सरकार का पुतला ज़िंदाबाद!
डॉ. अशोक गौतमविपक्ष को उल्टियाँ, दस्त, माइग्रेन, बुखार और भी पता नहीं क्या-क्या रोग हो गए थे। इन सबके पीछे बस एक ही कारण था कि वह बड़े दिनों से सरकार के विरोध में शहर में बंद, रैली नहीं कर पा रहा था। इसी बीमारी के चलते वह सिर से लेकर पाँव तक खुजला रहा था। उसे लग रहा था कि जो शहर में इसी तरह अमन-शांति क़ायम रही तो उसे कहीं परमानेंट लाइलाज खुजली न हो जाए।
और वह सोया-सोया भी खुजलाते खुजलाते हुए हल्ला पाने का बहाना ढूँढ़ता रहता। चौबीसों घंटे बंद के बहाने तलाशने की तलाश में परेशान! हद है यार! इत्ते दिन हो गए। अचानक शहर में अमन शांति कैसे हो गई? पहले तो दिन में चार-चार बार सरकार के विरोध में रैली निकालते निकालते थक जाते थे।
पूरा विपक्ष परेशान था कि आख़िर ये इस शहर को हो क्या गया? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसने सरकार के जनता के प्रति उदासीन रवैये के चलते तंगियों में रहने की आदत डाल ली हो।
आखिर विपक्ष को जब सरकार के विरोध में रैली निकालने का कोई मुद्दा हाथ नहीं लगा तो उसने सरकार की कामयाबियों को ही मुद्दा बनाने की सोची।
और विपक्ष की बंद एडवाइज़री कमेटी ने तय किया कि कल शहर के डीसी ऑफ़िस के सामने हर हाल में सरकार का पुतला जलाया जाएगा। इस कृत्य के लिए भले ही उन्हें कुछ भी करना पड़े।
पुतला जलाए जाने से पहले विपक्ष के सपोक्समैन ने गला फाड़-फाड़ कर मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, “ये सरकार निक्कमी सरकार है। जनता को सुख सुविधाएँ देने के पीछे उसका हिडन एजेंडा है। वह जनता को सुख सुविधाएँ प्रदान कर जनता को सुविधा भोगी बना रही है। वह जनता को मुफ़्त में सब कुछ दे बीमार करना चाहती है। लाचार करना चाहती है। हम इसका कड़ा विरोध करते हैं। सरकार यही चाहती है कि शहर में अमन चैन रहे। अगर शहर में अमन चैन रहेगा तो मोमबत्तियों का बाज़ार बंद हो जाएगा। मोमबत्तियों की माँग कम हो जाने से हमारे मज़दूर भाइयों के पेट पर सरकार लात मारना चाहती है। ये सरकार मज़दूर विरोधी है। ये सरकार मोमबत्ती विरोधी है। हम सरकार की इस नीति का कड़ा विरोध करते हैं।”
विपक्ष के प्रवक्ता ने दिल खोलकर सरकार को कोसा। जब उसे लगा कि इस रैली में सरकार को कोसना जितना तय था, उतना वह सरकार को कोस चुका है तो विपक्ष की रैली जनता के सुखों के विरोध में सरकार की थू-थू करती डीसी ऑफ़िस की ओर बढ़ी। थू-थू करते जब उसका थूक ख़त्म हो गया तो उसने सामने पान वाले से थूक ले अपना मुँह भर लिया।
उधर सरकार ने पुलिस को सारे काम छोड़ सख़्त आदेश दिए थे कि आज जनता जल जाए तो जल जाए, पर उसका पुतला हरगिज़ नहीं जलना चाहिए। सरकार के पुतले को जो खरोंच भी आई तो पूरा ज़िला प्रशासन इसका ख़ामियाज़ा भुगतने को तैयार रहे। सरकार को जनता से अधिक अपना पुतला प्यारा होता है। वह अपने से अधिक अपने पुतले से प्यार करती है। शहर जल जाए तो जल जाए। पर पुतला सही सलामत तो सरकार सही सलामत।
रैली में विपक्ष वाले पचास तो उनसे निबटने के लिए पुलिस वाले पाँच सौ। सभी पुलिस वालों के हाथ-पाँव ही नहीं, वे सिर से पाँव तक फूले हुए। कल को ये सरकार में आएँगे तो पता नहीं हमारा क्या हाल होगा? विपक्षियों के हेड ने सबसे आगे कांधे पर शान से सरकार का पुतला उठाया हुआ था। उस वक़्त वह अपने को ऐसा महसूस कर रहा था मानों उसने पूरी सरकार को ही अपने कांधे पर उठा रखा हो।
रैली ज्यों ही डीसी ऑफ़िस के पास पहुँची कि विपक्ष ने स्वभाववश सरकार विरोधी नारे लगाए। रैली हेड ने जनता के बदले अपनों की संबोधित करते हुए अपने कांधे से सरकार का पुतला उतार दूसरे को बड़े सम्मान के साथ थमाया और ख़ुद पुलिस वालों को संबोधित करते कहने लगा, “आज हम सरकार का पुतला जला कर रहेंगे। हमें कोई सरकार का पुतला जलाने से नहीं रोक सकता। भगवान भी नहीं। सरकार हाय! हाय! सरकार! हाय! हाय!”
ज्यों ही पुतले को बचाने आई पुलिस को लगा कि विपक्ष अब पुतला जलाने की तैयारी में है तो एकाएक पुलिस डरती सहमति रैली के बीच घुस गई। इस टकराव में विपक्ष के चार जवान फट्टड़ हो गए। सरकार का पुतला जलने से बचाने के लिए पुलिस ने आँसू गैस के गोले चलाए जिनके कारण उनके अपने ही पुलिस वाले दिक्क़त में आ गए। पुलिस ने सरकार का पुतला बचाने के लिए लाठियाँ विपक्ष पर भाँजी। हवाई फ़ायर किए। पुलिस कप्तान को लग रहा था कि आज विपक्षियों से सरकार का पुतला बचाना सरकार बचाने से अधिक ख़तरनाक है। पर सवाल नाक का था। सरकार की नहीं, अपनी का। अपनी टूटी नाक तो अस्पताल में जा ठीक हो जाएगी जो सरकार का पुतला बच गया। पर जो सरकार का पुतला विपक्ष ने जला दिया तो सात जन्मों तक उसका खानदान सरकारों की नकटा ही रहेगा।
अभी नहीं तो प्यारे कभी नहीं। जय बजरंग बली! ... पुलिस कप्तान अपनी वर्दी की परवाह किए बिना रैली में घुस, अपनी जान की बाज़ी लगा, पुतले पर सही सलामत विपक्ष से बाज़ की तरह झपटा तो उसे अपने पर विश्वास ही नहीं हुआ कि वह अभी भी फ़िट है।
फिर बिना एक क्षण खोए उसने अपने सहयोगी को इशारा किया। पुलिस वैन का दरवाज़ा फटाक से खुला और पुलिस सीना तान उसमें सरकार का पुतला सुरक्षित ले नौ दो ग्यारह हो गई। उधर दूसरी ओर विपक्ष सरकार का पुतला जलाने को हाथ में माचिस लिए हाथ मलता रह गया। ये पुलिस आज इतनी चुस्त कैसे हो गई भाई साहब! कल तक तो ये चोर के पीछे नहीं, चोर इनके पीछे भागता रहा था।
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