अब तो मैं पुतला होकर ही रहूँगा
डॉ. अशोक गौतमजबसे बीवी से चौबीसों घंटे टीवी सीरियलों को देखने की मुझे भी थोड़ी-थोड़ी लत लगी है तबसे मैं टीवी सीरियलों में विवाहेत्तर प्रेम संबंधों को गंभीरता से लेने लगा हूँ। टीवी सीरियलों ने मुझे कुछ और सिखाया, दिखाया हो या न, पर यह ज़रूर बताया, सिखाया है कि आज के ज़माने में विवाह के बाद विवाहेत्तर संबंध उतने ही ज़रूरी हैं जितना दाल में नमक, साग में तड़का। दाल, नमक के बिना ज्यों दाल नहीं कहलाती, तड़के के बिना जैसे सरसों का साग, साग नहीं कहलाता, उसी तरह विवाहेत्तर संबंधों के बिना विवाहित, विवाहित नहीं कहलाता है। विवाह के बाद जो किसी के पास एकाध प्रेमी प्रेमिका न हो तो वह विवाह अवैध सा लगता है, अधूरा सा लगता है।
जबसे मुझ पर टीवी सीरियलों के चार-चार प्रेमों के सुप्रभाव का पता बीवी को चला है तबसे उसने मेरे टीवी सीरियल देखने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। जैसे ही मैं दफ़्तर से घर आता हूँ तो सबसे पहले वह मेरे कुरते की बास सूँघती है कि कहीं . . .
अब वह मुझे सुधारने की ताक में हरदम रहने लगी है। हर वक़्त मुझे सुधारने का कोई न कोई आयातित, स्वदेशी मौक़ा ढूँढ़ती रहती है। मेरी नैतिकता को जगाने के लिए मेरे कानों में घंटियाँ बजाती रहती है। पर उसे यह नहीं पता कि टीवी सीरियलों के बिगाड़े, मरने के बाद भी नहीं सुधरते।
मित्रो! मुझे सुधारवाने के लिए वह पता नहीं कहाँ-कहाँ गई? कहाँ-कहाँ के बाबा की राख उसने लाकर चोरी से मेरे सिर में नहीं डाली। किस-किस शर्तिया सौतन भगाने वाले का खुला चैलेंज देने वाले से उसने गंडा-तावीज लाकर गुपचुप मेरे दिमाग़ में नहीं बाँधा। पर जो वह चाहती थी, सो भगवत् कृपा से न हो पाया, तो न हो पाया।
आजकल उसने मुझे सुधारने के लिए नैतिकता की आड़ ले रखी है। पर उसे ये नहीं मालूम कि जो नैतिकता को जड़ से उखाड़ फेंक चुका हो उस पर बोध कथाएँ, बोध सीन क्या ख़ाक असर करेंगे?
मुझे सुधारने के लगातार सिलसिले में इस दशहरे को उसने मुझे फिर रावण का ध्यान दिलाते हुए सुधारने की एक और नाकाम कोशिश करनी चाही।
वैसे जबसे मैं प्रेमिका के प्रेम से आहत हुआ हूँ, तबसे मैंने किसी भी पूजा-त्योहार में जाना पूरी तरह बंद कर दिया है। मैं नहीं चाहता मेरे भीतर पूरी तरह गधे बेच कर सो चुकी नैतिकता फिर जाग जाए और मुझे इस बात का पछतावा हो कि मैंने पत्नी के होते हुए भी किसी और से प्रेम करने का अपराध किया है।
अब मैं प्रेम के मामले में अपराधबोध से ग्रस्त, त्रस्त, मस्त ही रहना चाहता हूँ। विवाह के बाद किसी और से प्रेम करने में जो आनंद मिलता है उसे टीवी के सीरियल बनाने वालों से पूछो। एक ही खूँटे से शेष उम्र बँध कर रहना टीवी सीरियल देखने के बाद अब मुझे क़तई पसंद नहीं। इसलिए कम से कम विवाहेत्तर पतियों को मेरी नेक सलाह है कि वे टीवी सीरियलों के उद्देश्यों को अपने जीवन का अनिवार्य हिस्सा बनाएँ और प्रेम का दूसरा आनंद भी पाएँ।
अबके भी बीवी ने चार दिन पहले ही मुझे मनाना शुरू कर दिया था कि मुझे उसके साथ दशहरे में ज़रूर जाना है। मुझे भी तब पता चल गया कि वह रावण को जलते हुए दिखाकर अपनी सौतन की ओर से मुझे हटाना चाहती है। इसी चक्कर में उसने मुझे दशहरे की पूर्व संध्या पर याद दिलाते कहा, "देखो जी! याद है न! कल हम दशहरा देखने चलेंगे। उसके बाद चाट खाएँगे। उसके बाद सिनेमा देखने जाएँगे और उसके बाद . . ." तो मैंने खीझते हुए पिछले तीन-चार सालों की तरह कहा, "आख़िर तुम मुझे दशहरे में जलते रावण को क्यों दिखाना चाहती हो? अब मैं प्रेम में जलने मरने से बहुत आगे निकल चुका हूँ डियर! रावण से भी बहुत-बहुत आगे। मैं दो-दो प्रेम के पाटों में घिस-घिस कर अब इतना जल चुका हूँ . . . और एक तुम हो कि . . ."
