हाय! मैं अभागा पति
डॉ. अशोक गौतमश्रीमती श्री मायके गई हुई थी, सो थोड़ा फ़्री था। जब तक वह घर में होती है, मत पूछो कितना व्यस्त रहता हूँ। उसके घर में रहते हुए सिर झुकाए घर से सीधे ऑफ़िस तो ऑफ़िस से सीधे घर। बीच में ग़लती से सिर उठा कहीं तनिक भी इधर उधर ताक-झाँक कर ली तो महाभारत तय। इतिहास में तो एक ही महाभारत हुआ था, दोस्तो! पर अपने घर में तो दिन में पता नहीं कितनी बार महाभारत हो लेते हैं? पर हर बार पांडव वही होती है।
उसके घर में होते पाँच मिनट भी ऑफ़िस से घर आने को लेट हो जाऊँ तो अपना तो अपना, पड़ोसियों तक के घरों को चाय का ख़ाली गिलास तक न उठाने वाली मज़े से सिर पर उठा लेती है। पर माफ़ करें देवियो और सज्जनो! इसके बाद भी हम पता नहीं क्यों, उसके लिए उसके राम, मेरे लिए वह मेरी सीता है। वह मेरे लिए फटा जूता तो हम उसका आधा उधड़ा फीता हैं। वह मेरे लिए क़ुरान तो हम उसके लिए गीता हैं। न खाते हुए एक दूसरे से न रोया जाए, न हँसा जाए, हम एक दूसरे के लिए वह ख़तरनाक मीठा हैं।
इन दिनों उसके मायके जाने पर लग रहा है, जैसे मैं भी भरापूरा आदमी हूँ। मैं भी स्वतंत्र हूँ। कम से कम उसके मायके जाने पर घर का काम एक तिहाई तो हो गया है। वह भी जब मन किया तब किया। भगवान करे, अब वह मायके ही रहे।
बीवी के साथ रहते सुबह पाँच बजे उठने वाला आज दस बजे भी अँगड़ाई ले रहा था कि दरवाज़े पर अचानक दस्तक हुई। अनमने मन से बिस्तर से उठा, दरवाज़ा खोला तो सामने पड़ोस की बेगम। मन देख कर पल में ही बाग़-बाग़ हो गया।
तभी उसने भी मुस्कुराते हुए मेरी ओर शादी का सा कार्ड बढ़ाया, "सुनिए!"
"जी कहिए?" मन में तूफ़ान सा उठने लगा तो मैंने उसे पूरी तरह दबाते कहा।
मैं न जाने तब क्यों बीस साल से शादीशुदा बेगम की ओर एकटक देखता रहा तो उन्होंने एकबार फिर मेरे एकटक उनको निहारने को अन्यथा लेते हुए, मुस्कुराते हुए मेरी एकटकता को तोड़ा, "ये शादी का कार्ड है। सोचा, आपको देने ख़ुद ही जाऊँगी," कह बेगम ने वह सुंदर सा कार्ड मेरी ओर बढ़ाया। कार्ड को देखकर लग रहा था ज्यों किसीकी सच्ची को पहली मैरिज हो। उस वक़्त मत पूछो मेरे दिल का क्या हाल था! शादीशुदा होने के बाद भी क्यों था ? दिल ही जाने।
"किसकी शादी है? आपकी?"
"नहीं, मेरे शौहर की है!" कह वे मंद-मंद मुस्कुराती रहीं तो मेरा दिल और भी बेक़ाबू होने लगा।
तब अपने दिल पर क़ाबू करते-करते मैंने उनसे पूछा, "तो आप कब कर रहीं हैं एक और शादी?"
"उनकी हो जाए, उसके बाद देखूँगी," कह वे और भी मंद-मंद मुस्कुराने लगीं तो मैं पता नहीं क्या, क्यों सोचने लगा? गधा कहीं का!
"आपके शौहर की शादी? पर उनका आपके साथ विवाह नहीं हुआ है क्या?"
"हुआ तो है पर उनका मन कर रहा है कि वे एक और शादी इन्ज्वाय करें। उन्होंने इस बारे में जब मुझसे पूछा तो मैंने कह दिया- देख लो! मेरी बला से तुम चार-चार बीवियाँ रख लो। मैनेज आपको ही करनी हैं।"
"तो??"
