हादसा तो होने दे यार!
डॉ. अशोक गौतमसच कहूँ तो मैं उतना हादसों के बाद के संकटों से नहीं डरता जितना हादसों के होने की सम्भावनाओं से डरता हूँ। कारण, इन्हीं हादसों की वज़ह से मैं बीवी के होते हुए अपनी प्रेमिका को खो चुका हूँ। मित्रो! मेरे जैसे विवाहित को बीवी के खोने की इतनी पीड़ा नहीं होती जितनी विवाहित हो प्रेमिका को खोने की होती है। मुझ पर यक़ीन नहीं तो मेरे पड़ोसी को पूछ लीजिए जो चार-चार लीगल बीवियाँ होने के बाद भी आज तक प्रेमिका के हादसे की पीड़ा से उबर नहीं पाए।
हादसों के इसी दिल में डर के बैठे होने के चलते आज जहाँ भी मुझे हादसा होने की ज़रा सी भी संभावना दिखती है, वहीं मैं अपने सरकारी हादसा प्रबंधन वाले साहब के आगे बीन बजा देता हूँ, यह जानते हुए भी कि भैंस के आगे बीन बजाने पर हो सकता है कोई एक्शन हो जाए तो हो जाए, पर साहब के आगे बीन बजाने को काई लाभ नहीं होता। भले ही साहब को आता कुछ न हो पर वह करता अपने मन की ही है। अगर जो वह औरों की बात सुन कर कुछ करे तो साहब होने का लाभ ही क्या?
कल फिर ज्यों ही ऑफ़िस जा रहा था तो मुझे सामने वाले मोड़ पर हादसा होने की कुछ अधिक ही संभावना लगी तो मैं सिहर उठा। और उसी वक़्त तब मैंने तय कर लिया कि आज कुछ भी हो, साहब के कान पर जूँ रेंगवा कर ही साँस लूँगा। इससे पहले कि इस मोड़ पर कोई हादसा हो जाए, सरकारी नौकरी में रहते जनता के हित में कम से कम एक हादसा तो रोक रुकवा ही लिया जाए।
और मैंने ऑफ़िस जाते ही साहब के आगे बीन बजा डाली। हालाँकि उस वक़्त वे घर में बीवी द्वारा उनके आगे बजाई बीन के सुरों का विश्लेषण करने में जुटे थे, "सर! गुड मार्निंग!" मैंने कहा तो वे ऐसे हुए जैसे किसीने अचानक उन्हें जगा दिया हो।
"क्यों? क्या है?"
"लगता है सर आज भी बीवी के डर से रात भर आप सोए नहीं हो?"
"नहीं, ऐसी बात नहीं, पर तुम…?" वे जागने का अभिनय करने लगे। मित्रो, जो सोया हो उसे तो जगाया जा सकता है, पर जो सोये होने के बाद भी जागे होने का अभिनय करे उसे जगाना बहुत कठिन काम होता है। और अपने ऑफ़िस में तो सब सोए हुए हैं, पर सफल अभिनय जागे होने का करते हैं।
"सर! मुझे लगता है कि मेरे घर के सामने वाले मोड़ पर किसी भी वक़्त कोई भी बड़ा या छोटा हादसा होने की पूरी संभावना है। इससे पहले कि वहाँ कोई हादसा हो जाए, क्यों न हम अपना सरकारी दायित्व निभा…"
"मतलब??" कह वे अपना सिर खुजलाने लगे। मेरी वज़ह से या बीवी की वज़ह से, वे ही जाने। कुछ देर तक अपना सिर खुजलाने के बाद वे बोले, "बैठो! रामदीन! दो चाय लाना यार! कड़क वाली," उसके बाद वे मेरी ओर मुख़ातिब होते बोले, "एक बात पूछूँ तुमसे यार!"
"एक नहीं, हज़ार पूछिए सर! बीस सालों से एक साथ मौज करते आपने आज मुझे पहली बार इस ऑफ़िस में कुछ पूछने लायक़ समझा, इसके लिए मन न होने के बाद भी मन की गहराइयों से आपका आभार सर," मैंने अपनी सोच की पीठ अपने आप ही थपथपाई तो वे बोले, "यार! ये हादसे वाली जगहें तुम्हें ही क्यों दिखती हैं? देखो दोस्त! तुम्हारे भले के लिए कह रहा हूँ, सरकारी नौकरी में रहते हादसों को लेकर इतने इमोशनल नहीं होने का। इमोशनल होना है तो बच्चों प्रति इमोशनल होइए। इमोशनल होना है तो बीवी के प्रति इमोशनल होइए। पर नहीं, जहाँ जनाब को इमोशनल होना चाहिए, वहाँ तो जनाब ऐसे ख़ुश्क की सारा दिन घी के कनस्तर में सिर से पाँव तक डुबोकर रखने के बाद भी जो उनके सामने रखो तो भी ख़ुश्क के ख़ुश्क। आख़िर तुम चाहते क्या हो यार? तुम इस दफ़्तर में नौकरी करने आए हो या... चैन से नौकरी नहीं कर सकते क्या? जानते नहीं, अपने देश में हादसे होने के बाद ही हरकत में आने की परंपरा है। फिर तुम हादसे से पहले ही हरकत में आने की सोच देश का पैसा और सरकार का क़ीमती समय आख़िर क्यों बरबाद करना चाहते हो? देश एक तो पहले ही घोर आर्थिक संकट और क़ीमती समय की कमी के संकट के दौर से गुज़र रहा है, और एक ऊपर से तुम…"
"पर सर!"
