हाय रे! प्रेम में बकरा होते पति 

01-10-2025

हाय रे! प्रेम में बकरा होते पति 

डॉ. अशोक गौतम (अंक: 285, अक्टूबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

हे समाज में आजतक अपना जैसे कैसे वर्चस्व बनाए रखने वाले पतियो! लगता है, आज हम सब पर विपदा नहीं, घोर विपदा आन पड़ी है। पर हम चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते। लगता है विपदा की इन घोर घड़ियों में प्रभु भी हमारे साथ नहीं। 

बंधुओ! पता नहीं, आप अपनी बीवी से डर रहे होंगे कि नहीं, पर मैं कल तक बीवी के सिर चढ़ा रहने वाला आजकल अपनी बीवी से बहुत डरा हुआ हूँ। इतना डरा हुआ हूँ कि आजकल मुझे घर के फूलदान फूल भी चाकू छुरियों से पैने लग रहे हैं। 

आजकल सोता तो कौन मुआ है, पर फिर भी रात को तो रात को, मुझे दिन को भी बुरे-बुरे सपने आते रहते हैं। खुली आँखों के ही। मेरा पुरुषत्व आजकल पानी में चला गया है भैंस की तरह। आजकल घर में आठ पहर चौबीस घंटे बहुत डरा सहमा सा रहता हूँ, यह सोचता हुआ कि पता नहीं कल का सूरज देख भी पाऊँगा या नहीं? 

कई बार तो अब सोए-सोए तो छोड़िए, जागे-जागे भी लगता है ज्यों जबसे मैंने विवाह किया है तबसे मुझ पाँच ग्राम ख़ून वाले की बीवी मेरे ख़ून की प्यासी होकर चार स्कूल कॉलेज जाने वाले बच्चों की माँ होने के बाद भी अपने ताज़े-ताज़े प्रेमी के चक्कर में पड़ अपनी चुनरी से ज्यों पति धर्म निभाते-निभाते मेरा गला घोंट रही हो। और उसके ताज़े-ताज़े प्रेमी ने मेरे हाथ पकड़ रखे हों। ये वैवाहिक प्रेम भी क्या सच्ची को इतना अंधा होता है कि उसमें अपना जन्म-जन्म का पति भी प्रेमी के आगे बलि का बकरा लगता है? 

कई बार तो अब सोए-सोए तो छोड़िए, जागे-जागे भी लगता है ज्यों मेरी जन्म-जन्म की बीवी मेरे ख़ून की प्यासी होकर चार स्कूल कॉलेज जाने वाले बच्चों की माँ होने के बाद भी अपने प्रेमी के चक्कर में पड़ मुझे अपने हाथों से मुस्कुराते पति धर्म निभाते-निभाते हुए दिसंबर महीने में भी कोल्ड ड्रिंक में ज़हर मिला पिला रही हो। और उसका ताज़ा-ताज़ा प्रेमी ज़हर की शीशी पकड़े मेरे सामने मुस्कुरा रहा हो। ये वैवाहिक प्रेम भी क्या सच्ची को इतना अंधा होता है कि उसमें अपना जन्म-जन्म का पति भी प्रेमी के आगे बलि का बकरा लगता है? 

कई बार तो अब सोए-सोए तो छोड़िए, जागे-जागे भी लगता है ज्यों मेरी जन्म-जन्म की बीवी मेरे ख़ून की प्यासी होकर चार स्कूल कॉलेज जाने वाले बच्चों की माँ होने के बाद भी अपने ताज़े-ताज़े प्रेमी के चक्कर में पड़ पति धर्म निभाते-निभाते मुझे अपने हाथों से अपने प्र्रेमी के साथ मिलकर मेरे टुकड़े-टुकड़े कर फ़्रिज में रख रही हो दूध, दही की तरह। मानो तब मैं उसके लिए उसका पति न होकर एक मुर्ग़ा होऊँ। 

कई बार तो अब सोए-सोए तो छोड़िए, जागे-जागे भी लगता है ज्यों मेरी जन्म-जन्म की बीवी मेरे ख़ून की प्यासी होकर चार स्कूल कॉलेज जाने वाले बच्चों की माँ होने के बाद भी अपने ताज़े-ताज़े प्रेमी के चक्कर में पड़ पति धर्म निभाते-निभाते मुझे हनीमून पर जाने को उकसा रही हो। जबकि सच कहूँ तो आजकल मैं उसके साथ सुबह की सैर करने जाने से भी डर रहा हूँ। क्योंकि कहीं ऐसा न हो कि आज की सैर मेरी अंतिम सैर हो। और उसका ताज़ा-ताज़ा प्रेमी मुस्कुराते हुए मेरे आगे-पीछे, आजू-बाज़ू चल रहा हो। ये वैवाहिक प्रेम भी क्या सच्ची को इतना अंधा होता है मित्रो! कि उसमें अपना जन्म-जन्म का पति अपने गधे प्रेमी के आगे बलि का बकरा लगता है? 

