वदाइयाँ यार! वदाइयाँ!
डॉ. अशोक गौतमअपने बड़े बाबू पिछले कई हफ़्तों से चिड़चिड़े से चले रहे थे। ऑफ़िस की तरफ से तो हमने उनकी मस्ती की कोई कसर न छोड़ी थी। हो सकता है, घर की ही कोई प्रॉब्लम हो। उन जैसों हर एक के साथ घर में प्राब्लम होती रहती है।
पर आज अभी मैं अपने आगे काम करवाने आने वालों की रिश्वत के हिसाब से लाइन लगवा, उनसे शांति बनाए रखने की अपील कर, रिश्वत देते अपनी-अपनी फ़ाइल करवाने की इल्तिजा कर ही रहा था कि अचानक बड़े बाबू का फोन आ टपका। लगा, पक्का वे आज भी नहीं आएँगे। मैंने ज्यों ही उनका फोन उठाया और मेरे कानों में उनकी शहद घोलती आवाज ज्यों ही पड़ी तो मन बाग़-बाग़ हो गया। हरामी बड़े बाबू सीधे मुँह किसीसे बात करते ही कहाँ हैं? ज़ुबान ऐसी ज्यों मुँह में नीम भरकर बात करते हों। उस वक़्त बड़े बाबू इतने ख़ुश लगे ज्यों उन्हें बिन मरे ही जन्नत हासिल हो गई हो।
‘वदाइयाँ यार! वदाइयाँ! दिल खुश कर दित्या तुम सबने आज मेरा। मेरा मन कर रहा है आज सारे अखबार मैं ही खरीद लूँ। आज मेरा सीना फक्र से . . .’ कहते बड़े बाबू पूरे ज़ोर से चीख़े ज्यों उन्हें किसी पागल कुत्ते न काट लिया हो और वे मुझे नहीं, किसी बहरे को बधाई दे रहे हों।
‘आपको भी वदाई बड़े बाबू !’ मैंने न चाहते हुए भी हँसते हुए ऑफ़िशियल औपचारिकता पूरी करते कहा।
‘पट्ठे, ये नहीं पूछोगे कि वदाई किस बात की दे रहा हूँ?’
‘बड़े बाबू! वदाई तो वदाई होती है, वह चाहे अपने पैदा होने की हो चाहे दुश्मन के मरने की,’ मैंनेबधाई का शास्त्रीय पक्ष उनके सामने रखा तो वे उसे एक तरफ़ फेंकते बोले, ‘पगले! अबके हम पहले नंबर पर आ गए।’
‘ऑफ़िस में किसीका काम न करने वालों के बीच?’ मैं ऑफ़िस में होने के बाद भी बिन पंखों ही पार्कों में उड़ने लगा।
‘नहीं पगले। रिश्वत लेकर काम करने वालों के बीच। मत पूछो, अबके हमारा मुकाबला किस-किस के साथ था? डना डन! वेलडन! तुम्हारी मेहनत रंग लाई। हमारी रिश्वतखोरी के आगे सबकी रिश्वतखोरी घुटने ही नहीं, अपना सब कुछ टेक गई। मेरा तुम सबको रिश्वत लेने को उकसाना रंग लाया। इसलिए कहता था कि ऑफ़िस आए मुंडे सिर का भी मुंडन किए मिना मत जाने दिया करो,’ मत पूछो, कहते-कहते वे कितने मस्त!
‘मान गए बड़े बाबू! तुम तो हमें फ़ाइल-फ़ाइल पर गालियाँ देते रहते थे कि हम ढंग से रिश्वत नहीं लेते। अब तो हम पर विश्वास हुआ न ! हम मुँह से कहते नहीं पर अपना काम पूरी निष्ठा से करते हैं। बड़े बाबू! आप जब तक इस देह में रहें, हमारी नाक काट जाए तो कट जाए, पर रिश्वत लेने के मामले में हम सदा आपका झुका सिर भी गर्व से ऊँचा रखेंगे,’ मैंने उनके मार्गदर्शन में रिश्वत लेने के प्रति अपनी वचनबद्धता दर्शाई तो उनकी ख़ुशी आठवें आसमान पर।
‘पूरी एशिया में अपना देश हम जैसों की रिश्वतखोरी के प्रति आस्था, निष्ठा दिखा पहले नंबर पर आया है। भगवान करे, हमारा यह रिश्वत में स्थान सदा पहले ही नंबर का बना रहे,’ कहते-कहते बड़े बाबू का प्रसन्नता के मारे रोना निकल आया। इसे कहते हैं सच्ची देशभक्ति! सच कहूँ, उनसे यह सुन मैं भी कुछ देर के लिए भावुक हो गया था, ‘आपका रिश्वत लेने का कुशल निर्देशन जो हमें यों ही मिलता रहा तो देख लेना बड़े बाबू! हमसे यह स्थान हमारे साथ लाख बेइमानियाँ करने के बाद भी कोई नहीं छीन सकता। बड़े बाबू! हममें कुछ ख़ास हो या न, पर कुछ तो ख़ास है। अभी कहाँ हो बड़े बाबू?’ जोश-जोश में उनसे पता नहीं क्यों पूछ गया। पर बाद में अपनी ग़लती का अहसास हुआ। सो, मन ही मन उनसे माफ़ी भी माँग ली।
‘बस, आ ही रहा हूँ। मिठाई की दुकान पर हूँ। सबको कह दो, आज शानदार पार्टी मेरी तरफ से होगी।’
‘आपकी तरफ़ से?? पर काम तो यह टीम का है।’
‘हाँ! पट्ठे! मेरी तरफ से। मत पूछो आज मैं अपनी रिश्वतखोर टीम की ओर से कितना खुश हूँ? और देशों के रिश्वत लेने के ढंग को देख अबके तो मेरे हाथ पाँव ही फूल गए थे कि राम जाने! अबके हम रिश्वत लेने के मामले में किस नंबर पर आएँ? अगर पहले के स्थान से नीचे गिर गए तो रिश्वत लेने वालों को हम अपना कौन सा मुँह दिखाएँगे।’
‘मुँह तो बड़े बाबू वे दिखाएँ जिनके मुँह बचे हों। तो बड़े बाबू, अब क्या आदेश निर्देश है हमारे लिए?