"सर को मारो गोली! पहले वहाँ हादसा तो होने दीजिए जनाब! जब वहाँ हादसा हो जाएगा, तभी तो लग पाएगा कि वहाँ भी हादसा हो सकता है। उसके बाद वहाँ के बारे में भी सोच लेंगे। पर तुम हर बार अपनी ओर से क्यों यह मान लेते हो कि यहाँ-वहाँ हादसा हो सकता है? जब भगवान तक हादसे के बाद ही हरकत में आते रहे हैं तो तुम हादसे की संभावना भर से ही यदा-कदा क्यों अपनी तो अपनी, मेरी भी नींद खराब करते रहते हो? हादसे होने की संभावनाओं पर सोचने का यह अधिकार मेरे होते हुए आखिर तुम्हें दिया किसने? इस बात को लेकर मैं तुम्हारी एक्सप्लेनेशन भी कर सकता हूँ। पर फिर भी मैं जो तुम्हें कुछ नहीं कहता तो कम से कम तुम ख़ुद ही अपनी सोचने की सीमाओं के बारे में कुछ समझ लिया करो यार! मुझसे कम वेतन में मुझसे अधिक मत सोचा करो। कल को तुम्हारे भेजे को कुछ हो गया तो फिर मुझे दोष मत देना! इतने सच्ची के पढ़े-लिखे हो या कि वे सारी डिग्रियाँ..... भविष्य में होने वाले हादसों की संभावनाओं को लेकर इतना उतावलापन अच्छा नहीं दोस्त! वर्तमान में हो चुके हादसों पर अपने को कंसंट्रेट करो तो हम सबके लिए बेहतर रहे। वैसे भी जो बीमार को बीमार होने के बाद ही दवाई दी जाए तो बेहतर रहेगा। हरेक की जेब में भविष्य में बीमार होने की संभावनाओं भर को देखते ही उनकी जेब में दवाई डाल दी तो तो चल चुका देश प्यारे! इस देश में हादसे से पहले ही हादसा रोकने की योजना पर काम करने की मेरे जैसा तो क्या, गधा भी नहीं सोचेगा। और तुम तो सरकार से साठ हजार पगार लेने वाले जनता के प्रति समर्पित कर्मचारी हो, फिर ये बेकार का क्यों सोचते रहते हो? समझते क्यों नहीं यार! होने वाले नहीं, हो चुके हादसे हमारे लिए कितने महत्वपूर्ण होते हैं?"
"कितने सर?"
"देखो, अगर हादसा होने से पहले ही हादसा रोक लिया जाए तो नेताजी हादसे में घायलों के प्रति सांत्वना और मरे हुओं के प्रति शोक व्यक्त करने से वंचित नहीं हो जाएँगे क्या? देश के नेता से सब कुछ छीनो, पर कम से कम सांत्वना देने का, शोक व्यक्त करने का अधिकार तो उनसे मत छीनो मेरे दोस्त! अगर जो हमने हादसे होने से पहले ही रोक दिए तो नेताजी बुरा नहीं मान जाएँगे क्या? और जो नेताजी बुरा मान गए तो इसका क्या मतलब होता है, तुमने कभी सोचा है? हादसे से पहले ही जो हादसों को रोक लिया जाए तो हादसे के कारणों का पता होने के बाद भी बनाई जाने वाली जाँच कमेटी वाले क्या करेंगे? उनका टाइम पास कैसे होगा? हादसों को उनके होने से पहले ही जो रोक दिया गया तो जिनका कारोबार चलता ही हादसों पर है, उनके पेट पर पड़ गई न लात? तुम क्या जानों दोस्त! ये हादसे कितनों के पेट भरते हैं। कभी सोचा है क्या तुमने? अपने पेट को जो हरामपने की दया से डटकर मिल रहा है, तो कम से कम औरों के पेट पर लात तो न मारो। पेट तो सबके बराबर होते हैं, क्या मेरे, क्या तुम्हारे दोस्त!
“अरे बंधु! ये हादसे ही हैं जो अपने होने के वक़्त समाज में संवेदनाओं का संचार करते हैं। अगर ये हादसे न हों तो हर कोई किसीके दुख में कोई शरीक़ होना ही भूल जाए। इसलिए समाज में संवेदनाओं, भाईचारे को बनाए रखने के लिए हादसों का होते रहना बेहद ज़रूरी है।"
"मतलब सर??"
"बी कूल! बी काम! हादसों की संभावनाओं भर को लेकर इतने परेशान नहीं होने का। घर की परेशानियाँ पहले ही क्या कम हैं जो अब... हादसा वहाँ जब होगा, तब देख लेंगे। और हाँ! जहाँ हफ़्ता पहले हादसा हुआ था, वहाँ भविष्य में हादसा रोकने को कितना अधिक से अधिक बजट लिया जा सकता है, उसकी रिपोर्ट अभी तक तुमने बनाई कि नहीं? ऊपर वाले बार-बार रिवाइज़्ड बजट प्रपोज़ल माँग रहे हैं, प्लीज़ यार! इधर-उधर का बेकार में सोच कुछ कंस्ट्रक्टिव करो तो हमारे ऑफ़िस की इमेज सरकार की नज़रों में कुछ सुधरे," कह वे पता नहीं किस हुए हादसे की आगामी योजना पर दिमाग़ी काम करने में जुट गए।
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