बंगाली बाबा परीक्षक वशीकरण वाले
डॉ. अशोक गौतमबाहर से वे सज्जन दिख रहे थे, पर भीतर से बेहद . . . हर आदमी कम से कम दो तहों में दिखता है। पता नहीं क्या सोचकर क्यों उन्होंने मेरे दरवाज़े पर दस्तक दी होगी? वैसे ऐसे को किसीका तो दरवाज़ा थपथपाना ही था। सो, हो सकता है उनसे मेरा थपथपा गया होगा।
तब पहले तो मैंने सोचा पानी, सॉरी, दूध वाला होगा। इन दिनों दूध पानी दोनों वैसे ही एक से हो गए हैं जैसे झूठ–सच। जिस तरह झूठ–सच का पता नहीं चलता, उसी तरह दूध–पानी का भी पता नहीं चल रहा। हम जिसे भ्रमवश दूध समझते हैं, वह भ्रम टूटते ही पानी-पानी हुआ होता है।
“कहिए, किससे मिलना है आपको?” मैंने अपनी आँखों से उनकी आँखें निकालते उनसे बिन राम सलाम के पूछा तो वे राम सलाम के बाद बोले, “आपके मुहल्ले में कोई बंगाली बाबा रहते हैं क्या? ये वाले . . . ,” कहते ही उन्होंने अपनी जेब से अख़बार का पूरा पेज निकाला। मैंने अख़बार का वह पेज आड़ा-तिरछा कर देखा। उस पर बॉक्स में अपने मुहल्ले के कोने वाले भंगेड़ी, चरसेड़ी बाबा के पते वाला विज्ञापन छपा था—जो हर तरह की परीक्षाओं से लेकर अग्नि परीक्षाओं में हरबार असफलता को चूमते रहे हों उनके लिए परीक्षा में हर टाइप के परीक्षक को केवल पाँच मिनट में वश में करने वाले ओनली एंड ओनली विश्वविख्यात बंगाली बाबा! सारे बाबा बार-बार! बंगाली बाबा एक बार! बाबा को एक बार आज़माएँ, हज़ारों को बताएँ। एक तावीज़ से अपनी क़िस्मत बदलें। तावीज़ पहन बिना किसी बाधा के किसी भी परीक्षा में ताबड़तोड़ चीटिंग करें। नो डर ऑफ़ एंटी चिटिंग बिल, नक़ल कर मज़े से खिल। मैंने हँसते हुए ग़ौर से वह विज्ञापन देखने के बाद उनसे पूछा, “अच्छा, ये वाले?”
“जी हाँ!” मेरे पूछने से पल भर में ही उनके पतझड़ी चेहरे पर वसंत सी रौनक़ आई, “जी! मैं उनसे मिलने को मत पूछो कितना उग्र व्यग्र हूँ।”
“बच्चे की परीक्षाएँ चल रहीं होंगी आपके?”
“जी मेरे नहीं, मेरी साली के बेटे की हैं। मैं अपने बेटे की तरफ़ से उतना नहीं, जितना अपनी साली के बेटे की ओर से चिंतित हूँ। पिछले चार साल से जहाँ था वहीं है। और आप तो जानते ही हैं कि भले ही साधारण से साधारण पति अपनी बीवी से आसमान से तारे तोड़ लाने के हर जन्म में कितने ही झूठे वादे क्यों न करे, पर साली के संदर्भ में उसे साली से वादा करने के तुरंत बाद तारे तोड़कर लाने ही पड़ते हैं। इसी सिलसिले में मैं उनका आर्शीवाद लेने आया हूँ। यहाँ से कितनी की दूर होंगे वे?”
“बस, यही पाँच सात सौ क़दम दूर,” मैंने उन्हें ऊपर से नीचे तक गुहारते कहा तो वे सानुनय बोले, “आपकी बहुत मेहरबानी होगी जो मुझे उन तक पहुँचा दें। मुझे लगेगा, आपने मुझे उन तक नहीं, जन्नत तक पहुँचा दिया,” कह भद्र ने बड़ी शालीनता से हाथ जोड़े तो मैं चाहते हुए भी न न कर सका और उनको उनकी मंज़िल तक खिसियाते हुए ले गया।
ज्यों ही वे मेरे साथ विज्ञापनी बंगाली बाबा के द्वारे पहुँचे तो उस वक़्त बंगाली बाबा सांड की तरह पसरे आराम फ़रमा रहे थे। हराम की खाने वाले बहुधा ऐसे ही आराम फ़रमाते हैं। उनका एक चेला एसी लगा होने के बाद भी उनको हाथ के पंखे से हवा कर रहा था तो दूसरा उनकी टाँगें दबा रहा था।
“साष्टांग प्रणाम बंगाली बाबा!” कह वे उम्र में अपने से छोटे बंगाली बाबा के चरणों में कटे पेड़ से गिर पड़े। जो किसीके पास किसीको अपने चरणों की धूल चटवाने का ज़रा भी हुनर हो तो वह किसीको भी अपने चरणों की धूल मज़े से चटवा सकता है, मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक सबको।
“कहो भक्त! क्या समस्या है?”
