मार्जन, परिमार्जन, कुत्ता गार्जियन
डॉ. अशोक गौतमआजकल हमारी कालोनी में जहाँ एक ओर फ़ैमलियों में करिश्माई ढंग से आदमियों की संख्या कम हो रही है वहीं दूसरी ओर फ़ैमिली कुत्तों की संख्या में दिन दुगनी रात चौगुनी वृद्धि हो रही है। कुत्ते भी ऐसी ऐसी नस्ल के, रेट के की उनकी नस्ल, रेट का नाम सुनते ही दाँतों तले कटने को उँगली ख़ुद ब ख़ुद सहर्ष चली जाए। उनकी नस्ल का उच्चारण करते करते ज़ुबान फिसल कर कहीं की कहीं और चली जाए।
इन चंद महीनों में ही मैंने कुत्तों की इतनी नस्लों का ज्ञान हासिल कर लिया है कि जितना पचास सालों में आदमियों की नस्लों का ज्ञान अर्जित न कर सका। इसके पीछे एक कारण यह भी हो सकता हो कि मैं इतने सालों तक अपनी ही नस्ल के आदमियों के बीच रहा होऊँ। अपनी नस्ल के आदमियों के सर्कल से बाहर ही निकला होऊँ।
तो अब हुआ यूँ कि वे श्रीयुत, श्रीमान भी कुत्ते को प्यारे हो गए जो कल तक कुत्तों से अधिक कुत्तेवालों को जमकर गालियाँ दिया करते थे। बात बात पर हर कुत्ते वाले को देख कर कहा करते थे, “जो आदमी कुत्ता रखता है, वह देर सबेर आदमी होकर भी कुत्ता हो जाता है, और कुत्ता आदमी।” तो मैं उन्हें ढाढ़स देते कहता, “इससे आदमी और कुत्तों के अनुपात में कमी, बढ़ोतरी नहीं होती है न! आदमी और कुत्तों की संख्या में संतुलन बना रहता है। दिक़्क़त तो तब हो जो आदमी भी कुत्ता बन जाए आदमी के साथ रहते कुत्ता आदमी न बन पाए,” तब मेरे ये कहने पर वे मुझे काटने वाली नज़रों से देखते, गली के कुत्तों की तरह। आदमी आदमी को दाँतों से ही नहीं काटता, नज़रों से उससे भी बुरी तरह से काटने का माद्दा रखता है साहब!
आज सुबह सुबह जो औरों की बीवियों को नापते भांपते अपनी बीवी के बदले कुत्ते के साथ घूमने आते दिखे तो मैं दंग रह गया। पहले वे अपनी बीवी के साथ घूमने निकला करते थे दुम दबाए। वैसे, अपनी बीवी के सामने शेर भी अपनी दुम दबाए रखता है। जब वे मेरे सामने कुत्ते को अपनी रस्सी पकड़ाए हुए हुए तो मैंने उन्हें इस उपलब्धि पर हार्दिक बधाई देते कहा, “बंधु! मुबारक हो! आप भी कुत्ते वाले हो गए! बधाइयाँ! कालोनी में बस, आपका ही एक गला ऐसा बचा था जिसमें पट्टा न था। इसके साथ अब हमारी कालोनी शत प्रतिशत कुत्तामय हुई। सरकार आज तक लाख दावों के बाद भी अपना कोई शत प्रतिशत लक्ष्य पूरा कर पाई हो या न, पर हमने कर लिया।”
मेरा उन्हें कुत्तेवाले होने पर बधाई देने भर की देर थी कि वे पलटवार करते यों बोले जैसे वफ़ादार कुत्ता अपने मालिक के बारे में बुरा सुन साँकल तोड़ते एकदम विरोधी की टाँग पर सवार हो जाता है, “बंधु! कल तक मैं भी सम्मानीय कुत्तों के बार में तुम्हारी तरह की ही घटिया राय रखता था। पर अब पता चला कि उफ़! मैं कितना ग़लत था! हो सके तो ये कुत्ता मेरी अक्षम्य ग़लतियों को क्षमा करे। सच कहूँ बंधु तो आज आदमी के लिए आदमी उतना ज़रूरी नहीं, जितना कुत्ता ज़रूरी है। संस्कारों, मूल्यों के विघटनकारी दौर में आज आदमी आदमी से उतना नहीं सीख पा रहा जितना वह कुत्ते से सहज ही सीख सकता है। आज समाज में समाज को समाज बनाए रखने के लिए आदमी से अधिक ज़रूरत कुत्तों की है। मूल्यों के संक्रमणकाल में मत पूछो आदमी के लिए कुत्ता कितना लाज़िमी है? आज आदमी आदमी को अपनी सोहबत में आदमी भी नहीं रहने दे रहा जबकि कुत्ता असंस्कारी से असंस्कारी के संस्कारों का परिष्कार करने का समरथ रखता है। उदाहरणार्थ, कुत्ता हमें आज के गद्दारी भरे माहौल में वफ़ादारी सिखाता है। नमक हरामी के दौर नमक की इज़्ज़त करना सिखाता है। आदमी मुश्किल में आदमी का साथ छोड़ देता है, चाहे वह किसीका कितना भी सगा क्यों न हो, पर एक कुत्ता ही है जो आदमी को आदमी के मुश्किल में साथ देना सिखाता है। कुल मिलाकर, कुत्ता आदमी से कुछ सीखे या न, पर कुत्ते से आदमी बहुत कुछ सीख सकता है अगर उसमें पोटेंशियल हो तो। कुत्ते के साथ रहकर हम मानवीय ही नहीं, मानवेत्तर गुणों से लथपथ हो सकते हैं। इसलिए मैं तो कहता हूँ कि जो तुम भी अपने भीतर कुत्तीय गुणों के बहाने मानवीय गुणों का मार्जन, परिमार्जन, संवर्धन, मर्दन करना चाहते हो तो जितनी जल्दी हो सके किसी एक घरवाले को छोड़ उसकी जगह एक कुत्ता रख लो! कहो तो इसके भाई के लिए बात चलाऊँ? सस्ते में दिलवा दूँगा,” आह! बंधु कुत्ते के इतने गुणों को एक ही दिन आत्मसात् कर गए तो पता नहीं महीने भर में कहाँ होंगे?
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