गधी मैया दूध दे
डॉ. अशोक गौतमवैसे सच कहूँ तो जबसे मैंने विवाह किया या मेरा विवाह हुआ है, इस कंबख्त इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए अब तक मुझे भी पता नहीं कि मैं क्या-क्या नहीं खा चुका हूँ? बस, अब एक ज़हर ही खाने को बचा है। जो जिसने बताया प्रसाद समझ पूरी श्रद्धा से खाया, पर एक ये ज़ालिम इम्यूनिटी है कि बनने की बजाय मेरी तरह दिन पर दिन समय से पहले बूढ़ी होती जा रही है। अब तो जो ग़लती से अगले जनम में आदमी बना तो इम्यूनिटी सुधर जाए तो सुधर जाए।
इम्यूनिटी के इस मारे को व्हाट्सएप स्कूल ज्वाइन करने का कोई और फ़ायदा हुआ हो या न, पर व्हाट्सएप स्कूल का डे–नाइट स्कॉलर होने का यह फ़ायदा ज़रूर हुआ है कि मैंने चंद महीनों में ही स्कूल ऑफ व्हाट्सएप में जितना ज्ञान अर्जित कर लिया है, इतना तो गुरुकुलों के ज़माने में अपने गुरुओं से उनके चेले भी अर्जित नहीं किया करते होंगे। काश! मेरे बचपन में व्हाट्सएप स्कूल खुल जाता तो मास्टर जी के रोज हर क्लास में दस-दस बेंत खाने तो बचता ही, हर विषय की चालीस मिनट की क्लास में रोज़-रोज़ तीस मिनट तक मुर्गा बनने से भी बच जाया करता।
पर चलो, व्हाट्सएप को जब आना था, तब आया। पर जब आया तो भला आया।
कल व्हाट्सएप पर अपने व्हाट्सएप स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी ने व्हाट्सएप पर एक वीडियो शेयर किया जिसमें भला-चंगा आदमी कोरोना की आने वाली संतानों से बचने के लिए गधी का दूध पी रहा था। और दावा कर रहा था कि गधी के शुद्ध दूध का एक चम्मच भर पीने से मरा हुआ तक भी अपनी इम्यूनिटी बढ़ा सकता है। वह सीना ठोक-ठोक कर कह रहा था कि एक बार जिसने चम्मच भर गधी का दूध पी लिया, उसके बाद उसे इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए किसीका भी दूध पीने की ज़रूरत नहीं। उसके बाद उसका कोरोना तो कोरोना, हर बीमारी सहित उसकी आने वाली संतानें तक उसका बाल भी बाँका नहीं कर सकतीं।
बस, फिर क्या था! कोरोना सहित हर बीमारी से लड़ने के लिए इम्यूनिटी का मारा क्या चाहे? दो आँखें। वीडियो देखते-देखते ही मैं भी अपनी इम्यूनिटी बढ़ाने को वैसे ही तड़प उठा जैसे पानी के लिए मछली तड़पती है। पर सवाल ये कि अब गधी का दूध लाया जाए तो कहाँ से लाया जाए? अपने यहाँ तो गाय का शुद्ध तो छोड़िए, दूध-सा भी नहीं आता। ग्वाला है कि इन दिनों दूध में पानी के बदले पानी में दूध मिला निर्भय पिलाए जा रहा है। जो शिकायत भरे लहज़े में कभी कुछ हँसते हुए कहता हूँ तो वह भी हँसते हुए जवाब मेरे मुँह पर दे मारता है—किसी और से दूध लगवा लो बाबू! क्या करें, आजकल ओस कुछ ज़्यादा ही पड़ रही है। छप्पर गिरा होने की वजह से गाय बाहर बँधी रहती है सारी रात, सो रात भर ओस उसमें रचती रहती है और दूध पतला हो जाता है। मर जाए जो दूध में चम्मच भर भी पानी मिलाए।
जीवन में पहली बार शुद्ध दूध के लिए अब बस, तलाश थी तो गधी की! पर अब सवाल ये था कि गधी आख़िर कहाँ मिलेगी? गधे तो बहुधा इधर-उधर दिख ही जाते हैं। काश! गधे की लीद से भी बंदों की इम्यूनिटी में इज़ाफ़ा होने का कोई प्रमाणिक वीडियो व्हाट्सएप ग्रुप पर कोई अनुभवी गण शेयर कर देता तो . . .