‘ऑफ़िस में अभी सिर मुँडवाने कितने लोग आए हैं?’
‘यही कोई तीस चालीस!’
‘तो सबको कह दो कि आज बाबुओं के बाबू, बड़े बाबू बहुत खुश हैं। अपनी खुशी को पूरे स्टॉफ के साथ सेलिब्रेट करना चाहते हैं।’
‘तो क्या उन्हें भी इस पार्टी में शामिल करने का निमंत्रण दे दें?’
‘नहीं यार! उनसे पाँच-पाँच सौ रुपया एकस्ट्रा ले लो आज। बतौर खुशी कांट्रीब्यूशन।’
‘तो आपके कहने का मतलब कि . . .??’ हद से ज़्यादा ख़ुशी भी कई बार आदमी को बहुत नीचे गिरा देती है।
‘हाँ हाँ! मेरे कहने का मतलब है कि . . . यार, जो ये हमें रिश्वत न देते तो क्या हम अपने महाद्वीप में इतना बड़ा मुकाम हासिल कर सकते थे? हमें यह हरगिज नहीं भूलना चाहिए कि हम आज जहाँ भी हैं, इनकी बदौलत ही हैं।’
‘सो बात तो है बड़े बाबू!’
‘तो इस सेलिब्रेशन में इनका भी होना बनता है कि नहीं . . .’
‘पर बड़े बाबू?’
‘कोई बात नहीं! जिनके पास अभी न हों, उनसे कह दो रिश्वत की उधारी कर रहे हैं। अगली दफा जब ऑफ़िस में काम करवाने आओ तो दे जाना ईमानदारी से। अमानत में खयानत हो तो होती रहे, पर रिश्वत में खयानत नहीं होनी चाहिए। और कोई उधारी मरने के बाद चुकाने पड़ें या न, पर रिश्वत की उधारी जो कोई मारता है, तो मरने के बाद भी वे चुकाने पड़ते हैं।’
‘मतलब?? मान गए रिश्वत के प्रति आपकी निष्ठा बड़े बाबू! रिश्वत के प्रति कोई समर्पित हो तो बस, आपसा। वर्ना, बिन रिश्वत लिए ही ठीक।’
‘तो ऐसे नहीं पहले दर्जे में आ जाता है कोई। पहले नंबर पर आने के लिए दिन-रात रिश्वत लेनी पड़ती है बंधु! तब जाकर कहीं . . . और हाँ! सारे स्टाफ को मेरी ओर से वदाई देने के साथ साथ यह भी कह दो कि अभी तो ईमानदारी के खिलाफ ये अँगड़ाई है। आगे बड़ी लड़ाई है . . .’
‘बड़े बाबू, मैं कुछ समझा नहीं??’ सच कहूँ तो सच्ची को उस वक़्त मैं कुछ समझ ही नहीं पाया था।
‘बच्चे, स्टाफ में इस वक्त सारे काम छोड़ हमारी ओर से ढिंढोरा पिटवा दो अभी से सब रिश्वतखोरी में और भी ईमानदारी से संलग्न हो जाएँ। अभी से सब संकल्प ले लें कि चाहे जो भी हो, अगली दफा हम रिश्वतखोरी को लेकर वर्ल्ड कप हासिल करेंगे। इन छोटे छोटे कपों से अब अपना मन भर गया यार!’ उन्होंने एक बार फिर फेंकी।
‘ठीक है बड़े बाबू!’ मैं अपनी कुर्सी से उठा और पीउन के गले में ऑफ़िस का फटा ढोल डाल उसे ऑफ़िस के हर कमरे में ढिंढोरा पिटवाने भेज दिया।