आज्ञाकारी पति की वाल से
डॉ. अशोक गौतमकुत्तों की तरह ही पतियों की भी बहुत सी श्रेणियाँ होती हैं जिनमें से बहुतों पर शोध हो चुका है और बहुतों पर शोधार्थियों के बदले आदर्श पति ही शोध करने में जुटे हैं ताकि सही ढंग का शोध हो सके और सही-सही पता चल सके कि कितनी श्रेणियों के पति और हो सकते हैं जो अंततः किसी न किसी घरेलू वज़ह से मूँछ कटवा रोते-रोते पूँछ को प्यारे होते हैं।
हर टाइप के पतियों को आज्ञाकारी पत्नियाँ बहुत कम नसीब होती हैं, पर हर टाइप की बीवियों को आज्ञाकारी पति क़दम-क़दम पर मिल जाते हैं। या वे उन्हें आज्ञाकारी बनाकर ही दम लेती हैं। वे आवारा हों, कितने ही बिगड़ैल, बदचलन हों, तो भी उनके पास उन्हें आज्ञाकारी बनाने का एक से एक शर्तिया फ़ार्मूला होता है। उस फ़ार्मूले का प्रयोग करते हुए वे उसे आदमी से पेट् बनाकर ही दम लेती हैं। और जब वह एकबार पत्नी का पेट् हो जाता है तो हर जन्म को उसका पपेट् हो जाता है।
डिक्टेटर से डिक्टेटर, गुंडे से गुंडा, लोफ़र से लोफ़र, बदतमीज़ से बदतमीज़ टाइप का कुँआरा विवाह होते ही कब जैसे आज्ञाकारी हो जाए, उसे तो क्या, उसके ख़ुदा को भी पता नहीं चलता। और जब तक उसे पता चलता है कि डिक्टेटर, गुंडा, लुच्चा, लोफ़र टाइप का आदमी विवाह होते ही आज्ञाकारी हो गया है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है सँभलने में। तब तक उसकी मूँछ पूँछ में तबदील हो चुकी होती है। ऑफ़िस में तो वह सबसे अपना हुक्म मनवाता है और ज्यों-ज्यों पाँच बजने से दस मिनट पहले ही डरता-डरता घर की ओर क़दम बढ़ाता है त्यों-त्यों उसकी मूँछ की जगह पूँछ निकलती जाती है। और जब वह घर पहुँचता है, तब तक उसकी मूँछ पूँछ में पूरी तरह तबदील हो चुकी होती है। न भी हो तो भी वह जल्दी-जल्दी अपनी मूँछ छिपा अपने पीछे पूँछ लगा लेता है।
जो लंबे समय से आज्ञाकारी पति होने के नाते पतियों की विभिन्न क़िस्मों पर पूरी ईमानदारी से शोध कर रहे हैं,कल उनकी विवाह की तीसवीं मैरेज पुण्यतिथि थी।
वे सिर से पाँव तक आज्ञाकारी क़िस्म के पति हैं। थे, जब शेर थे, इन दिनों वे चूहे सा स्वस्थ जीवन यापन कर रहे हैं।
आज्ञाकारी क़िस्म के पति सामान्य वर्ग के पति होते हैं। उनके लिए उनकी गृहस्थ लाइफ़ में न कोई आरक्षण की व्यवस्था होती है, न संरक्षण की। इसलिए उन्हें कोई नहीं पूछता, केवल उनके सिवाय। वे पूरी तरह से बीवी के रहमों-करम पर जीते हैं। अपने हाथों से पकाने के बाद जो वह बचा-खुचा खाने को देती है, चुपचाप उसीको बीवी से आशीर्वाद में मिला प्रसाद मान आँखें मूँद खाते हैं और जो वह पीने को देती है, उसे बीवी का चरणामृत मान मौन हो परम शांति फ़ील करते पीते हैं। वे जब जब पत्नी की ओर से आहत होते हैं तो बस, अपने हाल पर ख़ुद ही रोते हैं। उनके साथ उनके सिवाय रोने वाला कोई दूसरा नहीं होता। सरकार भी उनकी ओर कोई ख़ास ध्यान नहीं देती। बस, उन्हें यदा-कदा आश्वासन ही देती है। इसलिए ऐसे पतियों को अपना ध्यान ख़ुद ही रखना पड़ता है, जितना वे रख पाएँ।
तो कल उनकी मैरेज की तीसवीं सफल पुण्यतिथि थी। अपनी मैरेज की एनीवर्सियाँ वे मनाते हैं जिनकी बीवियाँ आज्ञाकारी होती हैं। अपनी फ़ेसबुक वाल पर कल अपनी तीसवीं मैरेज पुण्यतिथि होने पर अपने मन की भड़ास बनाम प्रसन्नता ज़ाहिर करते हुए उन्होंने लिखा—आज मेरी बीवी के साथ मेरे विवाह को हुए और मुझे स्वर्ग सिधारे सफल तीस साल हो गए। कम्बख़्त पता ही न चला अपनी प्रिय बीवी के साथ इतने साल बरतन धोते-धोते, झाड़ू लगाते-लगाते, चपातियाँ बनाते-बनाते कब गुज़र गए? ऐसी पत्नी को पाकर मुझे बड़ी ख़ुशी हो रही है। अब तो मुझे कई बार तो ये सब करते हुए स्वर्गिक आनंद की अनुभूति, प्रतीति होती है।
