पोलिंग की पूर्व संध्या पर नेताजी का उद्बोधन
डॉ. अशोक गौतम
हे मेरे कर्मठ कार्यकर्ताओ!
आख़िर वह चुनाव की आख़िरी रात आ ही पहुँची जिसका हमें बड़े दिनों से बड़ी बेक़रारी से इंतज़ार था। हर जुझारू नेता चुनाव की इस रात का बेसब्री से इंतज़ार करता है। यह रात क़यामत की रात से भी अधिक क़यामत की रात होती है। क़यामत की रात में जैसे मुर्दे जाग उठते हैं उसी तरह चुनाव की इस आख़िरी रात में मेहनती नेता के सोए भाग जाग उठते हैं। यह रात धुआँधार प्रचार की रात होती है। यह रात वोटर का दिमाग़ सन्न करने की रात होती है। इस रात जो अपने विरोधी नेता के प्रचार पर जितना भारी पड़ गया, समझो वह पाँच साल के लिए सत्ता की कुर्सी पर नंग-धड़ंग चढ़ गया।
हे मेरे सिर पाँव फोड़ू तोड़ू कार्यकर्ताओ! चुनाव की इस रात मरे वोटर भी जाग उठते हैं। वे भी सौ-सौ मुँह खोले खाने को माँगते हैं। वे भी सौ-सौ मुँह खोले पीने को माँगते हैं। इस रात उन्हें इतना खिलाओ कि . . . इस रात उन्हें इतना पिलाओ कि ईवीएम में हमारे चुनाव निशान के सामने वाले बटन को दबाने तक उनका नशा न उतरे। उनके दिमाग़ के आगे पीछे, ऊपर नीचे बस, तुम्हारे भैयाजी का ही चुनाव चिह्न नाचता रहे। उसके बाद उनका नशा उतरे तो उतरता रहे। फिर हर नशे पर पहला हक़ मेरे वर्करों का है और दूसरा मेरा।
स्मरण रहे, चुनाव की इस रात सस्ते से सस्ता उम्मीदवार अपनी जीत के लिए आकाश पाताल एक करता आया है। इसलिए इस रात को बिल्कुल भी लाइटली न लिया जाए। इस रात जिस उम्मीदवार का कार्यकर्ता जितना जागता है, पाँच साल तक वह उतनी ही गहरी नींद सोता है। जबसे देश में लोकतंत्र आया है तबसे ही इस रात हर उम्मीदवार अपनी जीत के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाता आया है। चुनाव आयोग के अनुसार चुनाव प्रचार थमा माना जाए तो थमा माना जाए, पर असली चुनाव प्रचार इसी रात होगा। यह रात चुनाव प्रचार में सारी हदें पार करने की रात है। माना, काग़ज़ों में चुनाव प्रचार थम गया है। काग़ज़ों का क्या! काग़ज़ों में तो बहुत कुछ थम गया है। पर असली चुनाव प्रचार तो इसी रात होगा। अतः चुनाव प्रचार को थमा क़तई न माना जाए। बस, एक रात और! हे मेरे चुनाव बाँकुरो! इस रात जितनी मेहनत करोगे, पाँच साल उतना ही फल मिलेगा। अन्य चुनावों की तरह यह चुनाव भी ईमानदार चुनाव का पर्व नहीं, ईमानदार चुनाव के नाम पर घमासान का पर्व है।
याद रहे! चुनाव की यह रात कुरूक्षेत्र की आख़िरी रात से भी अधिक संवेदनशील रात है। चुनाव की इस रात में ही किसी भी नेता की हार जीत का निर्धारण होता है। इस रात जो जनता की जितनी सेवा करता है वह उतने ही मतों से अपने विरोधी से आगे ही नहीं बहुत आगे बढ़ता है। यह रात लोकतंत्र के महापर्व की रात नहीं, हमारी लोकतंत्र पर जीत की अंतिम रात है।