"तो क्या! उन्होंने मैनेज करने की हामी भर ली तो मुझे भी ख़ुशी हुई कि चलो, घर के काम में हाथ बँटाने वाली एक और तो आई। सो. . . . इसी ख़ुशी में. . . अगले हफ़्ते मैंने उनकी दूसरी शादी की ख़ुशी में होटल पैलेस से डिनर रखा है। आप इस मौक़े पर सपरिवार आ मेरे पति की और हिम्मत ज़रूर बढ़ाइएगा. . ." उन्होंने कहा और दोनों हाथ जोड़ एकबार फिर मुस्कुराते आगे हो लीं।
सच पूछो तो भाईसाहब इसे कहते हैं बीवी की दरियादिली। मेरी बीवी की तरह नहीं कि जिस दिन उसके साथ रिंग सेरेमनी हुई थी, उसी दिन से मुझे पर शक करने लग गई थी। . . .और जिस दिन उससे मेरा विवाह हुआ था, मत पूछो उस दिन से मेरे क्या हाल हैं? जब देखो! बस, शक! शक ! शक! मेरे सांस्कृतिक परिवेश की बीवियाँ इतनी शकी क्यों होती हैं भाईसाहब? समाजविज्ञानी चाहें तो इस विषय पर मौलिक शोध कर सकते हैं। चोरी-चकारी का शोध तो बहुत हो रहा है।
जबसे वे अपने शौहर का शादी का कार्ड सप्रेम दे गई हैं, ख़ुदा क़सम! मुझे अपने सांस्कृतिक परिवेश से बहुत चिढ़ हो गई है। अपने से बहुत घिन्न आ रही है कि मैं कितने बैकवर्ड सांस्कृतिक परिवेश से बिलांग करता हूँ। मन करता है इस सांस्कृतिक परिवेश को त्याग उनके वाला सांस्कृति परिवेश ज्वाइन कर लूँ, अभी के अभी।
मित्रो! कहाँ उनका आसमान सा खुला परिवेश जहाँ एक बीवी पूरी ईमानदारी से अपने शौहर की शादी का सारा भार अपने कंधों पर सहज उठाए फिरती है,और कहाँ मेरे वाला समाज! जहाँ अपने मरने पर अपनी तेरहवीं के कार्ड भी मरने वाले को ही बाँटने पड़ते हैं।
अपने यहाँ जो एकबार ग़लती से भी किसी से विवाह कर लो बँधे रहो कम से कम सात जन्म तक उसके साथ खूँटे में। खूँटे को तोड़ने की हिम्मत करो तो समाज जीने न दे। . . . .और उनके समाज में वाह! क्या मज़े! इधर धर्मपत्नी के सामने झूठ को भी दूसरी धर्मपत्नी लाने का मज़ाक भी कर दो तो वह रस्सी लेकर स्टूल ढूँढ़ने लग जाए। और उधर शौहर की शादी में आरएसवीपी बन अकेली बीवी अपने शौहर की शादी का सारा का सारा भार उठाने को कितनी आतुर! इसे कहते हैं विशुद्ध धर्मपरायणा। राम क़सम! धर्मपत्नी हो तो ऐसी। वरना! बिन धर्मपत्नी के ही भले।
हे इस बेगम के कर कमलों द्वारा दूसरी बार हाथों में मेंहदी रचाने वाले पूजनीय शौहर! तुम बड़े भाग्यशाली हो यार! मेरा मन तुम्हारी आरती उतारने को कर रहा है। तुम धन्य हो! जब तुम्हारी बीवी तुम्हारे हाथों में मेंहदी रचाएगी तो उस अवस्मिरणीय पल की कल्पना करते ही मैं सिहर उठता हूँ। हे दोस्त! अब मुझे भाग्य से चिढ़ सी हो रही है। मन करता है तुम्हारी जगह मैं ऐसी बेगम का शौहर हो जाऊँ। तुम धन्य हो जिसे ऐसी पतिपरायणा बेगम मिली है दोस्त! जो अपने शौहर की दूसरी शादी करवाने को दिनरात तैयारियों में तन मन धन से जुटी है।
हे पहली बीवी के हाथों पर पाँव रख दूसरी बार घोड़ी चढ़ने वाले महापुरुष! तुम्हारी बीवी के तुम्हारे प्रति इस अगाध निर्बाध समर्पण देख मेरा भी मन भी कर रहा है कि मैं भी तुम्हारे वाले सांस्कृतिक परिवेश में अपना पंजीकरण करवा लूँ। धन्य है तुम्हारी बेगम! धन्य हो तुम! काश! मेरी धर्मपत्नी भी इतने ही ऊँचे विचारों की होती! काश! तुम्हारी बेगम से कुछ सीखती तो. . . .
