पैदल चल, मस्त रह

15-11-2021

पैदल चल, मस्त रह

डॉ. अशोक गौतम (अंक: 193, नवम्बर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

हालाँकि जोखू के पास सेकेंड- हैंड साइकिल के सिवाय पर्सनल व्हीकल के नाम पर और कुछ नहीं। हाँ! कभी-कभार कोई गाड़ी वाला अपनी गाड़ी में बिठा उसे अपने घर काम करने ज़रूर ले जाता है। उसे मधुमेह है। ख़ानदानी। इसलिए चीनी भी नहीं खाता। 

कुल मिलाकर जमा-घटाकर ऐसा उसकी ज़िंदगी में कुछ भी नहीं जिसके महँगे या सस्ते होने से उसकी जेब पर कोई ख़ास फ़र्क़ पड़े। पर बावजूद इस सबके पता नहीं उसे पिछले कुछ दिनों से रात को सोने के बाद सपनों में अजीब-अजीब से बंदे-रूपी देवता सपने में दिखाई देते हैं, उसे सांत्वना देते हुए, उसे समझाते हुए।

सपनों में बंदों की इसी देखा-देखी में उसे कल कभी आगे न पीछे देखे कोई देव से दिखाई दिए। उस वक़्त वह पता नहीं क्यों सपने में ’पकड़ो! पकड़ो! पेट्रोल! पेट्रोल!’ चिल्ला रहा था। इतनी तेज़ी से कि जितना वे भी नहीं चिल्ला रहे जिनकी ख़ाली टंकियों वाली गाड़ियों से आजकल पेट्रोल चोरने वाला गिरोह घर-घर सक्रिय है। उसे सपने में लग रहा था ज्यों कोई उसकी साइकिल के टायर के बदले उसमें लगी टंकी से पेट्रोल चुरा रहा हो।

उसकी बेहूदी आवाज़ सुन पुलिस के बदले डीज़ल-पेट्रोल देवता ने दर्शन दिए तो जोखू सपने में ही चौंका।

“क्या बात है जोखू? दिन को तो चौक-चौक चिल्लाते ही रहते हो पर अब सोए-सोए भी चैन नहीं?”

“आप कौन महाराज!”जोखू ने सपने में ही हाथ-टाँग सब जोड़ते कहा तो देवता ने अपनी इंट्रो देते बोले, “मैं इस देश का इकलौता पेट्रोलियम एवं नेचुरल गैस देव हूँ। नभ-थल-जल से लेकर रसोई तक, हर प्रकार के वाहन को चलाने, रसोई में जलाने वाले हर उपभोक्ता का रेट, फैट, फेट सब मेरी मुट्ठी में।”

“पेट्रोलियम एवं नेचुरल गैस देवता जी महाराज की जय! महाराज! मैंने देखा ज्यों कोई घात लगाकर मेरी साइकिल से पेट्रोल चुरा रहा था। बस, इसलिए चीख़ निकल गई।”

“हे सेकेंड-हैंड साइकिलधारी जीव! साइकिल में भी कोई पेट्रोल पड़ता है क्या? सबको उल्लू बनाने वाले पेट्रोलियम एवं नेचुरल गैस देवता का उल्लू बना रहा है? अपने पास सेकेंड-हैंड साइकिल होने के बाद भी सपने में तू आख़िर पेट्रोल! पेट्रोल! क्यों चिल्लाता रहता है? मधुमेह का रोगी होने के बाद भी क्यों चीनी! चीनी! चिल्लाता रहता है? जबकि न तेरा संबंध पेट्रोल से है न पुश्तैनी मधुमेह की बीमारी के चलते चीनी से। ये क्या मज़ाक बना रखा है आख़िर तूने? इतना तो वे भी पेट्रोल! पेट्रोल! डीज़ल! डीज़ल! नहीं चिल्ला रहे जिनके पास अपनी गाड़ियाँ हैं। देशद्रोह में अंदर जाना है क्या?”

