चोर साहब का प्रकटोत्सव दिवस
डॉ. अशोक गौतम
हमारा महल्ला सामान्य महिला पुरुषों का महल्ला नहीं, एक से बढ़कर एक प्रकटस्वी महापुरुषों महापुरुषाणियों का महल्ला है। ऐसा कोई हफ़्ता नहीं जाता जिस हफ़्ते हमारे महल्ले में महल्ले के किसी न किसी महापुरुष का, महापुरुष की महापुरुषाणी का, उनके होनहार लफ़ंगे भविष्य के महापुरुषों का अपने ख़र्चे पर प्रकटोत्सव दिवस नहीं मनाया जाता।
मुझे पता है कि जनवरी में किस-किस हफ़्ते के किस-किस दिन महल्ले के किस-किस महापुरुष या उनकी महापुरुषाणी का प्रकटोत्सव दिवस आता है तो फरवरी में महल्ले के किस-किस हफ़्ते के किस-किस दिन किस-किस महापुरुष या उनकी महापुरुषाणी का प्रकटोत्सव दिवस।
मुझे पता है कि मार्च महीने में महल्ले में किस-किस हफ़्ते के किस-किस दिन किस-किस महापुरुष और उसके महापुरुष होने के मार्ग पर अग्रसर बच्चों के प्रकटोत्सव दिवस आते हैं तो अप्रैल में महल्ले में किस-किस हफ़्ते के किस-किस दिन किन-किन महापुरुषों के परिवार के प्रकटोत्सव दिवस।
मुझे पता है कि मई में महल्ले के किस-किस हफ़्ते के किस-किस दिन किस-किस महापुरुष के महापुरुषीय परिवार के सदस्यों के प्रकटोत्सव दिवस आते हैं तो जून में महल्ले के किस-किस हफ़्ते के किस-किस दिन किस-किसके प्रकटोत्सव दिवस।
मुझे पता है कि जुलाई में किस-किस हफ़्ते के किस-किस दिन महल्ले के किस-किस महापुरुष का किस-किस दिन प्रकटोत्सव दिवस आता है तो अगस्त में महल्ले के किस-किस हफ़्ते के किस-किस दिन किस-किसके प्रकटोत्सव दिवस आते हैं।
मुझे पता है कि सितंबर में किस-किस हफ़्ते के किस-किस दिन महल्ले के किस-किस महापुरुष का प्रकटोत्सव दिवस आता है तो अक्टूबर में महल्ले के किस-किस हफ़्ते के किस-किस दिन किस-किसके प्रकटोत्सव दिवस आते हैं। मुझे पता है कि नवंबर में किस-किस हफ़्ते के किस-किस दिन महल्ले के किस-किस महापुरुष के प्रकटोत्सव दिवस आते हैं तो दिसंबर में महल्ले के किस-किस हफ़्ते के किस-किस दिन किस-किस महापुरुष के प्रकटोत्सव दिवस आते हैं।
बारह महीनों के साथ जो दुर्भाग्य से तेरहवाँ महीना भी होता तो उसमें भी हमारे महल्ले के किसी न किसी महापुरुष का प्रकटोत्सव दिवस अवश्य आता। उसकी तेरहवीं आती या न! ऐसे में मुझे अपने प्रकटोत्सव का दिन याद न हो या, न पर महल्ले के हर महापुरुष के प्रकटोत्सव की तिथि याद होना लाज़िमी है।
जैसे-जैसे हमारे महल्ले के महापुरुषों के पास आय के अतिरिक्त साधन बढ़ रहे हैं, महल्ले में महापुरुषों के कुत्तों से महाकुत्ता होने वाले कुत्तों के प्रकटोत्सव दिवस भी मनाए जाने लगे हैं। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि हमारे महल्ले में निकट भविष्य में गधों, उल्लुओं, उल्लुओं के पट्ठों के भी प्रकटोत्सव दिवस मनाए जाने की स्वस्थ परंपरा का शीघ्र ही शुभारंभ हो जाए। अपना क्या? कम से कम इस अवसर पर जलपान तो होगा ही। सुरापान न सही तो न सही। वैसे पैसे वाले महापुरुष अपने प्रकटोत्सव दिवस के दिन सुरापान भी करवा देते हैं।
कल इस आशय से चैन की साँस लिए लेटा था कि आने वाले कल हमारे महल्ले में किसी का प्रकटोत्सव दिवस नहीं है। अतः कम से कम कल तो महल्ले में अमन चैन होगी।
अभी आने वाले कल के अमन चैन के सुखद सपने ले ही रहा था कि दरवाज़े पर दस्तक हुई। अनमने मन से दरवाज़ा खोला तो सामने अपने महल्ले के सरकार से पंजीकृत ए ग्रेड चोर साहब! उनके हाथ में निमंत्रण पत्र-सा कुछ था। इससे पहले कि मैं सहमा कुछ और सहमता उन्होंने मेरी सहमगी पर विराम नहीं, पूर्ण विराम लगाते कहा, “मास्साब! कल मेरा प्रकटोत्सव दिवस है। आइएगा ज़रूर।”
“आप भी महापुरुषों की श्रेणी में आ गए? बधाई हो! पर . . .” बात कपच्छ की तरह हज़म नहीं हुई सो पूछ लिया।
“बंधु! महापुरुषत्व पर तुम जैसे तथाकथित महापुरुषों का ही एकाधिकार नहीं, हम जैसों का मौलिक अधिकार भी है। असल में पिछले हफ़्ते हुआ यों कि मैं अपने चोरी के हिस्से में से मंदिर में भगवान का हिस्सा पूरी ईमानदारी से वैसे ही देने गया था जैसे ईमानदार पार्टी वर्कर अपनी कमाई के हिस्से में से पार्टी हिस्सा पार्टी अध्यक्ष के श्री चरणों में रख देते हैं कि एकाएक भगवान प्रकट हुए। पुजारी के बदले उन्हें अपने सामने देखा तो मैं नतमस्तक! तब मैंने सिर झुकाए पूछा, “प्रभु आप?”