इसलिए मेरा आदेश है कि चुपचाप अपने अपने वोटरों के क्षेत्र में दबे पाँव डट जाओ। कोई शोर नहीं, कोई हल्ला नहीं। बस, साइलेंट प्रचार! वोटर के मनमाफिक उसके वोट पर वार। आज की रात वोटर जो भी माँगे उसे दिल खोलकर दो। वह एक माँगे उसे दस दो।
हे मेरे अनुपम कार्यकर्ताओ! तुम्हारी हिम्मत किसीके छिपी नहीं है। चुनाव के हर मोर्चे पर तुम सिकंदर हुए हो। तुम मेरे बहुमत के लिए किसी भी नेता को उठा कर ला सकते हो। तुम मुझे वोट दिलाने के लिए किसीको भी बहला-फुसला सकते हो। तुमने आजतक मेरी जीत के लिए हर पार्टी के उम्मीदवार को छठी का दूध पिलाया है। तुमने मेरी जीत के लिए मेरे विरोधी को हर तरह से हर तरह से डराया धमकाया है।
समाज में किडनीदान महादान कहा गया है। इसलिए किडनीदानी किसीके लिए भी किडनीदान सहज कर देता है। समाज में नेत्रदान महादान कहा गया है। इसलिए जनता अपनी आँखों का दान किसीके लिए भी मज़े से कर देती है। पर लोकतंत्र में मतदान महादान होने के बाद भी कोई फ़्री में मतदान नहीं करता। वह दान के बदले कुछ न कुछ दान चाहता है। मतदाता बराबर अपने मतदान के दरवाज़े पर खड़ा-खड़ा हर उम्मीदवार के कार्यकताओं को निहारा करता है कि वे उसके मत की क़ीमत चुकाए तो वह उसे अपना मत देने को बरगलाए।
याद रहे! सब पर भरोसा करना, पर चुनाव के दिनों में मतदाता पर क़तई भरोसा न करना। आज का मतदाता बहुत चालाक हो गया है। इस मुग़ालते में क़तई मत रहना कि जो उसने तुमसे उपहार स्वीकार कर लिए तो वह तुम्हारा हो गया। वह चुनाव के दिनों में सबसे उपहार लेता है। उपहार ले सबको अपना मत देने का वचन देता है। पर सच यह है कि वह किसीका होते हुए भी किसीका नहीं होता। या कि दूसरे शब्दों में वह सबका होता है। इस रात उसके नाक में उपहारों की नकेल डाल उसे हर हाल में अपना करना है।
हे मेरे कार्यकर्ताओ! यह रात ख़ून पसीने की तरह बहाने की रात है। यह रात जागने नशे में सुलाने की रात है। जीत गए तो पाँच साल तक जनता का ख़ून पीते रहोगे। हार गए तो पाँच साल तक जनता का मूत भी नसीब न होगा।
इसलिए साँझ ढलते ही अपने हर वोटर के हर दरवाज़े पर तैनात हो जाओ। मेरे विरोधी के कार्यकर्ता उनके दरवाज़े से घुसना तो दूर, उनके दरवाज़े का छू भी न पाएँ। यह लोकतंत्र की इज़्ज़त का प्रश्न है। हमें अपने प्राणों का बलिदान देकर भी लोकतंत्र को हर हाल में ज़िन्दा रखना है। लोकतंत्र को ज़िन्दा रखने का अधिकार केवल हमारा है। हम हैं तो सच्चा लोकतंत्र है।
हे मेरे धुरंधर कार्यकर्ताओ! यह रात तुम्हारे आमरण जागरण की रात है। इसलिए पाँच साल सोने के लिए सारी रात जागते रहो। हर वोटर के घर उसका मनमाफिक माल लेकर भागते रहो। उसे वोट डालने तक अपने क़ब्ज़े में रखो। यही सच्चा लोकतंत्र है। कहने वाले जो कहते हों कहते रहें, लोकतंत्र में हर क़िस्म का चुनाव जीतने का यही माइक्रो मंत्र है। जय लोकतंत्र! जय चुनाव! अब मिलते हैं अपनी जीत के जश्न में!
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