शुभाकांक्षी, प्यालीदास!
डॉ. अशोक गौतमइधर अपने फ़ेसबुक व्हाट्सैप, मैसेंजर प्रेमी श्रीमान प्यालीदास जी विगत कुछ दिनों से बहुत परेशान चल रहे थे। जितना प्रेम वे इनसे करते हैं, इसका दशांश भी जो वे अपनी श्रीमती से करते तो आज उनका जीवन स्वर्ग होता। पर जिसकी क़िस्मत में स्वर्ग नहीं लिखा होता उनके क़दमों में स्वर्ग पड़ा होने के बाद भी उन्हें नहीं दिखता। क्योंकि जहाँ जैसे उनके क़दमों में स्वर्ग पड़ा होता है, वहाँ जैसे वे आँखें मूँद आगे हो लेते हैं।
चलो छोड़ो, ये उनका निजी मामला है। और मैं सामाजिक मामलों का स्वतंत्र प्रभारी हूँ।
वे परेशान इसलिए नहीं चल रहे थे कि उनकी बीवी नया साल मनाने चार महीने पहले ही मायके जा चुकी है। वे तो चाहते हैं कि उनकी बीवी बारहों महीने मायके में ही हर तीज त्योहार मनाए।
श्रीमान प्यालीदास जी परेशान इसलिए थे कि पिछले हफ़्ते से उनके मोबाइल के नेट की स्पीड अस्सी साल के बूढे़ सी चल रही है। नेट की इस स्पीड को बढ़ाने के लिए उन्होंने वह वह सब कुछ किया जो जो वे अपने स्तर पर कर सकते थे। पर नेट की स्पीड नहीं बढ़ी तो नहीं बढ़ी।
उनकी उम्र के को इस उम्र में किसीसे भी तकनीकी मशविरा लेते तो शर्म आती ही, सो उन्हें भी आ रही थी। इस उम्र में भी जो औरों से छोटे-छोटे तकनीकी मशविरे लेता रहे तो सब सामने तो नहीं, पर पीठ पीछे यही कहेंगे, सारी उम्र क्या बंदे ने भाड़ झोंका!
माना उस वक़्त बीवी सिर पर सवार नहीं थी, पर न्यू ईयर तो उनके सिर पर भूत की तरह सवार था। उन्हें वहम था कि अगर इस अवसर पर उन्होंने अपने भासी आभासी दोस्तों को शुभकामनाएँ न भेजीं तो वे बुरा नहीं, बहुत बुरा मान जाएँगे।
जबसे श्रीयुत प्याली दास जी नेट-अंध-प्रेमी हुए हैं तबसे वे सब कुछ नेट पर ही करते हैं। वे पानी का बिल ऑन लाइन भरते हैं। वे बिजली का बिल ऑन लाइन भरते हैं। वे पतलून का ऑर्डर ऑन लाइन करते हैं। वे अपने गमछे का तक का ऑर्डर ऑन लाइन ही करते हैं। महीनों हो जाते हैं तब उन्हें बाज़ार को अपना मुँह दिखाए।
एक समय था जब वे फ़ेसबुकियों को तो गालियाँ देते ही देते थे, फ़ेसबुक बनाने वाले को भी भर-भर मुँह गालियाँ देते थे। एक समय था जब वे व्हाट्सैपियों को तो गालियाँ देते ही देते थे, पर व्हाट्सैप बनाने वाले के उनसे भी अधिक जमकर गालियाँ तब तक देते थे जब तक उनके मुँह का थूक सूख नहीं जाता था। एक समय था जब वे मैसेंजरियों को तो गालियाँ देते ही देते थे, पर मैंसेजर बनाने वाले को भी गालियाँ देते नहीं थकते थे। बेशर्मों ने यूथ ऊत करके रख दिया!
तब बात और थी। अब बात और है। क्योंकि बात सदा एक सी नहीं रहती। वह समय, स्थान, परिस्थिति, अपने अपने हिसाब के हिसाब से बदलती रहती है।
धीरे-धीरे वे भी अपने आसपास के अपनी उम्र वालों की देखा-देखी में मज़े-रजे के लिए खाँसते हुए फ़ेसबुक की ओर बढ़े। धीरे-धीरे वे भी अपनी उम्र वालों की देखा-देखी में मज़े-रजे के लिए व्हाट्सैप की ओर बढ़े। धीरे-धीरे वे भी अपनी उम्र वालों की देखा-देखी में मज़े-रजे के लिए मैसेंजर की सीढ़ियाँ चढ़े।
और आज वे फुली लोडिड फ़ेसबुकिए हो गए हैं। आज वे फुली लोडिड व्हाट्सैपिए फ़्रेंडली हो गए हैं। आज वे फुली लाडिड मैसेंजरिए हो गए हैं। अब तो कई बार तो जब उनके मोहल्ले के किसी युवा के फोन की फ़ेसबुक में कोई ख़ास दिक़्क़त आती है तो वे उनसे ही सलाह लेते हैं। अब फ़ेसबुक, व्हाट्सैप, मैसेंजर उन्हें छोड़ना चाहते हैं पर वे उनको छोड़ें तब न!
सो आज उनका पूरा जीवन फ़ेसबुक, मैसेंजर, व्हाट्सैप की बंदे भारत वाली ब्रॉड गेज की पटरी पर आँखें मूँद दौड़ रहा है। आगे भैंस आए या भैंसा, वे रुकने वाले नहीं।
तो अब या तब हुआ यों कि उनकी लाख कोशिशों के बाद भी उनके मोबाइल का नेट उनके हिसाब की स्पीड से नहीं चला तो नहीं चला। नेट की स्पीड बढ़ाने के सारे वांछित अवांछित जतन कर हारे, पर उनके मोबाइल के नेट की लोक निर्माण विभाग के काम करने की स्पीड सी स्पीड टस से मस न हुई तो नहीं हुई।
दुनिया रुक सकती थी, पर न्यू ईयर के मैसेज नहीं रुक सकते थे न! अपनी पुरानी जवानी के दिनों के विराहकुल प्रेमी तो वे थे ही। सो उन्हें डाकिए के बदले कालिदास के मेघदूत के मेघ का स्मरण हो आया। जनवरी के चलते आसमान में मेघ भी थे और . . . उन्होंने त्वरित एक्शन लेते एक विश्वसनीय मेघ से मोबाइल से सीधा संवाद करने का मन बना उसके सहारे अपने आभासी भासी मित्रों को नए वर्ष के शुभ संदेश भेजने का निश्चय किया।
और मज़े की बात! मेघ तुरंत मान भी गया। असल में वह अपने श्रीमान प्यालीदास जी की न्यू ईयरी शुभकामनी पीड़ा को महसूस कर चुका था।
श्रीमान प्यालीदास जी का अपने भासी आभासी मित्रगणों से अनुरोध! कृपया अपने-अपने मैसेज बॉक्स खोलें प्लीज़! उन्होंने मेघ को अपने भासी आभासी मित्रों को न्यू ईयर के शुभ संदेश भेज दिए हैं।
शुभकामनाओं की पावती स्वरूप अँगूठा दिखाकर मित्र उन्हें सूचित करें, अति प्रसन्नता होगी।
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