उनके पिछले उपवास को मैं जहाँ से जलेबियाँ लाया था, वे ठीक नहीं थीं। मैं उन जलेबियों को लेकर क़तई संवेदनशील नहीं था। क्योंकि मुझे नहीं खानी थीं न! उनमें रस कम क्या बिल्कुल भी नहीं था। इसलिए अबके उनके उपवास से पूर्व तैयारी के लिए मैं जलेबियाँ लाऊँ तो किसी ठीक हलवाई से लाऊँ वर्ना, वह उपवास से पहले जलेबी दूध लिए बिना ही उपवास रख लेंगी। फिर होती हो तो होती रहें कमज़ोर। आते रहें उन्हें चक्कर। इस सबके लिए तब मैं ही सीधे तौर पर दोषी रहूँगा। उसके बाद जो घर में कलह क्लेश बढ़ेगा, उसके लिए भी ज़िम्मेदार में ही रहूँगा। तब उस सबका दोष भी मुझे ही वहन करना होगा हर रोज़।
दोस्तो! मैं चाहे बेगमजी के उपवास की कितनी ही बेहतर से बेहतर तैयारियाँ क्यों न कर लूँ। फिर भी बेशर्म कहीं न कहीं, कोई न कोई कमी रह ही जाती है। या कि उसमें अपने पारखी नज़रों से वे कोई न कोई कमी निकाल कर ही दम लेती हैं।
अभी से अपने उपवास को लेकर जितनी परेशान वे हैं उससे कहीं अधिक परेशान मैं हूँ। उनके उपवास को लेकर अभी से मेरे हाथ पाँव फूले जा रहे हैं। मुझे चक्कर से आ रहे हैं। मेरे दिमाग़ का दर्द बढ़ता जा रहा है। दिल की नसें फटी जा रही हैं। डर रहा हूँ कि मैं अबके भी जो उनके उपवास पर उनके खाने का मैनेजमेंट उनके मन माफिक नहीं कर पाया तो . . . सच कहूँ! हे मेरी तरह के तमाम पति भाइयो! मैं हर बार उनके उपवास को लेकर उनके खाने में कोई कोर कसर छोड़ना नहीं चाहता। फिर पता नहीं कहाँ मेरी ओर से कमी रह जाती है?
उपवास को लेकर वे अभी से चिड़चिड़ी होने लगी हैं, सिरफिरी होने लगी हैं। उन्हें अभी से उपवास की चिंता खाए जाने लगी है। उनके उपवास को लेकर मैं अभी से बहुत चिंतित होने लगा हूँ। हे ईश्वर! अबके उनके उपवास प्रबंधन को लेकर मेरी लाज रखना प्लीज़! प्लीज़! प्लीज़!
अच्छी भली शान्ति थी घर में। कल यों ही पता नहीं क्यों मुझ जन्म जन्मांतर के गधे ने उनके उपवास के लिए हर बार की तरह दो किलो के बदले डेढ़ किलो दूध लाने की बात कह डाली तो बस, मेरे कहने भर की देर थी कि वे आप्पे से बाहर होती मुझ पर मौसम बिलकुल साफ़ होने के बाद भी भादों के मेघ सी गरजती लरजती बरसीं, “देखो! दूध अब के डेढ़ किलो नहीं सवा दो किलो आएगा। और वह भी पहले वाली डायरी से क़तई नहीं। जैसी उसमें दुर्गंध, उससे भी ज़्यादा उसके दूध में दुर्गंध।”
“तो तुम ही कहो कहाँ से दूध लाऊँ अबके मैं? वही तो सारे शहर में मात्र एक ऐसा दूध डायरी वाला है जो दूध में पानी दूध के हिसाब से मिलाता है,” हालाँकि मैंने ग़ुस्से में नहीं, उनसे दोनों हाथ जोड़़ निवेदन किया था।
फिर भी बेगम जी ने सिर पर आसमान उठा लिया, “तुम्हें तो मेरी क़तई चिंता नहीं! जब देखो बस, मेरे उपवास को नीचा दिखाने में लगे रहते हो। आख़िर मैं ये उपवास किसलिए रखती हूँ? तुम्हारे लिए ही न! घर में सुख शान्ति के लिए ही न! अगर मैं तुम्हारे लिए उपवास न रखूँ तो अगले ही दिन नरक में न चले जाओ, तब देखना। जब तुम अपने लिए भी उपवास नहीं रख सकते तो मेरे लिए क्या ख़ाक रखोगे?”
“नहीं! मेरे कहने का वह मतलब क़तई नहीं था जो तुम समझ रही हो देवि,” मैंने दोनों हाथ जोड़ हर बार की तरह इस बार भी निरपराधी वाली याचक मुद्रा बनाई। हालाँकि मुझे पता था कि अबकी बार भी मुझे क्षमा नहीं किया जाएगा। और मज़े की बात! इस बार भी मुझे हर बार की तरह क्षमा नहीं किया गया, “मैं जानती हूँ तुम्हारे कहने का मतलब क्या था! तीस साल हो गए मुझे तुम्हारी बातों के मतलब समझते समझते,” बड़ी मुश्किल से बीसियों माफ़ियाँ माँगने के बाद कहीं जाकर हमारे बीच का वाक् युद्ध रुका। मुझे तो तब लगा था कि आज फिर बेबात महाभारत होकर रहेगा। और ये पांडव पुत्र निश्चित हारेगा ही हर बार की तरह।
हे उपवास! तुम मेरी बेगम जी पर आते ही क्यों हो? किसी और की बेगम नहीं मिलती तुम्हें क्या उनके शांत घर में हंगामा करवाने को?
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