“प्रभु क्षमा! पर मुझसे उनकी पेट्रोलीय पीड़ा नहीं सही जा रही। प्रभु! वह जीव ही क्या जो दूसरों के दुखों में दुखी न हो।”

“तो पैदल चलो न! कौन कहता है फिर भी गाड़ी ही चलाओ। आदमी के टाँगें किस लिए लगाई गई हैं? केवल पैंट-पतलून पहनने के लिए? न! इसलिए कि वह मुसीबत में पैदल भी चले। इसलिए नहीं कि दो क़दम भी कहीं जाना हो तो स्कूटर को किक मारी और आगे हो लिए। टाँगें हैं तो यार दो क़दम पैदल भी चल लिया करो ताकि टाँगों को भी अपने होने का अहसास हो। पर अब तुम चिल्लाने वालों को कौन समझाए कि पैदल चलने के कितने आर्थिक और स्वास्थीय लाभ हैं।” 

“मैं कुछ समझा नहीं प्रभु!” जोखू ने हाथ जोड़े जिज्ञासावश पूछा तो पेट्रोलियम एवं नेचुरल गैस देव उसकी जिज्ञासा शांत करते बोले, “देखो जोखू! सारा देश बौरा गया है। पच्चीस-पच्चीस पैसे पर हंगामा खड़ा कर देता है। नहीं समझता कि गाड़ी में चलने से ज़्यादा लाभ पैदल चलने में है। गैस पर रोटी बनाने से अधिक लाभ बाज़ार से ब्रेड लाकर खाने में है। गाड़ी में चलने से क़दम-क़दम पर चालान होने की परेशानी, न हुआ तो चालान होने के डर की परेशानी। क़दम-क़दम पर सब पूरा होने के बाद भी चालान का डर गाड़ी चलाने में हर दम बाधक बना रहता है। ऊपर से सड़क के गड्ढे! बाप रे बाप! पता ही नहीं चलता कहाँ से गाड़ी निकालें। जो असली का चालान हो गया तो टके के आगे-पीछे हाथ जोड़ते मर जाओ कि ’भैयाजी! ग़लती हो गई! आगे से पूरे होने के बाद भी सब काग़ज़ पूरे रखेंगे। सीट बैल्ट ढीली बँधी होने के बदले कल से और कसकर बाँधेंगे।’ और फिर जगह-जगह जाम! पैदल जहाँ दस मिनट में पहुँचा जा सकता है, वहाँ गाड़ी में आधा घंटा लग जाता है। तो हुआ न बीस मिनट का सीधा नुक़सान! इसको राष्ट्रीय स्तर पर जोड़ा जाए तो?”

“जी पेट्रोलियम एवं नेचुरल गैस देवा!” जोखू सपने में भी हक्का-बक्का।

“और पैदल चलो तो . . . न कहीं दुर्घटना होने का ख़तरा न कहीं किसी को ठोकने किसी से ठुकने का डर! चालान का तो डर ही नहीं। मज़े ही मज़े। गुनगुनाते जहाँ मन करे चलो पचासियों बीमारियों से मुक्ति पाते। जब बीमार नहीं होगे तो अस्पताल के डॉक्टर से भी छुट्टी। जितने की दवाएँ खाते हो यार! उतना का दूध पिओ। घी खाओ, है कि नहीं? पर यहाँ हमारी समझता ही कौन है? मर गए सबको समझाते-समझाते। अच्छा बताओ विश्व की सबसे बड़ी समस्या क्या है?” 

“ये कमबख़्त पेट!” जोखू ने सोए-सोए भी पेट पर हाथ धरे कहा तो पेट्रोलियम एवं नेचुरल गैस देव ठहाका लगाते बोले, “नहीं! रह गया न आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाने पर भी जोखू का जोखू ही।”

“तो बीवी!”

“नहीं! बूझो बूझो,” पेट्रोलियम एवं नेचुरल गैस देव ने जोखू को हँसाते गुदगुदाते कहा तो जोखू बोला, “ये डायन महँगाई!”

“नहीं पगले! ये प्रदूषण! जो घर से लेकर स्वर्ग तक हम देवताओं को भी परेशान किए है। इसलिए इससे मुक्ति पानी है तो गाड़ी त्यागो! पैदल चलो। स्कूटर त्यागो! पैदल चलो। पेट्रोल त्यागो! पैदल चलो। डीज़ल त्यागो! पैदल चलो। डीज़ल पेट्रोल त्याग में वह परमानंद है जो पेट्रोल डीज़ल चिल्लाने में नहीं,” कह जोखू के सपने से डीज़ल पेट्रोल देव एकाएक अंतरध्यान हुए तो जोखू ने मत पूछो अपने को कितना गुड-गुड फ़ील किया।

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