“क्यों? चोरों के भगवान नहीं होते क्या?” उन्होंने मेरे सिर पर अपना हाथ फेरते-फेरते पूछा तो मैंने अपने सिर पर उनका हाथ फिरवाते-फिरवाते कहा, “नहीं भगवन्! आजकल तो चोरों के ही भगवान होते हैं।”
“वत्स! शरीफ़ों को तो आज न शैतान पूछते हैं न भगवान! हम तुम्हारी चोरी करने की कला से अति प्रसन्न हुए। अबसे तुम महापुरुषों की श्रेणी के हुए। जाओ, कल से हर महीने महल्ले के शरीफ़ों से अपने प्रकटोत्सव दिवस पर छबील लगवाकर उनसे अपने अनुयायियों के जूठे गिलास धुलवाओ।”
“पर प्रभु?” मैं सहमा तो वे मुझे आदेश देते बोले, “देखो वत्स! ये शरीफ़ लोग चोर-उच्चकों के प्रकटोत्सवों में होते ही बैंड बजाने, गाने, नचाने को हैं। समाज में इनका दूसरा कोई रोल नहीं रहता।” उन्होंने मुझे अपने महापुरुष घोषित किए जाने का आस्थामय आदेश सुनाया तो मैं उनके आगे नतमस्तक, “हे नव महापुरुष! तो क्या प्रोग्राम रहेगा तुम्हारे कल प्रकटोत्सव दिवस का?” मैंने पूछा तो वे गंभीर होकर बोले, “अब होना क्या मास्साब! बस, कल ठीक दस बजे के आसपास बैंड-बाजे के साथ महल्ले के इस छोर से लेकर उस छोर तक मेरे प्रकटोत्सव दिवस के पावन अवसर पर मेरी शोभायात्रा निकाली जाएगी। उसके बाद केवल मेरे प्रकटोत्सव दिवस में नाचने-गाने वालों के लिए मेरे घर में शानदार डिनर का प्रबंध होगा।”
“है तो बड़े मुँह छोटी बात नए-नए महापुरुष साहब! पर आप जनरली प्रकट कब हुए थे?”
“सन् उन्नसीस सौ पचास, स्थान पीपल वाला पीर। फरवरी पंद्रह शुक्ल पक्षे, चोर साहब धरयो सरीर!” उन्होंने जिस काव्यमयी लहजे में ससुर कहा, क़सम कबीर साहब की! भक्तिकाल के कवियों की याद आ गई। वाह! क्या ग़ज़ब का काव्य कौशल चोर साहब का! चोरी के क्षेत्र को छोड़ कविता के क्षेत्र में हाथ आज़माते तो समाज को पता नहीं कितना मौलिक दे जाते।
“पर फिर भी??” मैंने ईश्वरीय सच जानने के बाद भी पता नहीं क्यों बवाल-सा खड़ा किया तो मेरे बवाल खड़ा करने पर वे तनिक भी नहीं भड़के। वैसे जो सही बात पर भी भड़क जाए, वह महापुरुष नहीं होता। महापुरुषों की यही तो सबसे बड़ी ख़ासियत होती है कि अपने पर बड़े से बड़े सच्चे आरोपों को भी मुस्कुराते वे हुए सिर माथे ले लेते मौन रहते हैं। मेरी तरह नहीं कि किसीने छींटा भर भी कीचड़ मेरी ओर हवा में उछाल दिया तो पड़ गए उसके पीछे कीचड़ की बाल्टी लेकर।
“देखिए महापुरुष! चोर यहाँ कौन नहीं? यहाँ सब कुछ और हों या न, पर चोर ज़रूर हैं। यहाँ कोई पानी चोर है तो कोई बिजली चोर है। यहाँ कोई चैन चोर है तो कोई नैन चोर है। यहाँ कोई शैतानी चोर है तो कोई रूहानी चोर है। यहाँ कोई हवा चोर है तो कोई दवा चोर है। यहाँ कोई पव्वा चोर है तो कोई सव्वा चोर है। यहाँ कोई कविता चोर है तो कोई कहानी चोर है। यहाँ कोई नेम चोर है तो कोई फ़ेम चोर है। यहाँ कोई फ़ाइल चोर है तो कोई ऑफ़िस का फिनाइल चोर है। यहाँ कोई चंदा चोर है तो कोई गंगा चोर है। यहाँ कोई मंदा चोर है तो कोई चंगा चोर है। यहाँ कोई देस चोर है तो कोई भेष चोर है। यहाँ कोई . . . इसलिए चोरमय सब जग जानी, करउं प्रणाम जोरि जुग पानी। पर ये सब क्यों?” उन ताज़े ताज़े महापुरुष हुओ ने मेरे हाथ में ज़बरदस्ती अपने प्रकटोत्सव दिवस का निमंत्रण पत्र थमाया, अनादर मेरे पाँव छुए और मुस्कुराते-मुस्कुराते आगे हो लिए।
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