अचानक मुझे याद आया कि हमारे मुहल्ले के कूड़े के ढेर पर कभी-कभार एक लँगड़ी गधी आती है। काश! आज भी वह मुझे मिल जाए तो मेरी इम्यूनिटी सदा-सदा को चमक जाए।
इससे पहले कि हमारे व्हाट्सएप ग्रुप के दूसरे गधी की तलाश में वहाँ जा पहुँचें और गधी के पास भी राशन की दुकान की तरह उसके दूध के लिए लंबी लाइन लग जाए, मैंने आव देखा न ताव, अपने मुहल्ले के कूड़े के ढेर की ओर लपका बीवी को बिन बताए ताकि सबसे पहले वहाँ जा गधी से शुद्ध दूध के लिए अनुरोध कर अपने को इम्यूनिटीमय बना सकूँ।
मैं ज्यों ही कूडे के ढेर के पास पहुँचा, इसे मेरी तक़दीर ही कहिए कि गधी वहाँ कूड़े के ढेर पर लेटी थी टाँगें पसारे। मत पूछो, उस वक़्त उसे कूड़े के ढेर पर लेटे देख मेरा मन कितना आह्लादित हुआ। लगा, ज्यों मेरी इस जन्म की सबसे बड़ी मुराद पूरी हो गई। वहाँ अभी तक दूसरा कोई न था। मतलब, अपने स्कूल के दूसरे अभी तक सोए पड़े हैं? सोयों के वैसे भी गधे ही पैदा होते हैं। सो सोचा, अब गधी से जमकर दूध का प्रसाद देने को विनम्र निवेदन करूँगा। आज तक मैंने वैसे भी किसीसे कुछ नहीं माँगा है। उसे विश्वास न होगा तो उसे अपना माँगने का अकाउंट बता दूँगा।
सच्ची के अति विनम्र भाव से मैं गधी के पाँव छूने को आगे बढ़ा तो गधी ने कूड़े में मुँह मारते पूछा, “और बंधु कैसे हो?” कूड़े के ढेर पर क्यों चले आ रहे हो?”
“कूड़े के ढेर पर नहीं। तुम्हारा प्रसाद पा इम्यूनिटीमय होना चाहता हूँ मैया,” मैंने दोनों हाथ जोड़े गधी से कहा तो वह बोली, “मेरा प्रसाद?”
“हाँ गधी मैया! तुम चाहो तो मुझे हर बीमारी से लड़ने की शक्ति दे सकती हो। तुम चाहो तो मैं . . .“
“बंधु! मैं ठहरी लँगड़ी गधी! मेरी तो अपनी ही इम्यूनिटी तार-तार हो चुकी है। और एक तुम हो कि . . . क्यों मुझसे मज़ाक कर रहे हो? ठिठोली करने को भी तुम्हें मैं ही मिली?” गधी ने मुझे घूरते दूसरी ओर मुँह फेरते कहा तो मैंने उसी तरह दोनों हाथ जोड़े उससे भक्त हो कहा, “हे गधी मैया! जिस तरह कस्तूरी मृग को पता नहीं होता कि कस्तूरी उसीके पास है और वह . . . उसी तरह तुम्हें भी पता नहीं कि कोरोना जैसी बीमारी से बचने का रामबाण दूध तुम्हारे पास है,” कह मैं उसके थन देखने लगा कि गधी के थन होंगे तो कहाँ होंगे।
गधी ने जब मुझे अपने सामने हाथ जोड़े विवश देखा तो बॉक्स ऑफ़िस पर हिट फ़िल्म की नायिका की तरह उसने मुझसे इठलाते पूछा, “यह भेद किसने कहा तुमसे?”
“किसने क्या? व्हाट्सएप पर वीडियो वायरल हो गया है। तुम्हारे आगे इम्यूनिटी के मारों की भीड़ लगने वाली है। लोकतंत्र में एक न एक दिन घूरे के भी दिन फिरते हैं। अब तुम्हारे दिन भी बहुरने वाले हैं गधी मैया! धन्यवाद करो व्हाट्सएप का जो तुम्हें फ़र्श से अर्श पर ले जाने वाला है। हर घर में अब तुम्हारी पूजा होगी। अब तुम कूड़े के ढेर पर नहीं, महलों की रानी बनने वाली हो। इससे पहले कि तुम्हारे आगे इम्यूनिटी जलों की लाइन लग जाए, प्लीज़! अपना थोड़ा दूधामृत देकर मुझे कृतार्थ करो मैया! मैं तुम्हारा यह अहसान जन्म जन्म न भूलूँगा,” मैं चारण हो बढ़-चढ़ कर उसका यशोगान करने लगा तो वह ग़ज़ब का भाव दिखाती कूड़े के ढेर पर अहंकार से गरदन अकड़ा दूसरी ओर को लेट गई अपने थन मुझसे छुपाती जैसे मैं इम्यूनिटी का मारा नहीं, अप्पर वर्ल्ड का कोई भाई होऊँ।
1 टिप्पणियाँ
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बधाई हो । हमारी शुभकामनाएँ आपके साथ है । ईश्वर आपकी मनोकामना अवश्य पूरी करें । प्रयास जारी रखिएगा । एक न एक दिन आपको दूध अवश्य मिल जाएगा । इस तनाव भरे माहौल में आपका व्यंग्य आह्लादित कर गया । बहुत बहुत बधाई ।
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