धुएँ का नया लॉट
डॉ. अशोक गौतमकई दिनों से भगवान महसूस कर रहे थे कि उनको चढ़ावे में मिलने वाले मेवे तो सड़े हुए ही होते हैं पर जो इन दिनों उनको प्रसन्न करने के नाम पर जिस धूप, अगरबत्ती का धुआँ उनके भक्तों द्वारा उन्हें दिया जाता है, उस धूप, अगरबत्ती में मिलावट, मिलावट की सारी सीमाएँ पार कर चुकी है।
मंदिर में जो भी भक्त उनसे कुछ माँगने आता, कुछ माँगने से पहले एक दो उनके चरणों में रखने को होता ही कि उससे पहले ही उनके आगे सीना तान कर बैठा, अधलेटा उनका पेड पुजारी उन पैसों को अपने माथे से लगा अपनी जेब में डाल लेता हैं और भगवान के हिस्से में बस वही नक़ली धूप अगरबत्तियों का धुआँ।
पूरी आस्था के इस लगातार मिलते धुएँ के चलते भगवान ने एक दिन मंदिर में आए, नक़ली दवाइयाँ मरीज़ों को लिखने पर अचानक फँसे, बचने हेतु अपनी शरण में आए डॉक्टर से कहा भी, "हे डॉक्टर साहब! लगता है मुझे अब मुझ साँस की तकलीफ़ कुछ अधिक ही हो रही है।” तो डॉक्टर साहब उनकी आवाज़ को मरीज़ों की आवाज़ की तरह अनसुना कर अपनी ही धुन में उनके आगे धूप की पूरी गुट्टी जलाते बोले, "प्रभु! साँस की तकलीफ़ आपको क्यों? आप तो सभी की साँसों की तकलीफ़ दूर करने वाले हो। इस हफ़्ते मेरी भी तकलीफ़ दूर कर दो तो अगली बार आपके चरणों में सवा किलो धूप जलाऊँ।" भगवान ने डॉक्टर के मुँह से यह सुना तो उनको चक्कर आते-आते बचा।
धीरे-धीरे नक़ली धूप अपने आगे पाँच पहर जला होने के चलते प्रभु की खाँसी बढ़ती ही गई। उन्हें अपनी खाँसी अब टीबी में बदलने का भी अहसास हुआ। वे किसी न किसी रोग से पीड़ित भक्तों के समाने खाँसी रोकने की जितनी कोशिश करते, उन्हें उतनी ही खाँसी आती। तब उनका पुजारी उनके मुँह पर अपने कांधे पर रखा तौलिया रख धमकाते कहता, "प्रभु ये क्या? देखते नहीं सामने पाँच सौ वाला मरीज़ भक्त खड़ा है। इसके समाने जो आप खाँसे तो जानते हो क्या मैसेज जाएगा मरीज़ भक्तों में? जो मैंने ग़लती से भक्तों को कह दिया कि ये प्रभु तुम्हें क्या ख़ाक ठीक करेंगे, ये तो ख़ुद ही बरसों से बीमार चल रहे हैं तो देख लेना पल में ही...”
"यार! मैसेज को मार गोली। इधर सुबह पाँच से लेकर रात के दस बजे तक जो भी आता है नाक में नक़ली धूप की बत्ती घुसा चला जाता है। अगर समय पर रहते इस पर रोक नहीं लगी तो देख लेना एकदिन मुझे भी अस्पताल में भर्ती न होना पड़े कहीं। फिर बजाते रहना न ठन-ठन घंटी। देख लेना मेरे बिना तब इस मंदिर में कुत्ता भी नहीं आएगा।” भगवान ने अपने पुजारी को सहमी आवाज़ में चेतावनी दी तो उसने प्रभु पर गुर्राते कहा, "वाह रे प्रभु! उल्लू बनाने को मैं ही रह गया जो आज तक बीस सालों से पूरे शहर का उल्लू बना रहा है। देखो प्रभु! मैं आपके द्वारा सब कुछ बनने वाला, पर कम से कम उल्लू तो क़तई नहीं बनने वाला! सबको पता है कि भगवान अजर अमर है। उनपर असली नक़ली का कोई असर नहीं पड़ता। तुम धूप छाँव से परे हो, तुम शहर गाँव से परे हो। तुम आदि व्याधि से परे हो। तुम्हारे भक्त तुम्हारी देहरी पर आते-आते मर जाएँ तो मर जाएँ, पर तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ सकता। इसलिए जब तक मैं यहाँ हूँ, तब तक चुपचाप दुम दबाए बैठे रहो। हाँ! मेरे जाने के बाद जो मन में आए करना। मैं रोकने वाला नहीं,” पुजारी ने प्रभु का दबकाया तो वे चुप हो गए। हाय रे प्रभु!