“प्रभु! साली का बेटा पास नहीं हो रहा। चार साल से एक ही किताब पकड़े लेटा है।”
“कोई बात नहीं। अबके शर्तिया पास हो जाएगा। अब तुम सही जगह आ गए हो अपनी प्रिय साली के जीजा। मैंने अपने स्पैशल परीक्षक वशीकरण तावीज़ों के माध्यम से भूत प्रेत से भी ख़तरनाक परीक्षक, निरीक्षक वश में किए हैं। छोटे छोटे एग्जाम्स तो छोड़ो, न जाने कितने आईएएस, आईएफएस, आईपीएस, बड़े बड़े डॉक्टर, जज, इंजीनियर और भी पता नहीं कौन कौन मेरे तावीज़ की कृपा से आज सरकारी कुर्सियों पर लेटे बैठे मौज कर रहे हैं, वे सब मेरे ही इस तावीज़ का रिज़ल्ट हैं। हम नहीं बोलते, हमारा काम बोलता है बेटा! ख़तरनाक से ख़तरनाक परीक्षक से लेकर कापी चेक करने वाले को मेरा तावीज़ देखते ही देखते यों अपने वश में कर लेता है ज्यों इंटेलिजेंट से इंटेंलिजेंट को साधारण से साधारण बीवी। परीक्षा केंद्र का जो परीक्षक खाने-पिलाने से भी न पटे वह भी मेरे तावीज़ के आगे घुटने तो क्या, पूरा लेट जाता है। अब तुम सही बाबा के पास आ गए हो। कब से है साली के बेटे की परीक्षा?”
“कल नौ बजे से बाबा!” वे उनके आगे नतमस्तक। मरते क्या न करते। ऊँट की तरह जब कोई पढ़ा लिखा अंधविश्वास के नीचे आता है तो उसकी ऐसी ही बहुत कुछ दुर्दशा होती है।
“मेरा मेरी ख़ास पेशकश परीक्षक वशीकरण तावीज़ धारण करते ही देखना, परीक्षक तो क्या परीक्षा का परिणाम बनाने वाला भी साली के बेटे के आगे नाचता पूछेगा कि तुम्हारे कितने नंबर लगाऊँ? तुम्हें ख़ाली आंसर शीट में लिखने को अब और क्या लाऊँ? तुम कहो तो तुम्हारी कोरी आंसरशाट में मैं ही लिखता चला जाऊँ?” कहते बंगाली बाबा ने बग़ल में रखे बंद डिब्बे का ढक्कन खोला और उसमें से एक तावीज़ निकाला, उसे अपनी मुट्ठी में लेने के बाद आँखें बंद कर दो फूँक मारने के बाद बोले, “बेटा! सीधे जाकर अपनी साली के गले में बाँध देना ये तावीज़। बेटे के परीक्षा जाने से आधा घंटा पहले। फिर देखना इसका धमाल! चमत्कारी तावीज़ का रेट दो हज़ार मात्र!
“और हाँ! बाबा की एक चेतावनी-रास्ते में किसी के बेटे को भी मत देखना। किसी की साली को भी मत देखना। देखा तो साली के बेटे के बदले उसके बेटे के वश में उसके परीक्षा केंद्र का परीक्षक हो जाएगा। फिर मत कहना, बाबा ने छल किया। बाबा तो कल्याण के साथ साथ सावधान भी करते हैं बेटा! सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।”
“बाबा! फ़ीस गूगल पे से हो जाएगी न बाबा?” उन्होंने बंगाली बाबा से पूछा तो पसरे पसरे बंगाली बाबा बोले, “बेटा! सामने पीपल के पेड़ में मेरा यूपीआई कोड टँगा है। उसीको स्कैन कर पे कर दो पूरे हज़ार। परीक्षाओं का सीज़न है, इसलिए नो डिस्काउंट! अपने भी तो सीज़न के ये ही दिन होते हैं भक्त कमाने के। अगली परीक्षा में परीक्षक वश में करवाने वाला तावीज़ लेने को दस प्रतिशत डिस्काउंट। चार लाओगे तो चार के साथ एक चमत्कारी तावीज़ बिल्कुल फ़्री, ” ज्यों ही उन्होंने सामने पीपल के पेड़ में टँगे बंगाली बाबा के यूपीआई कोड को अपने मोबाइल से स्कैन कर बाबा की फ़ीस अदा की तो बंगाली बाबा के फ़ोन में मैसेज आते ही बंगाली बाबा ने उनको मुस्कुराते हुए परीक्षक वशीकरण तावीज़ सौंपा। बाबा से परीक्षा केंद्र के हर टाइप के परीक्षक वशीकरण तावीज़ ले उन्होंने उसे पूरी श्रद्धा से अपने माथे से लगाया और फिर अपनी जेब में छुपा कर रख दिया। उसके बाद बड़े इतमिनान से मुफ़्त में बाबा से मिली काली पट्टी अपनी आँखों पर उनसे ही बँधवाई और अपने घर का रास्ता मुझ अपरिचित से पूछ यों फूँक फूँक कर क़दम रखने लगे ज्यों वे कच्ची सड़क पर नहीं, धधकते अंगारों पर पाँव रख रहे हों।
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