हे प्रिय! अगर मुझे तुम न मिलतीं तो मुझे चपाती बनानी न आती। अगर मुझे तुम न मिलतीं तो मुझे किसी भी जन्म में चाय बनानी नहीं आती। अगर मुझे तुम न मिलतीं तो मुझे किसी भी जन्म में दाल में तड़का देना न आता। तुम्हारे सान्निध्य की बदौलत आज जब मैं दाल में तड़का लगाता हूँ तो आस-पास के घरों के पति हवा चाटने लग जाते हैं, यह कहते हुए कि काश! अगले जन्म में मैं उनको उनकी बीवी के रूप में मिलूँ।
हे प्रिय! अगर मुझे तुम न मिलतीं तो मुझे किसी भी जन्म में खिचड़ी बनानी नहीं आती। हे प्रिय! अगर मुझे तुम न मिलतीं तो मुझे किसी भी जन्म में अपने तो अपने, औरतों के कपड़े धोने ही नहीं आते। सच कहूँ तो मुझे आत्मनिर्भर बनाने में तुम्हारा इतना योगदान है कि जितना मोदीजी का आत्मनिर्भर देश बनाने में नहीं। तुम्हारी वज़ह से ही मैं बाज़ार में इधर-उधर धक्के खाने से बचा रहा और पाँच बजे से पहले ही नाक की सीध में सीधा घर आता रहा।
हे प्रिय! अगर मुझे तुम न मिलतीं तो मेरे भीतर सहयोग की भावना इतनी कूट-कूट कर न भरी होती जितनी आज भरी हुई है। तुम एक पतीला मेरी ओर धोने को मारक हँसी हँसती हुई सरकाती हो तो मेरे हाथ पतीले का ढक्कन धोने को ख़ुद ब ख़ुद आगे बढ़ जाते हैं।
हे प्रिय! अगर मुझे तुम न मिलतीं तो मैं गाँधी के उस दर्शन को अपने जीवन में न उतार पाता जिसमें उन्होंने कहा था कि जो कोई एक चाँटा तुम्हारे गाल पर मारे तो बिना किसी विरोध के दूसरा गाल उसके आगे प्रस्तुत कर दो। सच मानना, मेरे पास जो तीसरा गाल भी होता तो मैं उसे भी चाँटा खाने को तुम्हारे आगे सहर्ष सौंप देता।
हे प्रिय! अगर मुझे तुम न मिलतीं तो मैं इतना फ़िट न रह पाता जितना तुमने घर के काम करवाते-करवाते हुए मुझे फ़िट रखा है। तुम्हीं ने मुझे बताया कि बरतन धोना भी एक योग है। तुम्हीं ने मुझे बताया कि कपड़े धोना कला ही नहीं, कला के साथ-साथ योग भी है। तुम्हीं ने मुझे बताया कि घर में झाड़ू लगाना कला ही नहीं, कला के साथ-साथ योग भी है। तुम्हीं ने मुझे बताया कि चाय बनाना कला ही नहीं, कला के साथ-साथ योग भी है। चाय बनाते हुए चाय बनाने वाले को जब अपने को चाय न उबले, इसके लिए चाय बनाने वाले पतीले पर केंद्रित करना पड़ता है तो इससे आत्मा की एकाग्रता बढ़ती, निखरती है। प्रिय! तुम्हीं ने मुझे बताया कि दूध गर्म करना एक विज्ञान ही नहीं, कला के साथ-साथ योग भी है। दूध गर्म करते हुए न उबले, दूध पर अपना ध्यान केंद्रित करने से कुंद होते दिमाग़ के सेल एक्टिवेट होते हैं। सच कहूँ तो योग की त्रिवेणी हो।
हे प्रिय! अब कहाँ तक बखानूँ कि तुमने मुझ अज्ञानी पर कितने उपकार किए हैं? तुम्हीं ने मुझे बताया कि चपातियाँ बनाना पेट के लिए ज़रूरी नहीं, यह भी एक योग है। बस, जैसे ही तुमने मुझे एक-एक कर घर के कामों में छिपे योग के रहस्यों को बताया, मैं तुम्हारे साथ-साथ घर के कामों का भी फ़ैन हो गया। सोचा, बाबा के कैंपों में जाकर पैसे देकर योग का लाभ क्या लेना। घर के कामों में ही योग किया जाए तो क्या बुरा है। एक पंथ सौ लाभ!