कभी उसकी जिन कजरारी आँखों में मुझ प्यार ही प्यार नज़र आता था, इन दिनों उसकी आँखों में मुझे ख़ून ही ख़ून नज़र आता है। कल तक जिसे पति परमेश्वर लगता था आज उसे प्रेमी परमेश्वर हो गया है। हाय रे घोर कलियुग! कल तक जिसे प्यार की नज़रों से देखा करता था आज उसे शक की नज़रों से देखना पड़ रहा है। जबसे पत्नियों ने पतियों की नृशंस हत्याएँ करने के लिए कमर कसी है, तबसे हर पल यह सोच कर सहमा रहता हूँ कि अगले पल मेरी बीवी मेरे साथ पता नहीं क्या कर दे? क्या पता कब जैसे अपने सात जन्म के पति के विरुद्ध अपने किसी चंद महीनों के प्रेमी के साथ मिलकर कब उसकी जीवन लीला समाप्त कर दे। 

हे दूसरों की तो दूसरों की, अपनी बीवियों से भी डरे हुए पतियो! सच कहूँ तो अपने हर जन्म में पति होने के बावजूद मैं उतना पहले किसी जन्म में इतना नहीं डरा जितना आजकल अपनी बीवी से डर रहा हूँ। पता नहीं आजकल की इन बीवियों को क्या हो गया है मेरे प्रभु? पति को गाजर मूली समझने लगी हैं। 

आख़िर डरता क्या न करता! कल यों ही मरे-मरे सोचा, हो सकता है, अपनी ग्रह स्थिति विपरीत चल रही हो। सुना है, जब पतियों के बुरे दिन चले हों तो दूसरों की प्रेमिकाएँ तो प्रेमिकाएँ, अपने घर की बीवियाँ भी दुश्मन हो जाया करती हैं। पंडित जी पर विश्वास न होने के बाद भी इसी डर को बीवी के प्यार के बदले दिल में लिए महल्ले के नामी पंडित जी के पास गया तो देखा सबको डराने वाले पंडित जी भी किसी अज्ञात डर से सहमे हुए हैं। मतलब, समाज की हवा आजकल पतियों की फ़ेवर में क़तई नहीं? उन्होंने भीतर से रोनी, तो धंधे के चलते, बाहर से मुस्कुराती सूरत बनाते पूछा, “क्या बात है यजमान? मर्द होकर भी इतने डरे हुए क्यों हो?” 

“पंडित जी! मैं ही नहीं, इस वक़्त देश का हर पति डरा हुआ है। मैं आपके पास अपनी कुडंली बनवा उसे दिखवाने आया हूँ कि कहीं मेरी कुंडली में मेरी बीवी के हाथों मरना तो नहीं लिखा है?” 

“भयभीत मत हो यजमान! शास्त्र कहते हैं कि जो कलिकाल में बीवी के हाथों मरता है उसे स्वर्ग मिलता है। यजमान! तेरी कुंडली क्या देखूँ, इन दिनों तो मैं रोज़ सुबह उठने से पहले अपनी कुंडली बाँच लेता हूँ कि आज कहीं मेरी कुंडली में मेरी बीवी के हाथों मरने का योग तो नहीं? जब जमा-घटा कर कुछ-कुछ सही पाता हूँ तभी सोई बीवी को चाय बनाकर पिलाता हूँ। बावजूद कुंडली में सारे ग्रह सही होने के बाद भी डर लगा रहता है कि कहीं . . .” अब आप ही कहो! मेरे जैसा बीवी से डरा पति अब जाए तो कहाँ जाए? 

डरे पंडित जी को देख सोचा, पत्नी पीड़ित पति आश्रम ही चला जाऊँ। समय से पूर्व मरने से बेहतर तो रूखा-सूखा खाना है। हर पल बीवी के आगे बकरे की तरह बँधे रहने से बेहतर तो . . . इज़्ज़त को मारो गोली। गई मर्दानगी भाड़ में। जान है तो जहान है। आपातकाल के लिए मैंने आश्रम का फोन सेव करके रखा था। आनन-फ़ानन में जब वहाँ फोन लगाया तो प्रबंधक बोले, “माफ़ कीजिएगा! हमारा पत्नी पीड़ित पति आश्रम कैपेसिटी से अधिक भर गया है। अब तो बरामदों में भी लेटने को जगह नहीं। किसी और आश्रम संपर्क कीजिएगा प्लीज़!” इससे पहले कि मैं उनसे किसी दूसरे पत्नी पीड़ित पति आश्रम का नंबर ले पाता, उन्होंने फोन काट दिया। 

आपके पास किसी पत्नी पीड़ित पति आश्रम का कोई नंबर हो तो प्लीज़! मुहैया करवाइएगा। अपनी बीवी के हाथों एक निरपराध पति के मरने से बचने का सवाल है। मैं आपका अहसान मरने के बाद भी नहीं भूलूँगा। 

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