पर एक दिन पता नहीं किसने प्रभु की सुन ली। अचानक वहाँ पर उनमें पूरा विश्वास करने वाला सरकारी सैंपल भरने वाला आ धमका। वह प्रभु के पास ज्यों ही झुका कि प्रभु ने इधर-उधर देखा, जब उन्हें लगा कि उन्हें कोई देख सुन नहीं रहा तो वे अपनी मूर्ति के आगे दोनों हाथ जोड़े उस सैंपल भरने वाले के कान में फुसफुसाए, "रे भक्त! रे भक्त!”
ईमानदारी से सरकारी सैंपल भरने वाले भक्त की तंद्रा टूटी, "कौन? कौन?... पुजारी?” वह पगलाया सा बोला।
"पुजारी नहीं, मैं पुजारी का मारा?”
"मतलब, मैं प्रभु को सुन रहा हूँ?"
"हाँ मेरे भक्त," कहने कहते प्रभु खाँसने लगे तो उसने पूछा, "पर ये टीबी के मरीज़ सी खाँसी किसकी?"
"मेरी ही है भक्त!"
"प्रभु को टीबी?"
"अगर नक़ली धूप मेरे आगे जलना बंद न हुआ तो कल को कुछ भी हो सकता है। फेफड़ों में कैंसर भी हो सकता है," प्रभु ने याचना भरे लहज़े में कहा।
"मतलब??" सैंपल भरने वाला भक्त परेशान!
"समय रहते कुछ करो भक्त वरना कल को कहीं ऐसा न हो कि तुम्हें मेरा मरा मुँह देखना पड़े।"
"तो तुम्हें पूजने को धूप कहाँ से आता है??"
"मंदिर के बाहर बैठे राम-राम गाते गुनगुनाते दुकानदारों से।"
"मतलब?"
"वे बरसों से असली धूप के नाम पर बिरोजे चारकोल वाला धूप बेच मुझे परेशान किए हैं। देख लेना कल को जो मुझे कुछ हो गया तो भक्तों को आशीर्वाद देने वाला मंदिर में कोई नहीं बचेगा। मेरे पुजारी को तो तुम जानते ही हो। वह तो मुझे भी पैसे देख टीका लगाता है।"
और दूसरे ही दिन दोस्तो मंदिर के बाहर के धूप के सौदागरों के धूप के सैंपल भरे गए। मंदिर के बाहर "फुल्ल आस्था के प्रार्थना होगी स्वीकार" गारंटी वाले विष्णु, लक्ष्मी, शिवजी, गणेश छाप नक़ली धूप बचेने वालों के यह देख हाथ-पाँव फूल गए तो प्रभु बहुत प्रसन्न हुए।
महीने बाद रिपोर्ट से पता चला कि जो धूप भगवान को धुआँ देने के नाम पर बिक रहा था वह सच्ची को सारा नक़ली था।
पर मज़े की बात... तब तक उस नक़ली धूप की खेप पूरी की पूरी बिक कर ख़त्म हो चुकी थी और उसकी जगह प्रभु को धुआँ देने को धूप, अगरबत्ती का नया लॉट आ चुका था।
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