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
-
- रावण ऐसे नहीं मरा करते दोस्त
- शर्मा एक्सक्लूसिव पैट् शॉप
- अंधास्था द्वारे, वारे-न्यारे
- अंधेर नगरी फ़ास्ट क़ानून
- अजर अमर वायरस
- अतिथि करोनो भवः
- अपने गंजे, अपने कंघे
- अब तो मैं पुतला होकर ही रहूँगा
- अभिनंदन ग्रंथ की अंतिम यात्रा
- अमृत अल्कोहल दोऊ खड़े . . .
- असंतुष्ट इज़ बैटर दैन संतुष्ट
- अस्पताल में एक और आम हादसा
- आज्ञाकारी पति की वाल से
- आदमी होने की ज़रूरी शर्त
- आदर्श ऑफ़िस के दरिंदे
- आश्वासन मय सब जग जानी
- आसमान तो नहीं गिरा है न भाई साहब!
- आह प्रदूषण! वाह प्रदूषण!!
- आह रिटायरी! स्वाहा रिटायरी!
- इंस्पेक्टर खातादीन सुवाच
- उठो हिंदी वियोगी! मैम आ गई
- उधार दे, कुएँ में डाल
- उनका न्यू मोटर वीइकल क़ानून
- उफ़! अब मेरे भी दिन फिरेंगे
- एक और वैष्णव का उदय
- एक निगेटिव रिपोर्ट बस!
- एक सार्वजनिक सूचना
- एप्पों की पालकी! जय कन्हैया लाल की!
- ऐन ऑफ़िशियल प्लांटेशन ड्राइव
- ऑफ़िस शोक
- ओम् जय उलूक जी भ्राता!
- कंघीहीन भाइयों के लिए ख़ुशख़बरी!
- कवि की निजी क्रीड़ात्मक पीड़ाएँ
- काम करे मेरी जूत्ती
- कालजयी का जयंती लाइव
- कालजयी होने की खुजली
- कुक्कड़ का राजनीतिक शोक
- कुछ तीखा हो जाए
- कुशल साहब, ग़ुसल लाजवाब
- केवल गाँधी वाले आवेदन करें
- क्षमाम्! क्षमाम्! चमचाश्री!
- खानदानी सांत्वना छाप मरहमखाना
- गधी मैया दूध दे
- गर्दभ कैबिनेट हेतु बुद्धिजीवी विमर्श
- चमचा अलंकरण समारोह
- चरणयोगी भोग्या वसुंधरा
- चला गब्बर बब्बर होने
- चार्ज हैंडिड ओवर, टेकन ओवर
- चुनाव करवाइए, कोविड भगाइए
- छगन जी पहलवान लोकतंत्र की रक्षा के अखाड़े में
- जनतंत्र द्रुत प्रगति पर है
- जाके प्रिय न बॉस बीवेही
- जी ज़नाब का मिठाई सेटिंग दर्शन
- जैसे तुम, वैसे हम
- जो सुख सरकारी चौबारे वह....
- ज्ञानपीठ कोचिंग सेंटर
- टट्टी ख़त्म
- ट्रायल का बकरा मैं मैं
- ट्रिन.. ट्रिन... ट्रिन... ट्रिन...
- ठंडी चाय, तौबा! हाय!
- ठेले पर वैक्सीन
- डेज़ी की कमर्शियल आत्मकथा
- डोमेस्टिक चकित्सक के घर कोराना
- तीसरे दर्जे का शुभचिंतक
- त्रस्त पतियों के लिए डायमंड चांस
- त्रासदी विवाहित इश्क़िए की
- दंबूक सिंह खद्दरधारी
- दीर्घायु कामना को उग्र बीवी!
- धुएँ का नया लॉट
- न काहू से दोस्ती, न काहू की ख़ैर
- नंगा सबसे चंगा
- नई नाक वाले पुराने दोस्त
- नमः नव मठाधिपतये
- नशा मुक्ति केंद्र में लेखक
- नो कमेंट्स प्लीज!
- नक़लं परमं धर्मम्
- पधारो म्हारे मोबाइल नशा मुक्ति धाम
- परसाई की पीठ पर गधा
- पशु-आदमी भाई! भाई!
- पहली बार मज़े
- पार्टी सौभाग्य श्री की तलाश
- पावर वालों का पावरफ़ुल कुत्ता
- पुरस्कार पाने का रोडमैप
- पुरस्कार रोग से लाचार और मैं तीमारदार
- पुल के उठाले में नेता जी
- पेपर लीकेज संघ ज़िंदाबाद!