"तो किसने कहा था तुम्हें कि . . ." वह बूढ़ी शेरनी की तरह चरमराई।
"मुझे समझाने के बदले पहले इन टीवी सीरियल वालों को समझाओ कि एक बीवी वाले सीरियल नहीं बन सकते क्या?"
"तो अबके भी तुम दशहरे में नहीं जाओगे?" बीवी अपने पर आई तो मैंने उसे नार्मल करते कहा, "देखो प्रिय! टीवी सीरियलों को देखकर बिगड़े कभी सुधरे हैं क्या?"
"क्या मतलब तुम्हारा?"
"मतलब यही कि . . . आख़िर तुम मुझे वहाँ ले जाकर बताना क्या चाहती हो?"
"यही कि बुरे कामों का अंत देर-सबेर बुरा ही होता है। और मैं नहीं चाहती कि कल को तुम्हारा भी रावण के साथ बुत बने।"
"अब इस समाज को सच कौन बताए? जैसे किसीने कहा, मान लिया। देखो बीवीजी! सच तो यह है कि अगर रावण की बीवी रावण का ख़्याल रखती तो क्या वह सीता को ज़ोर ज़बरदस्ती लंका लाता? अब रही बात मेरे मरने के बाद मेरा बुत बनने की, तो क़ाननून विवाह के बाद नए संबंध बनाने वालों के बुत नहीं बना करते, उन्हें मोक्ष मिलता है। मुझ पर यक़ीन नहीं तो रावण को फोन कर पूछ लो। स्वर्ग में मोक्ष के बाद उसके कितने मज़े हैं," मैंने जेब से फोन निकाल रावण का नंबर मिला बीवी के हाथ में फोन थमाया तो उसे काटो तो ख़ून नहीं।
"मतलब?"
"मतलब ये कि न रावण सीता का अपहरण करता, न उसे मोक्ष मिलता। घूमता रहता हर जन्म में मंदोदरी के पीछे-पीछे। बनाता रहता रोज़ सुबह उठकर उसे मेरी तरह चाय। अच्छा तो बताओ, रावण ने सीता को अपहृत क्यों किया था?"
"अपनी हवस के लिए।"
"नहीं! तुम अपने-अपने इतिहास वालों के साथ यही तो सबसे बड़ी दिक़्क़त रहती है। असल में रावण ने सीता का अपहरण इसलिए किया था ताकि उसे मंदोदरी से शेष जन्मों के लिए छुटकारा मिल सके। ज़रा सोचो, तनिक दिमाग़ हो जो, जो वह मंदोदरी के साथ ख़ुश होता तो भला ऐसा क्यों करता?" मैंने रावण के पाप की नई व्याख्या दी तो बीवी चौंकी। "इसलिए सुन सको तो सुनो, मान सको तो मानों! कहीं न कहीं ज़रूर कोई न कोई रावण की बीवी में ही खोट रहा होगा। तभी तो बंदा विवाहेत्तर संबंध की रस्सी गले में डाल मोक्ष की ओर लपका होगा। इतिहास गवाह है कि जो-जो अपनी बीवी के साथ प्रसन्न होते हैं, वे नरक में भी अपनी बीवी का साथ नहीं छोड़ते।"
"तो तुम्हारा मतलब तुम्हारे विवाहेत्तर प्रेम के पीछे मुझमें ही कोई खोट दोष है?"
"नहीं, खोट-दोष तो बस, इन टीवी सीरियलों में है, टीवी सीरियलों को मुझ जैसे आत्मसात करने वालों में है। अब तो बेगम क़यामत की रात को भले ही क़ब्रों में दबे जाग जाएँ तो जाग जाएँ, पर मैं और मेरी नैतिकता किसी भी हालत में किसी भी दिन रात जागने वाले नहीं। मुझे अब चाहे रावण जलते दिखाओ चाहे विभीषण। विवाहेत्तर प्रेम में राख हो अपनी बीवी से मुक्त होने में जो मज़ा है वह . . .," मैंने टीवी सीरियलों के दम पर गुर्राते कहा तो बीवी ने तय किया कि अबके वह अकेले ही दशहरा देखने जा आएगी और जलते हुए रावण से दुआ माँगेगी कि भैया! मेरे मर्द को पुतला बनने से रोक लो। मेरे पति को मोक्ष की राह पर मत जाने दो। जो मेरे पति को मोक्ष मिल गया तो मैं सात में से शेष बचे पाँच जन्मों में सुबह-सुबह बेड टी किससे बनवाऊँगी?
तब शाम को मैं भी देखता हूँ कि वह अपने भैया से क्या किस मुँह वरदान लेकर आती है।
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हे भगवान! विचित्र व्यंग्य
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