हे प्रिय! जो तुम मुझे न मिलतीं तो आज को मत पूछो मैं कितना बेडौल हो जाता तुम्हारी तरह। बाबा ने जो घर-घर योग के बहाने भोग पहुँचाने का बीड़ा उठाया है, वह घर-घर पहुँचा हो या न, पर जो तुम जैसी आदर्श बीवी सबको मिल जाए तो हर घर योगशाला हो जाए और हर पति प्रयोगशाला।
हे प्रिय! जो तुम जैसी बीवी मुझे न मिलतीं तो मुझे बाबाओं के कैंपों जा वह योग न मिलता, जो घर बैठे-बैठे ही मुफ़्त में मिल रहा है। तुम्हारी क़सम! सच कह रहा हूँ प्रिय,जो तुमसे मैं न बँधता तो मुझे घर के कामों में भी योग की महत्ता का क़तई पता न चलता और मैं घर के कामों को बकवास ही मानता रहता।
हे प्रिय! तुम न होतीं तो मैं अनुशासनहीन ही रहता। मुझे अनुशासन में रहना तुमने ही सिखाया। तुमने ही मुझे बताया कि बीवी के सामने चूँ भी नहीं करते। इससे घर की शांति भंग होती है। मत पूछो तुम्हारी ही वज़ह से आज मैं कितना शांतिप्रिय हो गया हूँ? कबूतर से भी चार क़दम आगे का। किस काम के बाद क्या करना है, अब बिन दिमाग़ लगाए करते जाना तुम्हारी ही देन है।
हे प्रिय! तुम न होतीं तो मैं असंयमी ही रहता। हे प्रिय! तुम न होतीं तो मैं बदतमीज़ ही रहता। हे प्रिय! तुम न होतीं तो मैं आवारा ही रहता। तुमने मुझे संयम का पाठ पढ़ाया। तुम्हारी वज़ह से ही मैं संयम का साक्षात् बुत हो पाया हूँ। इसके लिए तुम्हारी जितनी प्रशंसा की जाए कम है। तुमने मुझे क्षमा करना सिखाया। मत पूछो, तुमने मुझे कितना कर्तव्य परायण बनाया?
हे प्रिय! तुमसे मिलने से पहले मैं बहुत वाचाल था। तुमने ही मुझे मौन रहकर काम करना सिखाया।
हे प्रिय! तुमने ही बिन कुछ कहे मुझे केवल संकेत-संकेत में ही सब समझना सिखाया। हे प्रिय! मेरे भीतर जो आज ये तप, त्याग, सहनशीलता, सहिष्णुता, सेवाभाव जग देख रहा है न, इसकी सूत्रधार केवल और केवल तुम हो। तुम्हें मेरा शत-शत नमन! तुम्हारी वज़ह से ही तो देखो मैं तुमसे भी अधिक घर के कामों में पारंगत हो गया हूँ। मुझे आत्मनिर्भर बनाने के लिए मैं तुम्हारा मन की गहराइयों से आभारी हूँ।
बंधुओ! शेष अगली मैरेज पुण्यतिथि पर!
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