- पैदल चल, मस्त रह
- पोइट आइसोलेशन में है वसंत!
- पोलिंग की पूर्व संध्या पर नेताजी का उद्बोधन
- फिर हैप्पी इंडिपेंडेंस डे
- फोटुओं और कार्यक्रमों का रिश्ता
- बंगाली बाबा परीक्षक वशीकरण वाले
- बधाई हो बधाई!!
- बाबा के डायपर और ऑफ़िस में हाइपर
- बुद्धिजीवी मेकर
- बूढ़ों के लिए ख़ुशख़बरी!
- बेगम जी के उपवास में ख़्वारियाँ
- बैकुंठ में जन्म लेती कुंठाएँ
- ब्लैक मार्किटियों की गूगल मीट
- भगौड़ी बीवी और पति विलाप
- भाड़े की देशभक्ति
- भोलाराम की मुक्ति
- मंत्री जी इंद्रलोक को
- मच्छर एकता ज़िंदाबाद!
- मातादीन का श्राप
- मातादीनजी का कन्फ़ैशन
- माधो! पग-पग ठगों का डेरा
- मार्जन, परिमार्जन, कुत्ता गार्जियन
- मालपुआमय हर कथा सुहानी
- मास्टर जी मंकी मोर्चे पर
- मिक्सिंग, फिक्सिंग और क्या??
- मुहब्बत में राजनीति
- मूर्तिभंजक की मूर्ति का चीरहरण
- मेरी किताब यमलोक पहुँची
- मेरे घर अख़बार आने के कारण
- मॉर्निंग वॉक और न्यू कुत्ता विमर्श
- मोबाइल लोक की जय!
- यमराज के सुतंत्र में गुरुजी
- यान के इंतज़ार में चंद्र सुंदरी
- राइटरों की नई राइटिंग संहिता
- राजनीतिक निवेश में ऐश ही ऐश
- रामदास, ठंड और बयानू सिकंदर
- रिटायरमेंट का मातम
- रिटायरियों का ओरिएंटेशन प्रोग्राम
- रैशनेलिटि स्वाहा
- लिंक बनाए राखिए . . .
- लिटरेचर फ़र्टिलिटी सेंटर
- लो, कर लो बात!
- वदाइयाँ यार! वदाइयाँ!
- विद द ग्रेस ऑफ़ ऑल्माइटी डॉग
- विनम्र श्रद्धांजलि पेंडिंग-सी
- वीवीआईपी के साथ विश्वानाथ
- वैक्सीन का रिएक्शन
- वैष्णवी ब्लड की जाँच रिपोर्ट
- व्यंग्य मार्केटिंग में बीवियाँ
- शर्मा जी को कुत्ता कमान
- शुभाकांक्षी, प्यालीदास!
- शेविंग पाउडर बलमा
- शोक सभा उर्फ टपाजंलि समारोह
- सजना है मुझे! हिंदी के लिए
- सम्मान लिपासुओं के लिए शुभ सूचना
- सम्मानित होने का चस्का
- सर जी! मैं अभी भी ग़ुलाम हूँ
- सरकार का पुतला ज़िंदाबाद!
- सर्व सम्मति से
- सामाजिक न्याय हेतु मंत्री जी को ज्ञापन
- साहब और कोरोना में खलयुद्ध
- साहित्य में साहित्य प्रवर्तक अडीशन
- सूधो! गब्बर से कहियो जाय
- सॉरी सरजी!
- स्टेट्स श्री में कुत्तों का योगदान
- स्याही फेंकिंग सूची और तथाकथित साली की ख़ुशी
- स्वर्गलोक में पारदर्शिता
- हँसना ज़रूरी है
- हम हैं तो मुमकिन है
- हाथ जोड़ता हूँ तिलोत्तमा प्लीज़!
- हादसा तो होने दे यार!
- हाय! मैं अभागा पति
- हिंदी दिवस, श्रोता शून्य, कवि बस!
- हिस्टॉरिकल भाषण
- हैप्पी बर्थडे टू बॉस के ऑगी जी!
- ख़ुश्बू बंद, बदबू शुरू
- ज़िंदा-जी हरिद्वार यात्रा
- ज़िम्मेदारों के बीच यमराज
- फ़र्ज़ी का असली इंटरव्यू
- फ़ेसबुकोहलिक की टाइम लाइन से
- फ़्री का चंदन, नो चूँ! नो चाँ नंदन!
- फ़्री दिल चेकअप कैंप में डियर लाल
- कविता
- पुस्तक समीक्षा
- कहानी
- विडियो
-
- ऑडियो
-